गौतम गंभीर ही क्यों, दुनिया भर के क्रिकेटर टेस्ट क्रिकेट पर आसन्न खतरे से निपटने के लिए तरकीबें सुझा रहे हैं. कुछ तरकीबों पर तो अमल भी शुरू हो गया है.
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गौतम गंभीर अक्सर गंभीर किस्म की टिप्पणियां करते हैं. आप उनसे असहमत हो सकते हैं, पर उनके विचारों को निरस्त नहीं कर सकते. टी-20 क्रिकेट के आकर्षण व प्रलोभनों में क्रिकेट तंत्र के फंसने के कारण टेस्ट क्रिकेट की लोकप्रियता व अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है. इसलिए गौतम कह रहे हैं कि बीसीसीआई टेस्ट क्रिकेट की मार्केटिंग ठीक से नहीं कर पाई.
गौतम गंभीर ही क्यों, दुनिया भर के क्रिकेटर टेस्ट क्रिकेट पर आसन्न खतरे से निपटने के लिए तरकीबें सुझा रहे हैं. कुछ तरकीबों पर तो अमल भी शुरू हो गया है कि टेस्ट मैच दिन की बजाए रात में दूधिया रोशनी में खेले जाएं. यह भी सुझाव प्रयोग के तौर पर अमल में लाया गया है कि गेंद का रंग सफेद की बजाए गुलाबी हो. सोच यह थी कि इससे दर्शक टेस्ट क्रिकेट के प्रति आकर्षित होंगे. परपंरागत क्रिकेट के पक्षधर ऐसे किसी भी बदलाव के विरोध में हैं. उनके अनुसार, टेस्ट क्रिकेट की असली क्रिकेट है. जिस धर्म की तरह जीवन जीने का तरीका भी कहा जाता है. उनके अनुसार क्रिकेट की गौरवशाली परंपरा के साथ छेड़छाड़ उचित नहीं है.
इस वर्ष के अंत तक भारत को ऑस्ट्रेलया का अहम दौरा करना है. इस दौरे पर दुनिया भर की निगाहें रहेंगी. क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने सुझाव दिया था कि इस दौरे पर खेले जाने वाले एडिलेड टेस्ट को दिन रात के टेस्ट में तब्दील कर दिया जाए. साथ ही बॉल का रंग गुलाबी रखा जाए. सीओए प्रमुख ने क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया का ये सुझाव ठुकरा दिया. कहा भारतीय खिलाड़ी इसके लिए अभी तैयार नहीं हैं. उनके इस बयान पर दुनिया भर में विवाद छिड़ गया है. ऑस्ट्रेलिया के कई खिलाड़ियों ने इसकी आलोचना करते हुए कहा है कि भारत किसी भी कीमत पर जीत की सोच के साथ अड़ा हुआ है और उसे टेस्ट क्रिकेट के ढहते हुए किले की परवाह नहीं है.
भारतीय क्रिकेटर हरभजन सिंह का भी कहना है कि भारत को डे नाइट टेस्ट मैच खेलने से इनका नहीं करना चाहिए था. उनका मानना था कि अगर मिचेल स्टार्क और हेजलवुड डे नाइट टेस्ट में फ्लड लाइट में गुलाबी गेंद को ज्यादा स्विंग या कट कराने का माद्दा रखते हैं, तो भारतीय तेज गेंदबाज भी किसी से कम नहीं हैं और वह भी परिस्थितियों का लाभ उठा सकते हैं.
विनोद राय के यह कहने में तो दम है कि जीतने की अदम्य इच्छा रखना कोई बुरी बात तो नहीं है. वर्षों बाद विगत पांच सालों में ऐसी स्थिति बनी है कि भारतीय टीम विदेशों में जाकर विरोधी टीमों को आंखें दिखा रही है. इसका मुख्य कारण है कि तेजस्वी तेज आक्रमण और निर्भय बल्लेबाजी. दूसरा कारण ये है कि दुनिया भर के विकेट या गेंदपट्टियां बल्लेबाजों के हिसाब से बनाई जाने लगी हैं.
इसके साथ ही क्रिकेट की दुनिया में गेंदबाजी का स्तर काफी गिर गया है. इसलिए हम न्यूजीलैंड और इंग्लैंड छोड़कर देख रहे हैं कि सभी जगह गेंद पर बल्ला हावी है. यहां तक कि गेट मनी के आकर्षण को देखते हुए इंग्लैंड में भी बल्लेबाजी के अनुकूल विकेट बनाए जाने लगे हैं. भारत के सफल आईपीएल को देखकर और इसके द्वारा पैदा की जाने वाली दौलत को देखकर ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में भी टी-20 प्रतियोगिता का आयोजन इसी तर्ज पर किया जाने लगा है. इंग्लैंड की क्रिकेट की प्रीमियर लीग चलाने पर विचार कर रहा है. ऐसे में टेस्ट क्रिकेट के हालात दुनिया भर में बिगड़ जाएंगे. ऐसे में कहीं नकली क्रिकेट असली क्रिकेट को तहस नहस न कर दे. इस पर आईसीसी और दूसरे देशों के क्रिकेट संगठन को सोचना चाहिए.
एक राय ये भी आ रही है कि टेस्ट क्रिकेट में टॉस कराने का किस्सा ही खत्म करा दिया जाए. अनिल कुंबले ने यह सुझाया है कि टॉस की बजाय विपक्षी टीम को ही यह तय करने दिया जाए कि वह पहले गेंदबाजी करेगी या बल्लेबाजी. घरेलू परिस्थितियों का लाभ न उठा सकने की स्थिति में क्रिकेट की स्पर्धा का संतुलन बेहतर होगा. ऐसा उनकी सोच है. इन सब विचारों के बीच एक बात जो समझ आ रही है कि परंपरागत टेस्ट क्रिकेट यानी असली क्रिकेट को बचाने की सभी को परवाह है. मैं सोचता हूं कि टॉस से क्रिकेट की अनिश्चितताएं उभर कर सामने आती हैं. इसलिए क्रिकेट को गौरवशाली अनिश्चितताओं का खेल कहा जाता है.
मेरे ख्याल से टेस्ट क्रिकेट में कोई भारी भरकम बदलाव की तैयारी करने की बजाए गेंदपट्टियों को जानदार बनाया जाए. तो पांच दिनी टेस्ट मैच का रोमांच उभरकर सामने आएगा. नीरस ड्रॉ से उकता चुके लोग टेस्ट क्रिकेट में भी निश्चित परिणाम चाहते हैं. जीवंत विकेटों के कारण ही इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया के एशेज मैच आज भी फुल हाउस रहते हैं. जानदार गेंदपट्टियां रहेंगी तो दुनियाभर में गेंदबाजों का वजूद फिर उभर कर सामने आएगा. आम लोगों की दिलचस्पी टेस्ट क्रिकेट के प्रति बढ़ने लगेगी. टेस्ट क्रिकेट परंपरागत क्रिकेट है.
किसी भी पुराने खिलाड़ी से जब नया उभरता खिलाड़ी प्रेरणा लेने जाता है तो उससे कहा जाता है 'अपना खेल धूप में मेहनत करके तपाओ.' अगर रात में टेस्ट क्रिकेट खेला जाएगा, तो यह कहना पड़ेगा अपना खेल चांदनी में निखारो. वैसे भी रात का क्रिकेट उन देशों के लिए ज्यादा उपयुक्त है, जहां सूरज कम ही निकलता है. भारत जैसे चमकीले देश में जहां दिन का उजाला सूर्य की किरणों से जगमगाता रहता है, वहां बिजली व्यय करना कहां तक मुनासिब है. फिर हम कहते हैं कि किसानों को खेत सींचने के लिए बिजली व पानी की कमी है. कहीं तो हमें मनोरंजन व आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करना ही पड़ेगा.
(लेखक प्रसिद्ध कमेंटेटर और पद्मश्री से सम्मानित हैं.)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)