सुनील गावस्कर ने जिस रवि शास्त्री के लिए झेलीं तोहमतें, अब वही दिखा रहे आंख
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सुनील गावस्कर ने जिस रवि शास्त्री के लिए झेलीं तोहमतें, अब वही दिखा रहे आंख

भारतीय क्रिकेट में रवि शास्त्री के लगातार बढ़ते कद ने उन्हें अति आत्मविश्वास दिला दिया है. अब वह उन पर वार करने से नहीं चूक रहे, जिन्हें कभी अत्यंत इज्जत की दृष्टि से देखते थे.  

रवि शास्त्री (बाएं) ने 1981 में सुनील गावस्कर की कप्तानी में ही पहला टेस्ट मैच खेला था. (फाइल फोटो)

कलियुग में कुछ भी हो सकता है. अब ना गुरु की वह साख रह गई है और ना ही चेले की वह निष्ठा. अब एकलव्य, गुरु को अंगूठा काटकर निष्ठा जताने का प्रयास नहीं करता. अब एकलव्य, गुरु को अंगूठा दिखाने का प्रयास करता है. भारतीय क्रिकेट टीम के प्रशिक्षक रवि शास्त्री ने सुनील गावस्कर का नाम लिए बिना जो फब्तियां उन पर कसीं, उससे क्रिकेट जगत हैरान है. रवि शास्त्री को हमेशा ‘सनी’ के खेमे का ही उम्मीदवार माना जाता रहा है. पर भारतीय क्रिकेट में रवि शास्त्री के लगातार बढ़ते कद ने उन्हें अति आत्मविश्वास दिला दिया है. अब वह उन पर वार करने से नहीं चूक रहे, जिन्हें कभी वह अत्यंत इज्जत की दृष्टि से देखते थे.

आखिर विवाद कहां से शुरू हुआ. सुनील गावस्कर बहुत ही भावुक व्यक्ति हैं और साथ ही भारतीय क्रिकेट के हितैषी भी. ऑस्ट्रेलिया के हाल ही के दौरे के समय जब भारतीय टीम दूसरे टेस्ट मैच में पराजित हो गई, तो ‘सनी’ ने टीम प्रबंधन पर पराजय की जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ा और साथ ही प्रशिक्षक व कप्तान की काबिलियत का पुन: आकलन करने का तर्क प्रस्तुत किया. शब्दों के मास्टर रवि शास्त्री तुरंत नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि लाखों मील दूर बैठे लोग वस्तुस्थिति से नावाकिफ हैं और उन्हें ऐसी आलोचना नहीं करनी चाहिए. रवि शास्त्री ने ‘सनी’ का नाम नहीं लिया, पर उनका इशारा उनकी तरफ ही था, जिसे क्रिकेट के क्षेत्रों में तुरंत समझ लिया गया. सभी हैरान भी थे कि रवि शास्त्री क्या आलोचना से इतने हिल गए कि भारतीय क्रिकेट के शलाका पुरुष सुनील गावस्कर पर फब्तियां कसें?

कहते हैं कि जब आप जीत हासिल कर लेते हैं तो आत्मविश्वास के रसायन इस तरह शरीर में बहने लगते हैं कि फिर आप आगे-पीछे नहीं सोचते. इसीलिए कहा भी जाता है कि बहुत खुशी में या बहुत गम में कभी कोई निर्णय नहीं करना चाहिए. ऐसा निर्णय अक्सर दुखद व गलत होता है. रवि शास्त्री ने तो यहां तक कह दिया कि कोई निश्चित एजेंडा पर चलते हुए हुए आलोचना करेगा, तो वह उसका कड़े शब्दों में प्रतिकार करेंगे, चाहे आलोचना करने वाला कोई शालाका पुरुष या ‘लीजेंड’ ही क्यों ना हो? क्रिकेट जगत के सभी लोग समझ गए कि जिस ‘लीजेंड’ की वह बात कर रहे हैं वह सुनील गावस्कर ही हैं. सुनील गावस्कर ने तो इस विषय पर खामोशी ओढ़े रखी, पर रवि शास्त्री का यूं मुखरता के साथ जवाब देना क्रिकेट के जानकारों को चौंका गया.

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रवि शास्त्री की किस्मत अच्छी है कि भारतीय कप्तान विराट कोहली भी उनके पाले में ही है व उनका समर्थन करते हैं. पर सवाल तो फिर भी उठता है कि क्या भारत का इतिहास पुरुष आपकी गलतियों पर सवाल भी नहीं उठा सकता? ‘सनी’ ने अगर सलाह दी, तो भारतीय क्रिकेट के भले के लिए ही दी थी. उनकी मंशा किसी एजेंडे के तहत शास्त्री या विराट कोहली की आलोचना करने की तनिक भी नहीं थी. 

मुझे याद है कि जब सुनील गावस्कर कप्तान थे और देश की कई प्रतिभाओं को अनदेखा करके रवि शास्त्री को भारतीय टीम में चुनवा देते थे, तब ‘सनी’ पर ना जाने कितने ही आरोप लगते थे. रवि शास्त्री के समकक्ष कई पुराने खिलाड़ी मेरे भी मित्र हैं. वे अक्सर कहते हैं कि ‘सनी’ का रुख अगर शास्त्री की तरफ ना होता, तो वे लंबे समय तक क्रिकेट की दुनिया में न छाए रहते. इसका मतलब यह नहीं है कि शास्त्री में प्रतिभा की कमी थी. उन्होंने इमरान खान के खिलाफ पाकिस्तान जाकर शतक लगाया हुआ है. उनकी लेफ्ट आर्म स्पिन गेंदबाजी भी आला दर्जे की थी. मैं तो केवल उस प्रताड़ना व तोहमतों की बात कर रहा हूं, जो सुनील गावस्कर को रवि शास्त्री के चुने जाने के एवज में मिलती रहती थी. दोनों मुंबई के हैं. तब मुंबई का क्रिकेट देशभर में छाया हुआ था. उत्तर के खिलाड़ी उनसे थोड़ी ईर्ष्या इस कारण पालते थे कि टीम के चयन में मुंबई का पलड़ा भारी रहता था. दिल्ली के खिलाड़ी अक्सर यह कहते थे कि काश मुंबई में होते, तो कभी के भारतीय टीम में चुने जाते और जमे रहते. 

यह नहीं भूलना चाहिए कि ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट की बल्लेबाजी का स्तर आज उनके क्रिकेट इतिहास की सबसे दयनीय बल्लेबाजी को छू रहा है. इस टीम को दक्षिण अफ्रीका ने हाल ही में बुरी तरह पटकनी दी थी. अत: भरात की जीत को जरूरत से ज्यादा बड़ी करके देखना खुद की शक्ति का गलत आकलन होगा. इसी मायने में रवि शास्त्री का ‘सनी’ के खिलाफ बढ़-चढ़कर बोलना क्रिकेटप्रेमियों को तनिक भी रास नहीं आया है. बिना विवाद के दिलचस्पी क्या? पर केवल दिलचस्पी के लिए तो विवाद पैदा नहीं होना चाहिए ना!

(लेखक प्रसिद्ध कमेंटेटर और पद्मश्री से सम्मानित हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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