आठ साल पहले हाईकोर्ट में प्रबंधंकों की नियुक्तियों का काम शुरू भी हुआ था. लेकिन सार्वजनिक तौर पर ज्यादा पता नहीं चला कि हो क्या रहा है.
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सुप्रीम कोर्ट अपने कामकाज की रफ़्तार को लेकर चिंतित दिख रहा है. भारत के मुख्य न्यायाधीश ने यह चिंता महीने भर के भीतर दो बार जताई. अदालती कामकाज को तेज करने के मकसद से न्यायालयों में मैनेजरों की नियुक्ति के लिए बाकायदा कार्रवाई भी की गई. अगस्त के पहले हफ़्ते में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य प्रशासन को निर्देश जारी किए. राज्यों को निर्देश दिए गए कि उच्च न्यायालयों में प्रशिक्षित कोर्ट मैनजरों की भर्ती सुनिश्चित कराएं. अभी पिछले हफ़्ते एक आयोजन में देश के मुख्य न्यायाधीश ने प्रबंधकों की नियुक्ति पर फिर जोर दिया. हालांकि अदालतों में प्रशिक्षित प्रबंधकों की नियुक्ति की बात नई नहीं है. आठ साल पहले हाईकोर्ट में प्रबंधंकों की नियुक्तियों का काम शुरू भी हुआ था. लेकिन सार्वजनिक तौर पर ज्यादा पता नहीं चला कि हो क्या रहा है. दिक्कत कहां आ रही है. सुप्रीमकोर्ट के नए निर्देश जिला न्यायालयों में भी नियुक्तयों के लिए हैं. बहरहाल आज जब अदालतों में कोर्ट प्रबंधकों की नियुक्ति की बात इतनी शिद्दत से की जा रही है तो इस मसले पर गहराई से सोच विचार होना चाहिए.
देश की न्याय व्यवस्था की दक्षता का सवाल
लोकतंत्र में इस तरह का सवाल उठने की गुंजाइश न पहले कभी थी और न आज है. लेकिन जब यह सवाल खुद उसी व्यवस्था की तरफ से उठा हो तो बेशक यह गुंजाइश निकल आई है. भारतीय अदालतों में दो करोड़ से ज्यादा मुकदमे विचाराधीन हैं. यह कहावत हमेशा से दोहराई जाती है कि न्याय में देरी का मतलब है, न्याय न करना. बहरहाल, इस समय सर्वोच्च न्यायालय न्याय प्रदान करने में विलंब से चिंतित है. और इसी मकसद से वह चाह रहा है कि अदालतों में प्रशिक्षित प्रबंधकों की नियुक्तियां हों और ये प्रबंधक गैरन्यायिक कार्यों को सलीके से निपटाने में अपनी विशेषज्ञ सेवाएं दें. यानी यह स्वीकारा जा रहा है कि न्याय में विलंब की समस्या का समाधान प्रबंधन प्रौद्योगिकी में निहित है. इसी महीने के पहले हफ्ते् सुनवाई के दौरान न्यायालयों की प्रबंधन व्यवस्था में पेशेवर लोगों की सेवाएं लिए जाने के निर्देश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये कोर्ट मैनेजर जजों को एडमिनिस्ट्रेटिव काम से मुक्त करेंगे, जिससे जज अपना मूल काम कर पाएं जो कि न्यायिक काम है. उसके हफ्ते् भर बाद ही यानी पिछले रविवार को एक आयोजन में मुख्य न्यायाधीश ने यह बात फिर से दोहराई.
बात नई नहीं है
कोर्ट मैनेजर्स या न्यायालय प्रबंधकों की यह बात कोई आज ही नहीं उठी है. बल्कि कोर्ट मैनेजर की नियुक्ति के लिए बाकायदा एक योजना 2010 में बना ली गई थी. उस पर काम भी शुरू हुआ था. पिछले साल यानी 2017 में देश के कानून मंत्री ने सभी हाई कोर्ट्स के मुख्य न्यायाधीशों को चिट्ठी लिख कर इन कोर्ट प्रबंधकों की नियुक्तियों की प्रक्रिया को तुरंत पूरा करने की बात कही थी. उस चिट्ठी में लिखा गया था कि कोर्ट प्रबंधकों को नियुक्त करने की योजना 2010 से बनी हुई है. यहांं तक कि तेरहवें फाइनेंस कमीशन ने कोर्ट प्रबंधकों की नियुक्तियों के लिए 300 करोड़ रुपये आवंटित भी किये थे. लेकिन अभी तक इस रकम का 15 फीसद हिस्सा भी खर्च नहीं हो सका है. सन 2017 की एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक 24 में से 19 हाई कोर्ट द्वारा कोर्ट मेनेजर के पद सृजित किये गए. बाकी 5 में से दिल्ली, सिक्किम और जम्मू कश्मीर के न्यायालयों ने कोर्ट प्रबंधक नियुक्त ही नहीं किए. आंध्र प्रदेश और पंजाब ने पैसे की कमी का हवाला देते हुए यह काम बंद कर दिया. बहरहाल अब सीधे जि़ला न्यायालयों में भी प्रशिक्षित प्रबंधकों की नियुक्तियों के निर्देश के बाद न्याय व्यवस्था में प्रबंधन प्रौद्योगिकी की उपयोगिता का विश्लेषण करने का यह सही मौका है. सर्वोच्च न्यायालय की सक्रियता हमें, खासतौर पर प्रबंधंन प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञों को भी संदेश दे रही है कि वे भी सोच विचार करें जिससे न्यायालयों में प्रबंधंन का काम सुचारू रूप से होने लगे.
प्रबंधन प्रोद्योगिकी है क्या
प्रबंधन प्रौद्योगिकी के छात्रों को पहले दिन प्रबंधन की परिभाषाएं बताई जाती हैं. जिसमें सबसे पहली होती है. ‘A systematic method of getting things done by others and with others’. व्यवस्थित रूप से काम को कराने और करने की प्रक्रिया को प्रबंधन कहते हैं. काम किसी भी क्षेत्र का हो उसे शुरू करते समय यह देखा जाता है कि किस तरीके से काम करें जिससे समय, श्रम और धन की बचत हो और वांछित परिणाम आ जाएं. प्रबंधन प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ इसी प्रक्रिया के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. इसीलिए अब कॉर्पोरेट के आलावा भी कई क्षेत्रों में प्रबंधन विशेषज्ञों की मांग बढ़़ती जा रही है. शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति यहाँ तक की सामज सेवी संस्थाओं तक में पेशेवर प्रबंधकों को नियुक्त किया जाना अब शुरू हो गया है. इसीलिए अगर देश की न्याय प्रणाली ने भी प्रबंधन प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से अपनी व्यवस्था में बदलाव लाना चाहा है तो हर कोई कहेगा कि यह अच्छा कदम है.
कोर्ट प्रबंधकों की व्यवस्था के मौजूदा हालात
सन 2010 में बनी योजना के अनुसार अभी भी उच्च न्यायालयों में कोर्ट मैनेजर के पद उपलब्ध हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 24 उच्च न्यायालयों के मातहत सभी न्यायालयों में 700 पद प्रस्तावित थे. इनमें से देर सबेर 462 पद सृजित किए गए. हालांकि ये आंकड़े उपलब्ध नहीं है कि इनमें कितने पद भरे गए और कितने काम छोड़कर चले गए? और क्यों छोड़ गए? हालांकि सन 2017 में लिखे गए एक शोध आलेख के मुताबिक इन प्रबंधंकों से इतर एक आंकड़ा जरूर उपलब्ध है कि देश में कोई 20,502 स्वीकृत जजों के पद हैं. लेकिन कोर्टरूमों की संख्या सिर्फ 16,513 है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है न्याय प्रणाली पर पहली नज़र में दबाव कहां है. इस तथ्य के मद्देनज़र यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि 20 हजार अदालतों के लिए चार पांच सौ प्रबंधकों की संख्या कितनी कारगर होगी. वैसे मसला प्रबंधंकों की संख्या का भी उतना बड़ा नहीं है. इसके अलावा भी कई दुश्वारियां हैं.
अब तक दिक्कत क्या आई-
उच्च न्यायालयों में प्रबंधक नियुक्त करने के लिए सरकार की तरफ से एक सर्कुलर जारी हुआ था. इसमें बस एक मोटा-मोटा खाका दिया गया था कि कोर्ट प्रबंधकों से क्या सेवाएं अपेक्षित हैं. इस सर्कुलर में प्रबंधन प्रौद्योगिकी के हिसाब से स्पष्ट और व्यवस्थित कार्यों की सुगठित सूची नहीं थी. प्रबंधन की भाषा में इन कार्यों की सूची को जॉब प्रोफाइल कहते हैं. सर्कुलर में नीति और मानक, योजना, मानव संसाधन प्रबंधन, केस प्रबंधन आदि जैसे कार्यों का सरसरी तौर पर ही जि़क्र था. जबकि जरूरत उन कार्यों की स्पष्ट परिभाषा और व्याख्या करने की थी. कम से कम न्यायालयों के अधिकारियों को तो उस सर्कुलर पर चर्चा करके अपनी ज़रुरत के हिसाब से उन्हें विस्तृत कर लेना चाहिए था. लगता है उस सर्कुलर को अदालती निर्देश की तरह हूबहू स्वीकार कर लिया गया. दिक्कत यह रही कि उस सर्कुलर में प्रबंधकों की संख्या, उनका वेतन, टीम की संरचना, अदालत में विभिन्न पदों के हिसाब से उनकी हायरार्की यानी पदक्रम, किसे रिपोर्ट करना है, उनके निर्दिष्ट काम आदि जैसे ब्योरे गायब थे. यानी अब अगर कोर्ट मेनेजर की नियुक्त का काम वाकई आगे बढ़ाना है तो नियुक्ति शुरू करने से पहले उस प्रबंधक का कार्यक्षेत्र और कार्यों की सुगठित सूची यानी जॉब प्रोफाइल बनाने का काम सबसे पहले किया जाना चाहिए. मौजूदा प्रशासनिक अधिकारियां के लिए यह काम चुनौतीपूर्ण इस तरह से हैं कि जॉब प्रोफाइल और जॉब डिसक्रिप्शन तैयार करने का काम भी प्रबंधन प्रौद्योगिकी के पेशवरों का कार्य है. लिहाज़ा प्रशासनिक अधिकारियों को यह समझना पड़ेगा कि प्रबंधक के मुख्य कार्य क्या हैं? वे क्या पढ़कर और प्रशिक्षण पाकर प्रशिक्षित प्रबंधक बनते हैं?
(जारी)
(लेखिका, प्रबंधन प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और सोशल ऑन्त्रेप्रेनोर हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं)