स्वाभाविक रूप से हम सभी अपने-अपने सेलिब्रिटियों के प्रति एक खिंचाव का अनुभव करते हैं. ऐसे लोगों में सिनेमा की दुनिया के लोग टॉप पर हैं.
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‘सेलिब्रिटी’ (हिन्दी के ‘लोकप्रिय’ या ‘प्रसिद्ध’ शब्द इसकी तर्ज पर खरे नहीं उतरते) बनना जितना मुश्किल है, उससे अधिक मुश्किल तो बनने के बाद जिंदगी को जी पाना है. और यदि जीते-जी सेलिब्रिटीपना गायब हो गया, तब तो समझो कि जीते-जी ही मर गए. यह इसका साइडइफेक्ट है. लेकिन इसके बाद भी करीब-करीब हर-एक का सपना होता है कि वह एक सेलिब्रिटी बन जाए, भले ही अपने आसपास के छोटे से एरिया का ही सही. इसलिए स्वाभाविक रूप से हम सभी अपने-अपने सेलिब्रिटियों के प्रति एक खिंचाव का अनुभव करते हैं. ऐसे लोगों में सिनेमा की दुनिया के लोग टॉप पर हैं.
उदाहरण के तौर पर अभी-अभी इस दुनिया के दो सबसे चमकदार सितारों की आपस में शादी हुई. आप समझ ही गए होंगे. दीपिका और रणवीर की, जो शादी के बाद एक होकर ‘दीपवीर’ हो गए हैं. मानकर चलिये कि इनकी यह शादी, शादी के बाद के नए नामकरण संस्कार का आरम्भ करने वाली सिद्ध होगी. हमारे युवा इसे ‘दो देह एक जान’ के प्रतीक के रूप में निश्चित तौर पर ग्रहण करेंगे.
इस विवाह में ग्रहण करने लायक एक और भी बात हुई है. वह यह कि थे तो दोनों हिन्दू, लेकिन विवाह दोनों ही रीति-रिवाजों से हुई. यानी यूं कह लीजिये कि दोनों की लगातार दो शादियां हुईं. दो-दो शादियां नहीं, दो शादियां. मतलब यह हुआ कि दोनों के घरवालों में से किसी एक के घर वाले दूसरे की परम्परा को स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए होंगे. जिस प्रकार दूल्हा-दुल्हन अपने नामों के अस्तित्व का एक-दूसरे में विलय करके एक नए नाम को लेकर आ गये, वैसा ही कुछ इस मामले में भी किया जा सकता था. लेकिन जो किया गया, वह इस मायने में बेहतर कहा जा सकता है कि इससे लड़के और लड़की वाले, दोनों को समान स्थान मिल गया. इस घटना को हमारे वर्तमान के कुँआरे किस रूप में लेंगे, ईश्वर जाने.
निश्चित रूप से आज के समय के सर्वोत्तम आदर्श (आचार्य) हमारे ऐसे ही सेलिब्रिटी हो गये हैं. हमारी युवा पीढ़ी अविवेकपूर्ण तरीके से इनके कहे और इनके किये का अनुकरण करती है. इस बारे में विज्ञापनों में इनकी उपस्थिति से बड़ा प्रमाण भला और क्या हो सकता है. यानी कि इनमें यह ताकत होती है कि ये समाज के मूल्यों एवं परम्पराओं में परिवर्तन ला सकें. भारतीय समाज पर विशेषकर पिछले तीन-चौथाई शताब्दी में पड़े इनके प्रभावों को बखूबी देखा और महसूस किया जा सकता है.
यदि हम इस विवाह को इस नजरिये से देखें, तो इसमें वह सामाजिक चिंता दिखाई नहीं देती, जो वास्तव में ऐसे समूहों में होनी चाहिए. यह शादी हुई इटली के कोमो झील रिसॉर्ट में, जो दुनिया की सबसे महंगी जगहों में से एक है. विवाह की जो भी तस्वीरें और खबरें लोगों तक पहुँचीं, उन सभी पर यह एक शब्द चस्पा किया जा सकता है-अमीरी, अमीरी और अमीरी. मीडिया के पास इस तरह की खबरों को देने के अपने तर्क हो सकते हैं कि ‘लोग शानदार चीजें देखना पसंद करते हैं.’ लेकिन मुश्किल तब होती है, जब युवा अपने लिए भी ऐसी ही ‘ड्रीम वेडिंग’ का सपना देखने लगते हैं.
विराट कोहली और अनुष्का शर्मा जैसे स्टारों की यदि बात को छोड़ भी दें, तो आई.ए.एस. टॉपर टीना डाबी के शादी की भव्य खबरों ने मीडिया में जिस प्रकार स्थान पाया, वह एक चौंकाने वाली बात थी. कम से कम वे तो समाज के सामने सादगी का एक आदर्श प्रस्तुत कर ही सकती थीं. यहां इन्हें यह नहीं भूलना चाहिए था कि ‘सेलिब्रिटी’ नाम का यह ‘‘बिना ताज का ताज’’ लोगों ने ही उनके सिर पर रखा है. और यही वह कृत्य है, जो इस ताज को तब भी उनके सिर पर बनाये रखेगा, जब उनकी सेलिब्रिटी का दर्जा अतीत की एक स्मृति मात्र रह जाएगा. सवाल यह नहीं है कि समाज से आपने जुटाया कितना है, और कैसे है. बल्कि यह है कि आपके अपने आपको लुटाया कितना है और कैसे है. इस दृष्टि से मैं यहाँ सुनील दत्त जी को याद करना चाहूँगा.