ज़माने ज़माने की बात
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ज़माने ज़माने की बात

आज़ादी की क़ीमत बड़ी महंगी पड़ रही थी, सारा जोश, सारा उत्साह धराशायी हुआ जाता था जिसमें मेरे गाँव के वाशिन्दे शामिल थे. गांव एक जाति और एक धर्म से बंधा नहीं होता. मेरे गांव में भी सातों जातियां और हिन्दू तथा मुसलमान नाम के धर्म थे. 

ज़माने ज़माने की बात

मैं जिस समय की बात कर रही हूँ वह आज से कुछ ज़्यादा दूर है, ऐसा नहीं है. वह कोई पौराणिक युग या मुग़लिया सल्तनत का समय नहीं है और न अंग्रेज़ों की हुकूमत वाले दिन. यह हमारे आज़ाद भारत का ही ज़िक्र है. हां इन्हें आज़ादी मिलने के निकट के दिन मान सकते हैं. तब जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे - पहले प्रधानमंत्री. तब महात्मा गांधी की हत्या का शूल नागरिकों की छाती में गड़ा हुआ था. तब देश के बंटवारे ने भी लोगों के कलेजे चीरकर धर दिये थे.


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