अब थैले में गले-फटे पुराने मेडिकल रिकॉर्ड लेकर दौड़ने की जरूरत नहीं
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अब थैले में गले-फटे पुराने मेडिकल रिकॉर्ड लेकर दौड़ने की जरूरत नहीं

हमारे देश में तो रेल, हवाई जहाज या चिकित्सा के लिए इंजेक्शन के विरुद्ध भी अनर्गल बातें समझाने वाले लोग हैं. इसीलिए हर पहचान पत्र के नाम पर डर दिखाया जाता है. यदि आप कोई अपराध नहीं कर रहे हैं तो करोड़ों लोगों के साथ आपकी सेहत का विवरण भी दर्ज हो जाएगा तो क्या कोई नुक्सान हो जाएगा?

अब थैले में गले-फटे पुराने मेडिकल रिकॉर्ड लेकर दौड़ने की जरूरत नहीं

सचमुच जादुई बात लगती है. आपके पास एक निश्चित नंबर वाला छोटा सा पुर्जा होगा और आप अपनी या अपने परिजन की जान जल्दी से जल्दी बचाने का इंतजाम कर सकेंगे. अभी नंबर वाले कागज न होने से कोरोना के अलावा भी अन्य बीमारियों से अनेक लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ती है. यही नहीं कितने ही लोग दिल्ली या मुंबई में 25 से 50 लाख रुपये के खर्च से पांच सितारा अस्पताल में ऑपरेशन और इलाज के बाद किसी अन्य शहर या विदेश में जाकर बीमार हो जाएं तो समुचित रिकॉर्ड नहीं होने से दुगुने खर्च के बावजूद स्वास्थ्य के नए संकट का सामना नहीं कर पाते हैं. इस तरह की स्थितियों से रक्षा के लिए हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित राष्ट्रीय स्वास्थ्य पहचान पत्र योजना के सही ढंग से क्रियान्वित होने पर भारत में सामाजिक स्वास्थ्य की नई क्रांति हो सकेगी.

अच्छी बात है कि ये घोषणा केवल राजनीतिक वायदा या भाषणबाजी नहीं है. महीनों के उच्चस्तरीय विचार विमर्श और प्रारंभिक तैयारियों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता की रक्षा के संकल्प के साथ की. स्वतंत्रता और अखंडता की रक्षा केवल किसी सरकार या सेना से ही नहीं बल्कि देश के सभी नागरिकों के सशक्त होने, एकता और प्रगति से होती है. उनका स्‍वस्‍थ और शिक्षित होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. कुछ हफ्तों पहले सरकार नई शिक्षा नीति की घोषणा भी कर चुकी है. उस पर भी वर्षों तक सलाह मशविरा हुआ था. इसी तरह स्वास्थ्य डिजिटल पहचान पत्र के लिए लगभग दो वर्षों से राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के तहत विस्तृत विचार विमर्श हुआ.

पिछले कुछ सालों के दौरान भारत के श्रेष्ठतम डॉक्टरों ने दुनिया में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाई और दूसरी तरफ सरकारी आयुर्विज्ञान संस्थान के अलावा निजी क्षेत्र में भी अत्याधुनिक अस्पताल स्थापित हुए. इन्हें पांच सितारा अस्पताल भी कहा जाता है क्योंकि बहुत ज्यादा सुविधा सम्पन्न होने से इनका खर्च लाखों में होता है.

लेकिन निजी हों या सरकारी सबसे गंभीर समस्या ये रही है कि एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल जाने या देश-विदेश में फिर स्वास्थ्य की समस्या आने पर व्यक्ति के पास कोई कागज और रिकार्ड नहीं होता है. निजी क्षेत्र में तो दोबारा टेस्ट और एक्स रे आदि करवाने के लिए भी आदेश जारी हो जाता है. हमारे देश में कई नामी डॉक्टर तो मरीज द्वारा जिज्ञासा के लिए सवाल पूछने पर भी नाराज हो जाते हैं. उनके लिखे पर्चे को दूसरे डॉक्टर या केमिस्ट मुश्किल से पढ़ पाते हैं. अमीर हो या गरीब सभी मरीज गंभीर स्वास्थ्य समस्या के दौरान थैले में पिछले आधे गले फटे रिकॉर्ड लिए दौड़ते रहते हैं.

उत्तर प्रदेश के अस्पतालों की हालत और हिसाब-किताब पर लगभग पांच वर्ष पहले की सीएजी की एक रिपोर्ट में इस बात पर ध्यान दिलाया गया कि अस्पतालों में रोगियों की चिकित्सा का समुचित रिकॉर्ड नहीं मिलना अनुचित है. इसके बाद केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना के तहत लगभग 10 करोड़ 75 लाख गरीब परिवारों को पांच लाख रुपये तक का स्वास्थ्य कवर उपलब्ध करवाने के लिए डिजिटल व्यवस्था की तैयारी की गई. इसके आलावा 2022 तक डेढ़ लाख स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र स्थापित करने का कार्यक्रम बना है. वहीं टेलीमेडिसिन के प्रावधान और डॉयग्नोस्टिक लेबोरटरी सुविधाओं को उपलब्ध करवाया जाएगा. कोरोना काल में लेबोरेटरी बनने का काम युद्ध स्तर पर हुआ.

देश के बड़े निजी अस्पताल मैक्स, अपोलो, फोर्टिस आदि ने चिकित्सा के डिजिटल रिकॉर्ड बनाने का काम पहले से शुरू किया हुआ है लेकिन वो ये रिकॉर्ड अन्य अस्पतालों को नहीं देते हैं. प्रतियोगिता के साथ मरीजों के सामने उन पर ही निर्भर रहने की मजबूरी सी हो जाती है इसीलिए मोदी सरकार ने 2019 में नेशनल हेल्थ ब्लूप्रिंट बनाकर सार्वजनिक किया ताकि उस पर अधिकाधिक राय और सुझाव सामने आ सकें. इससे राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य सुरक्षा के कार्यक्रम बनाने में सुविधा हो रही है.

सरकार ने कुछ केंद्र शासित प्रदेशों में परीक्षण के तौर पर स्वास्थ्य पहचान पत्र के लिए काम शुरू कर दिया है. नेशनल डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम के अंतर्गत हेल्थ मास्टर डायरेक्टरी एंड रजिस्ट्री बनेगी. वेब हेल्थ पोर्टल, मोबाइल के लिए माई हेल्थ ऐप, कॉल सेंटर और हेल्थ सूचना एक्सचेंज स्थापित होंगे. इस महत्वाकांक्षी योजना को लेकर अभी से निजता के अधिकार और गोपनीयता के सवाल उठने लगे हैं. आधार कार्ड की अनिवार्यता ही नहीं जन गणना को लेकर भी ऐसी आपत्तियां उठाई जा रही हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि निजता के अधिकार की रक्षा होनी चाहिए लेकिन सरकार और भारत के विशेषज्ञ स्वयं इस बात को सुनिश्चित करेंगे. केवल भ्रम फैलाने और ऐसी क्रांतिकारी योजना को कानूनी दांव पेंच में फंसाने से करोड़ों भारतीयों के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है.

आजादी के 73 वर्षों में शिक्षा और स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं मिलने से देश के विभिन्न हिस्सों में सरकारी शैक्षिक और चिकित्सा के केंद्र दयनीय स्थिति में रहे हैं. संघीय व्यवस्था के कारण केंद्र और राज्य सरकारों ने अधिकतम बजट का प्रावधान नहीं किया इसीलिए नई योजना के क्रियान्‍वयन के लिए सरकारों को अधिकाधिक बजट का प्रावधान करना होगा. सरकारी अस्पताल की हालत ठीक होने पर निजी अस्पताल भी अधिक प्रतियोगी और आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था करेंगे.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य पहचान पत्र होने पर आप सोचिए कि सामान्य नागरिक को कितनी सुविधा हो जाएगी. मरीज के शरीर और स्वास्थ्य के रिकॉर्ड को उस कार्ड के एक नंबर से देश के किसी भी हिस्से में देखा जा सकेगा. आप गांव में जन्मे हों या महानगर में या फिर नौकरी और काम-धंधे से किसी उम्र में कहीं भी हों, कोई भी गंभीर स्वास्थ्य समस्या होने पर उस कार्ड के साथ जिस डॉक्टर के पास और अस्पताल में पहुंचेंगे, उन्हें ये जानकारी मिल सकेगी कि कभी आपको मलेरिया, बुखार, पेट, सांस, दिल या जिगर की कोई परेशानी हुई है या नहीं. इसके अलावा किन दवाइयों से उपचार हुआ है ये भी पता चलेगा. दुर्घटना की स्थिति में तो और भी आसानी होगी क्योंकि उस समय आप बोलने की हालत में भी नहीं होते हैं. इससे आपके जीवन की रक्षा करने के लिए चिकित्सा के सभी उपाय तत्काल किए जा सकेंगे.

याद रहे कि जन धन योजना में खाता खोलने और आधार कार्ड से जोड़ने पर एक वर्ग ने आपत्ति की थी लेकिन कोरोना के महासंकट के दौरान बीस करोड़ परिवारों को खातों में तत्काल छोटी ही सही आवश्यक धनराशि मिल सकी. आयुष्मान भारत के तहत लाखों लोगों को लाभ मिल रहा है. हमारे देश में तो रेल, हवाई जहाज या चिकित्सा के लिए इंजेक्शन के विरुद्ध भी अनर्गल बातें समझाने वाले लोग रहे हैं इसीलिए हर पहचान पत्र के नाम पर डर दिखाया जाता है.

यदि आप कोई अपराध नहीं कर रहे हैं तो करोड़ों लोगों के साथ आपकी सेहत का विवरण भी दर्ज हो जाएगा तो क्या कोई नुकसान हो जाएगा? जो अति ज्ञानी लोग गरीब लोगों की निजता की बात करते हैं वो अमेरिका, चीन, रूस, यूरोप या दुबई की यात्रा के वीसा के लिए पूरे खानदान की जानकारी और हेल्थ चेक अप के सारे रिकॉर्ड देने में शान समझते हैं. बहरहाल अब भारत के गांव से शहर तक के गरीब कम शिक्षित लोग अपना और देश का भला बुरा समझने लगे हैं. शिक्षा और स्वास्थ्य की नई क्रांति से देश का भविष्य अधिक सुरक्षित और खुशहाल हो सकेगा.

लेखक: पद्म श्री आलोक मेहता वरिष्ठ पत्रकार हैं.

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं.) 

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