एग्जाम टाइम: बच्चों को कैसे करें तनावमुक्त
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एग्जाम टाइम: बच्चों को कैसे करें तनावमुक्त

अभिभावक अपने-अपने स्तरों पर कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि बच्चों के भीतर परीक्षा के दौरान कोई अतिरिक्त तनाव पैदा न होने पाये और यदि हो भी जाता है, तो उसे कम किया जाए. इसके कुछ इस खास तरीके हैं, जो अपनाए जा सकते हैं.

एग्जाम टाइम: बच्चों को कैसे करें तनावमुक्त

परीक्षा के दिनों में बच्चों में जबर्दस्त तनाव की जो स्थिति देखने को मिलती है, पच्चीस-तीस साल पहले यह स्थिति इतनी भयावह नहीं थी. निःसंदेह रूप से बच्चों के तनाव की इस स्थिति के लिए सामाजिक और आर्थिक कारण मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं. इसकी भयावह परिणति उस समय दिखाई देती है, जब परीक्षाओं के परिणाम घोषित होते हैं.

विद्यार्थियों के तनाव के लिए दो बातें सबसे अधिक जिम्मेदार हैं. इसमें पहली है- उनकी महत्वाकांक्षा, जो समाज और उनके माता-पिता उनके भीतर पैदा कर देते हैं. और दूसरी है, उनकी सहनशीलता में कमी. इन दोनों का परिणाम अंततः उनके जीवन के तनाव के रूप में उनके अंदर स्थायी रूप से घर कर जाता है.

सीबीएससीई (CBSE) की परीक्षाओं का संबंध इस तनाव से इस बात को लेकर होता है कि यदि उनके नंबर कम आए, तो उन्हें अच्छे संस्थानों में दाखिला नहीं मिलेगा. हालांकि प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ के तहत स्टूडेन्ट्स से अपील की है कि वे अंकों के लिए परीक्षा न दें. लेकिन सच्चाई यह है कि अंकों के बिना उन्हें अपना भविष्य दिखाई नहीं देता.

तो ऐसे में सवाल यह है कि किया क्या जाए? दरअसल, जहां तक तनाव का सवाल है, हमें यह मानकर चलना चाहिए कि कुछ सीमा तक तनाव का होना उसी तरह अच्छा होता है, जिस तरह रक्त के दबाव का होना. लेकिन सीमा से अधिक दबाव जीवन को खतरे के किनारे तक पहुंचा देता है. ऐसी स्थिति में अब जबकि परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं, इस बारे में विद्यार्थियों से कुछ भी किए जाने की उम्मीद नहीं की जा सकती.

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अब यह सबकुछ अभिभावकों के ऊपर है कि वे अपने-अपने स्तरों पर कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि बच्चों के अंदर इस दौरान कोई अतिरिक्त तनाव पैदा न होने पाये और यदि हो भी जाता है, तो उसे कम किया जाए. इसके लिए कुछ इस तरह के तरीके अपनाए जा सकते हैं-

1. माता-पिता को चाहिए कि परीक्षा के इस पूरे दौर में और खासकर परीक्षा वाले दिन अपना अधिक से अधिक समय बच्चों को दें. साथ ही लगातार बच्चों से बातचीत भी करते रहें. बेहतर होगा कि उनकी पढ़ाई के बारे में कम से कम बातें की जाएं.

2. पेपर कैसा बना, चाहे वह बुरे से बुरा ही क्यों न हुआ हो, कोई नकारात्मक टिप्पणी न करें. उसे आप सामान्य तरीके से लेते हुए बच्चों का उत्साहवर्धन करने की हरसंभव कोशिश करें. बच्चे को यह एहसास कराना जरूरी है कि यदि पेपर खराब हो गया है, तो इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि जिन्दगी खराब हो गई है. यह सब केवल बोलकर ही नहीं, बल्कि अपने हाव-भाव से भी किया जाना चाहिए, ताकि बच्चे हमारे कहने पर विश्वास कर सकें. वे स्वयं को अपराधी समझने से बच सकें. इससे वे हल्का महसूस करेंगे.

इस दौरान बच्चों पर विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की जरूरत होती है. कोशिश यह होनी चाहिए कि वे कम से कम अकेले रहें. उदास होने की स्थिति में तो उसे अकेला बिल्कुल भी न छोड़ें. अपनी तरफ से हर वह कोशिश करें, जो उनकी उदासी को कम कर सकें.

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3. परीक्षा के दौरान बच्चे दबाव में रहते हैं. इसलिए उनका व्यवहार सामान्य नहीं रह जाता. इसलिए उनके गुस्से और चिड़चिड़ाहट को अन्यथा न लें. उस पर नकारात्मक प्रतिक्रिया करने की बजाए शान्त रहना बेहतर होता है.

4. बच्चों की दो बातों का विशेष रूप से ध्यान रखें- उनकी भूख और उनकी नींद. भूख का अर्थ ज्यादा से ज्यादा खिलाने से नहीं है. देखना यह होगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने खाना बिल्कुल बन्द कर दिया है. जहां तक नींद का सवाल है, वह सबसे अधिक जरूरी है. उसे अधिक से अधिक सोने के लिए प्रोत्साहित करें. यदि उसे नींद नहीं आ पा रही हो, तो डॉक्टर से सलाह लेने में हिचक नहीं करनी चाहिए.

5. बच्चे के भोजन में थोड़े से मीठे को जरूर शामिल करें, भोजन के बाद ही सही. इससे उसके शरीर और मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती रहेगी. बेहतर होगा कि बच्चे को इस बात के लिए तैयार करें कि वह अपने पॉकेट में हमेशा चॉकलेट या कुछ इसी तरह की मीठी चीज़ रखे. बच्चे को समझा दें कि जब भी उसे कमजोरी महसूस हो या डिप्रेशन जैसा कुछ लगे, वह इसे थोड़ा-सा खा ले. इससे उसकी समस्या बढ़ने से रुक जाएगी.

6. सावधानी के बतौर बच्चे के कुछ घनिष्ठ मित्रों से बीच-बीच में सम्पर्क बनाए रखना भी बेहतर होता है. उनसे आप अप्रत्यक्ष रूप से अपने बच्चे की मनःस्थिति के बारे जान सकते हैं.

ये तो तात्कालिक उपाय हैं. दीर्घकालिक उपायों के अन्तर्गत अभी से अभिभावकों को दो बातों के लिए संकल्प ले लेना चाहिए. पहला यह कि वे अपने बच्चों को प्यार के साथ लगातार इस बात के लिए प्रेरित करते रहेंगे कि वह सालभर धीरे-धीरे अपनी पढ़ाई करते रहें. इससे उसके दिमाग पर परीक्षा के समय पढ़ने का बोझ नहीं रह जाएगा. उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा. फलस्वरूप तनाव की स्थिति कम होगी. दूसरा यह कि व उसकी सहनशीलता को बढ़ाने का काम करें. आउटडोर गेम इसका एक अच्छा तरीका है.

हमें नहीं भूलना चाहिए कि अंततः अभी हम जो कुछ भी कर रहे हैं, वह सब अपने बच्चों के लिए ही कर रहे हैं. हम उन्हें अपना थोड़ा-सा अतिरिक्त समय देकर, अपने इस करने की गुणवत्ता और मूल्य को कई गुना बढ़ा सकते हैं.

(डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ लेखक और स्‍तंभकार हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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