चंद महीने दूर वर्ल्डकप से पहले भारी न पड़ जाए धोनी की अनदेखी
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चंद महीने दूर वर्ल्डकप से पहले भारी न पड़ जाए धोनी की अनदेखी

दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी एबी डिविलियर्स ने हाल ही में धोनी की अदभुत क्षमता का बखान करते हुए कहा था कि अगर धोनी व्हीलचेयर पर हों तो भी मैं उन्हें अपनी टीम में शामिल करूंगा.

चंद महीने दूर वर्ल्डकप से पहले भारी न पड़ जाए धोनी की अनदेखी

सुशील दोषी : अपनी प्रतिभा के प्रति आक्रोश हम भारतीयों की पुरानी आदत है. दुनिया भर के खेल जानकार कहते हैं कि खेल से बड़ा कोई नहीं. पर भारतीय चयनकर्ता अपने कार्यकलापों से यह जताते हैं कि होंगे आप बहुत बड़े खिलाड़ी, पर हम से बड़ा कोई नहीं. भारतीय क्रिकेट के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ कप्तान रहे महेंद्र सिंह धोनी के प्रति भारतीय चयनकर्ताओं का व्यवहार यही दर्शाता है. वेस्ट इंडीज के खिलाफ खेली जाने वाली टी20 सीरीज व ऑस्ट्रेलिया जा रही टी20 सीरीज के लिए चुनी गई टीम इंडिया में से महेंद्र सिंह धोनी का नाम गायब है. इस निष्कासन ने पूरी क्रिकेट की दुनिया को चौंका दिया है. प्रख्यात दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी एबी डिविलियर्स ने हाल ही में धोनी की अदभुत क्षमता का बखान करते हुए कहा था कि अगर धोनी व्हीलचेयर पर हों तो भी मैं उन्हें अपनी टीम में शामिल करूंगा. भारतीय चयनकर्ताओं को लगता है यह बात अच्छी नहीं लगी.

एक बड़ी लॉबी धीरे धीरे महेंद्र सिंह धोनी के खिलाफ लगातार जहर उगल रही थी. उनका हमेशा से ये आरोप रहता था कि धोनी में अब मैच जिताने की पुरानी ताकत नहीं रही. उन्हें यह भी लगता था कि धोनी उम्र के साथ शिथिल पड़ गए हैं. किस खिलाड़ी का बुरा फॉर्म का वक्त नहीं आता. क्रिकेट के महानतम ओपनिंग बल्लेबाज सुनील गावस्कर या क्रिकेट के भगवान के कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर को भी तो ऐसे बुरे वक्त का सामना करना पड़ा था. कहते हैं न कि खिलाड़ी का फॉर्म अस्थाई होता है. पर उसका स्तर या क्लास स्थाई होता है. फॉर्म आता जाता है रहता है. पर अंतत: जीत तो गुणवान के गुणों की ही होती है. इधर, महेंद्र सिंह धोनी को निष्कासित किया गया, उधर तीसरे एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच में वेस्ट इंडीज के खिलाफ उन्होंने जो अद्भुत कैचेज लिए व स्टंपिंग की, उसने नौजवानों को भी शर्मिंदा कर दिया.

महेंद्र सिंह धोनी की मैच जिताऊ बल्लेबाज के छवि इतनी मजबूत है कि जब वह मैच जिता देते हैं तो लग कहते हैं कि इसमें कौन सी बड़ी है. यह तो उनका काम ही था. पर जब मैच नहीं जिता पाते हैं, तब पराजय का ठीकरा उनके सिर पर फोड़ने के लिए लोग आतुर रहते हैं. धोनी की पैनी नजर की दुनिया इतनी दीवानी है कि एक कुशल मार्गदर्शक के रूप में उनकी निर्णायक भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता.

लोग कहते हैं कि उम्र के साथ नजर कमजोर होती है. शारीरिक प्रतिक्रियाएं कुछ शिथिल पड़ जाती हैं. बढ़ती उम्र के साथ उनके प्रति ये बातें तो उनके आलोचक जरूर निकालते हैं, पर स्टंपिंग करते वक्त 0.16 सेकंड में काम कर देने को वे नजरअंदाज कर देते हैं. यह दोहरा मापदंड दर्शाता है कि भारतीय चयनकर्ता अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं. आजकल जमाना ही ऐसा आ गया है. मामूली व अनजान से खिलाड़ी चयनकर्ता बन बैठे हैं और क्रिकेट के महारथियों को सीख देने की हिमाकत कर रहे हैं. यही हाल हिंदी कमेंटरी करते वक्त कई मामूली खिलाड़ी कर रहे हैं. भारतीय क्रिकेट में भी कमतर की बेहतर पर जीत की कहानी चल रही है. भाग्य से भारतीय क्रिकेट के कई जानकार बहुत जागरूक हैं और सच्चाई व अच्छाई के प्रति उनकी जिद भी बरकरार है. इसलिए अच्छाई को दबाने की किसी भी आवाज के सामने खिलाफत के स्वर तुरंत उभरने लगते हैं.

यह सही है कि हमें अत्याधिक भावुक नहीं होना चाहिए. यह भी सही है कि सितारों के प्रति हमारा मोह कभी खत्म नहीं होता. पर यह भी सही है कि कोई खिलाड़ी केवल इसलिए बाहर नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि उसकी उम्र बढ़ गई है. बात केवल प्रदर्शन व क्लास या स्तर की होनी चाहिए. सितारे अस्त होते हैं और नए खिलाड़ी उभरते ही हैं. लोगों ने सोचा था गावस्कर व कपिल देव के बाद भारतीय क्रिकेट का क्या होगा. पर तेंडुलकर, सहवाग, द्रविड़, विराट कोहली दृश्यपटल आए और उभरे भी. लोग यह भी कहते थे कि प्रसन्ना, बेदी व चंद्रशेखर की स्पिन तिकड़ी के बाद क्या होगा. पर अनिल कुंबले व हरभजन सिंह ने मोर्चा संभाला ना. कपिल देव के बाद जहीर खान बुमराह, भुवनेश्वर कुमार, शमी, ईशांत शर्मा उभरकर आए, यह हमने देखा. धोनी की जगह ऋषभ पंत व दिनेश कार्तिक के नाम लिए जा रहे हैं. पर क्या विकेटकीपिंग के स्तर व दिमागी तीक्ष्णता में ये धोनी के पासंग में भी बैठ सकेंगे.

आज भारतीय क्रिकेट में बल्लेबाजी की हालत यह है कि विराट कोहली की विस्मयकारी बल्लेबाजी पर सबकुछ आधारित हो गया है. विराट जल्दी गए कि टीम गई. यह स्थिति तब बन रही है कि जब अगला वर्ल्ड कप 7 महीने दूर है. दबावों को झेलने के लिए तजुर्बे की जरूरत होती है. ऐसे में धोनी की काबिलियत व तजुर्बे को नजरअंदाज करना घातक सिद्ध हो सकता है. अगला विश्वकप इंग्लैंड में होने वाला है. वहां परिस्थितियां भारत की तरह आसान नहीं होंगीं. गेंदबाजों को मदद मिलेगी व बल्लेबाज संघर्ष करते नजर आएंगे. ऐसे में अनुभव और तकनीक प्रमुख अस्त्र हो सकते हैं. बल्लेबाजी में सफलता के लिए भारतीय चयनकर्ता अगर इन बातों का ख्याल रखेंगे तो भारत दौड़ में बना रहेगा. अन्यथा हार या जीत किसी भी स्थिति में पैसा कूटने वालों को क्या फर्क पड़ेगा.

(लेखक प्रसिद्ध कमेंटेटर और पद्मश्री से सम्मानित हैं.)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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