भारत का क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ज्यादा चतुर निकला. फ्लड लाइट में टी20 क्रिकेट का रोमांच परोस कर वह जादुई कमाई करने में सफल रहा.
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आईपीएल का मौसम चल रहा है. क्रिकेट की यह लोकप्रिय लीग अपने पूरे शबाब पर है. वक्त बदल रहा है. लोगों का मिजाज बदल रहा है. चरित्र और संस्कार बदल रहे हैं. परिवर्तन वक्त की मांग है. इसके साथ चलना ही होता है. वक्त के साथ नहीं बदले तो भुला देने के लिए तैयार रहना चाहिए. आपको लोग निरस्त कर देंगे. टेस्ट क्रिकेट की नीरस होती बल्लेबाजी और 'ड्रॉ' रहने वाले मैचों से ऊब कर क्रिकेट प्रेमियों ने 50-50 ओवरों के क्रिकेट की राह पकड़ी तो पहले इसे पाजामा क्रिकेट कहा गया. वक्त की कमी, व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के बढ़ने और रोमांच की तलाश में उम्मीद झांकते लोगों की टी-20 क्रिकेट ने नई राहत दी. भले ही परंपरावादी इसे 'नकली' क्रिकेट या 'चड्डी क्रिकेट' कहते हों, पर आज तो इसी तरह के क्रिकेट का बुखार चढ़ रहा है. आजकल हम इसे आईपीएल का बुखार कह रहे हैं.
इंडियन प्रीमियर लीग को इंगलिश प्रीमियर लीग की तर्ज पर बनाया गया है. कैरी पैकर जैसे महारथी रात्रिकालीन क्रिकेट को जन्म देने वाले और क्रिकेटरों को पेशेवर और धनवान बनाने वाले बने, पर स्वयं उन्हें व्यावसायिक नुकसान उठाना पड़ा. भारत का क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ज्यादा चतुर निकला. फ्लड लाइट में टी20 क्रिकेट का रोमांच परोस कर वह जादुई कमाई करने में सफल रहा. आज दुनिया के क्रिकेट से प्राप्त धनराशि की 70 प्रतिशत कमाई भारत के कारण ही पैदा हो रही है. इसी कारण विश्व क्रिकेट में आज बीसीसीआई को दादा माना जाता है और उसी की पूरे विश्व क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था आईसीसी से अपनी बात आसानी से मनवा लेता है.
आईपीएल की सफलता ने विश्व क्रिकेट में भारत की व्यावसायिक कामयाबी के झंडे तो गाड़ ही दिए, पर साथ ही भारतीय क्रिकेट को कई तरह के दीर्घगामी लाभ पहुंचाने में सफल रहा. दुनिया भर के तेज गेंदबाज भारत के पाटा विकेटों पर गेंदबाजी करने के लिए आते हैं. पैसों की चकाचौंध उन्हें यहां आकर खेलने के लिए प्रेरित करती है. पहले भारतीय बल्लेबाज 145-150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार की गेंदों को विश्वसनीय तरीके से नहीं खेल पाते थे. पर डेल स्टेन, मोर्ने मोर्कल, मलिंगा, ट्रेंट बोल्ट, मैकलेनाघन जैसे तेज गेंदबाज भारत में आईपीएल में खेलते रहे हैं. इनकी गेंदों को खेलने की आदत पड़ने से भारतीय बल्लेबाजी में अभूतपूर्व गहराई आई है.
दूसरा फायदा भारतीय क्रिकेट को यह हुआ है कि भारत के पाटा विकेटों पर गेंदबाजी कर विश्व भर के प्रमुख तेज गेंदबाजों की रफ्तार व धार भोथरी हो चुकी है. कई घायल हो कर बाहर बैठ गए हैं. वे अपनी ताकत आईपीएल की धनराशि के लिए बचाए रखना चाहते हैं. अपने देश के लिए खेलने में उनकी दिलचस्पी कम हो गई है. पैसे के बल पर केवल भारत ही अपने सितारा खिलाड़ियों को देश के लिए खेलने के लिए प्रतिबद्ध रहने के लिए प्रेरित कर सका है. इस कारण विश्व क्रिकेट का संतुलन बदल गया है. भारत अब विश्व क्रिकेट के सिंहासन पर बैठा है. टेस्ट क्रिकेट में भारत नंबर 1 बन गया है.
यूं कहने के लिए क्रिकेट का खेल बल्ले व गेंद के बीच का संघर्ष है. खेल को दिलचस्प बनाने के लिए जरूरी है कि इस संघर्ष के लिए नियमों का संतुलन बरकरार रहे. पर टी-20 क्रिकेट ने इस परिभाषा को ही बदल दिया है. गेंद पर बल्ला हावी हो गया है. और इसके लिए टी20 के नियम जिम्मेदार हैं. आईपीएल के भागीदार चाहते हैं कि चौके और छक्के देखने के लिए लालयित दर्शकों की मुराद पूरी हो. चाहे गेंदबाजों की कितनी ही दुर्दशा क्यों न हो रही हो. जब मिसहिट या स्ट्रोक का टाइमिंग गलत होने पर भी छक्का चला जाता है तो आप जानते हैं कि कहीं गड़बड़ है और गेंदबाजों के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है. बाउंड्री अगर 55-60 मीटर कर दी गई है, तो गलत स्ट्रोक भी छह रन के लिए जाएंगे ही. अत: खेल के संतुलन के लिए जरूरी है कि बाउंड्री लाइन दूर रखी जाए, जैसा कि टेस्ट क्रिकेट में होता है.
टी20 और आईपीएल ने क्रिकेट में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए हैं. खेल अब धर्म नहीं केवल मनोरंजन का साधन बन गया है. ऐसे असंख्य युवक-युवतियां व आमजन आईपीएल के कारण क्रिकेट से जुड़ गए हैं, जो पहले क्रिकेट से रिश्तेदारी नहीं रखते थे. आईपीएल के कारण इतना रोजगार पैदा हो गया है कि आप दांतो तले उंगली दबा सकते हैं. वर्तमान में रिटायर्ड क्रिकेटरों की तो चांदी हो गई है. कई क्रिकेटर करोड़ों में खेलने लगे हैं, जिन्हें कभी भी भारतीय क्रिकेट में मौका नहीं मिल सकता था.
वर्तमान में चल रहे आईपीएल में महेंद्र सिंह धोनी की क्षमता ने सभी को चौंका रखा है. लगता है, बढ़ती उम्र के साथ वह जवान होते जा रहे हैं. विराट कोहली भी दिखा रहे हैं कि क्यों उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज कहा जाता है. लेकिन पाटा विकेटों पर गेंदबाज अपनी चमक बिखेर नहीं पा रहे हैं. खेल का प्रारूप और नियम ही ऐसे हैं कि गेंदबाज अपने हाथ पांव बंधे हुए महसूस करता है. 3 घंटे की किसी फिल्म की तरह आईपीएल अपना रोमांच दिखा रहा है और दर्शक हैं कि 'पैसा फेंक तमाशा देख' की तर्ज पर स्टेडियमों में भीड़ लगाते जा रहे हैं.
पर क्या आईपीएल जैसा खेल असली क्रिकेट यानी टेस्ट क्रिकेट की लोकप्रियता की जिंदा रहने देगा? परंपरागत क्रिकेट के गर्व में नहाए क्रिकेट प्रेमी इसी यक्ष प्रश्न का जवाब ढूंढ रहे हैं.
(लेखक प्रसिद्ध कमेंटेटर और पद्मश्री से सम्मानित हैं.)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)