चीन की चालाकी से निपटने के लिए भारत को अपनानी चाहिए ये रणनीति
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चीन की चालाकी से निपटने के लिए भारत को अपनानी चाहिए ये रणनीति

भारत और चीन के विदेश मंत्री मिले. दोनों ने 150 मिनट तक बात की. बैठक देर तक चली लेकिन चीन ने अपने तौर-तरीकों में सुधार को लेकर कोई सह​मति नहीं दिखाई. उसने अभी भी सीमा पर तनाव को कम करने और सेना को हटाने को लेकर कोई डेडलाइन नहीं दी है.

चीन की चालाकी से निपटने के लिए भारत को अपनानी चाहिए ये रणनीति

गुरुवार को सभी की नजरें मास्को पर टिकी थीं. शहर एक उच्च स्तरीय बैठक की मेजबानी कर रहा था. बैठक के बाद एक संयुक्त बयान जारी किया गया लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदला. भारत और चीन के विदेश मंत्री मिले. दोनों ने 150 मिनट तक बात की. बैठक देर तक चली लेकिन चीन ने अपने तौर-तरीकों में सुधार को लेकर कोई सह​मति नहीं दिखाई. उसने अभी भी सीमा पर तनाव को कम करने और सेना को हटाने को लेकर कोई डेडलाइन नहीं दी है. भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच ये मुलाकात एससीओ (SCO) के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन से इतर हुई थी.

5 बिंदुओं पर सहमति
SCO यानी शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गनाइजेशन, चीन द्वारा बनाया गया आर्थिक और सुरक्षा से जुड़ा समझौता है. इस सम्मेलन में भारत की तरफ से डॉ. एस जयशंकर शामिल थे जबकि चीन का प्रतिनिधत्व विदेश मंत्री वांग यी कर रहे थे. मीटिंग के बाद दोनों ने एक संयुक्त बयान जारी किया. दोनों पक्षों ने सीमा पर तनाव घटाने के लिए एक्शन प्लान तैयार करने की बात कही और इन ​5 बिंदुओं पर सहमति जताई: 

- भारत और चीन, प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बनी आम सहमति का पालन करेंगे और मतभेदों को विवाद का रूप नहीं लेने देंगे.
- भारत और चीन आपस में बातचीत जारी रखेंगे, जल्द से जल्द सीमा पर सेना को पीछे हटाएंगे, उचित दूरी बरकरार रखेंगे और तनाव कम करेंगे.
-दोनों देश मौजूदा समझौतों का पालन करेंगे और सीमा पर अमन शांति बरकरार रखेंगे.
-सीमा को लेकर विशेष प्रतिनिधियों के बीच होने वाली बातचीत जारी रहेगी. इस मामले में भारत की तरफ से अजीत डोवाल होंगे और चीन के प्रतिनिधि विदेश मंत्री वांग यी रहेंगे.
-और आखिरी बिंदु है विश्वास के नए मानक खड़ा करने की दिशा में काम करने से जुड़ा समझौता.

अब आप अच्छे और पुराने सीबीएम यानी कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स याद कीजिए. कितनी बार पाकिस्तान के संदर्भ में ये शब्द सुनने को मिला है? 

यही तो कूटनीति है कि बातचीत इस बात पर खत्म हो गई कि अभी आगे और बातचीत जारी रखेंगे. यही इस बातचीत का सार है. ये बयान आधारभूत सवालों का जवाब नहीं देता.

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चीन की प्रतिबद्धता अस्पष्ट
क्या चीन एलएसी (LAC) से पूरी तरह पीछे हटने के लिए तैयार हो गया है? चीन कब अपनी सैन्य टुकड़ियों को सीमा से पीछे हटाएगा? क्या बीजिंग सीमा विवादों को हमेशा के लिए निपटा देगा? बयान में इनका जवाब नहीं मिलता है और चीन की प्रतिबद्धता अस्पष्ट है. न तो इसमें कोई फ्रेमवर्क है और न ही डेडलाइन, ये बात एक अलग सवाल की तरफ ले जाती है.

क्या चीन LAC पर पीछे हटने के लिए सहमत भी है?
क्या चीन LAC पर पीछे हटने के लिए सहमत भी है? चीन के विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर एक दस्तावेज जारी किया है. माना जाता है कि इसमें लिखा है कि भारत नहीं चाहता कि सीमा विवाद के चलते दोनों देशों के आपसी रिश्ते खराब हों. हमारे पास वो सटीक लाइनें हैं- ‘भारतीय पक्ष संबंधों को सीमा के प्रश्न के निपटारे पर निर्भर नहीं मानता है.’ इन लाइनों से लगता है कि या तो भारत का संदेश अनुवाद करने में लुप्त हो गया या फिर चीन इसे जानबूझकर तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है.

चीन को ये कहां से मिला? जाहिर तौर पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से, चीन की सरकारी न्यूज वायर सर्विस शिन्हुआ ने एस जयशंकर के हवाले से लिखा, ‘विदेश मंत्री का कहना है कि भारत, चीन के साथ संबंधों के विकास को सीमा प्रश्न के निपटारे पर निर्भर नहीं मानता है’. 

इसी बीच ग्लोबल टाइम्स ने सीमा पर गतिरोध को कम होता दिखाया है. ग्लोबल टाइम्स के संपादक ने एक वीडियो जारी किया है. वीडियो में ड्रोन चीन की सीमा पर सैनिकों को गर्म खाने की डिलीवरी कर रहे हैं. यहां बता दें कि चीन ये बिल्कुल पसंद नहीं करता कि दुनिया उसकी आर्मी को बिगड़ैल बच्चा कहे. हम तो सिर्फ इतनी उम्मीद करते हैं कि चीनी सैनिकों को चमगादड़ का सूप पीने के लिए नहीं दिया जा रहा होगा.

 

भारत की बात करें तो भारत काफी आगे की रणनीति पर काम कर रहा है. चुनौती को हल्के में नहीं लिया जा सकता. सीमा पर ये चीनी हिमाकत शायद दशकों बाद भारत के लिए इतनी बड़ी सैन्य चुनौती के रूप में सामने आई है. गलवान में हिंसक झड़प और इस हफ्ते की घटनाओं ने साबित कर दिया है कि भारत चीन के साथ हमेशा पहले की तरह व्यापार नहीं कर सकता है.

सैन्य खुराफातों का खतरा
सीमा विवाद का हल एक बार जो निकले फिर वो हमेशा के लिए हो. अगर ऐसा नहीं हुआ तो चीन की तरफ से हमेशा सैन्य खुराफातों का खतरा बरकरार रहेगा. भारत को अपने बाजार को हथियार बनाना होगा. ये आसान नहीं होगा. ये रातों-रात नहीं हो पाएगा. भारत को अपनी जमीन पर ही खड़े रहना होगा. 

 भारत को सैन्य जमावड़े को पीछे हटने की बात को पूर्व-शर्त बनाना चाहिए. अन्यथा हमेशा की तरह ऐसे रिश्ते नहीं रखे जा सकते और न बिजनेस. हम पाकिस्तान के साथ ऐसा कर चुके हैं. बातचीत और आतंक एक साथ नहीं चल सकते. अब समय आ गया है कि चीन के साथ भी वही दोहराया जाए, सीमा पर हिमाकत और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते. 

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