शताब्दी संगीत पुरुष : पंडित नंदकिशोर शर्मा...
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शताब्दी संगीत पुरुष : पंडित नंदकिशोर शर्मा...

शताब्दी संगीत पुरुष : पंडित नंदकिशोर शर्मा...

सच्चे कर्मयोगी कभी भी अपनी साधना के दिन नहीं गिनते, लेकिन इतिहास के पन्नों पर उनके पुरुषार्थ के सुनहरे हस्ताक्षर खुद-ब-खुद उनकी महिमा बखान करते हैं. वक्त की धूल को बुहारकर जब भी आने वाली नस्लें गुजश्ता दौर को याद करती हैं, ये उजले हस्ताक्षर नुमाया होते हैं और कहानियां बोल पड़ती हैं... भोपाल की सरज़मीं पर संगीत के सतरंगी संस्कारों और विरासत में पाई परंपरा की नई इबारत रचने वाले पंडित नंदकिशोर शर्मा एक ऐसी ही विलक्षण विभूति के रूप में प्रकट हुए. अपने कर्मशील जीवन का एक-एक क्षण उन्होंने जिस निष्ठा, समर्पण और रचनात्मक संघर्ष के बीच गुज़ारा वह नई पीढ़ी के लिए वरदाई मंत्र बन गया है.

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कथावाचक और संकीर्तन प्रेमी ब्राह्मण कुल में 1914 में नंदकिशोरजी का जन्म हुआ. भारतीय संस्कृति और वाचिक परंपरा से बहुत गहरे संलग्न अपने पिता पंडित जगन्नाथ प्रसाद शर्मा ने लड़कपन में ही अपने बेटे की रूचि और रूझान को भापकर उन्हें गुरू मार्ग और कठिन साधना की ओर प्रवृत्त कर दिया. बच्चू महाराज, वाराणसी और नेपाल दरबार के राजगायक पंडित बालाप्रसाद ने नंदकिशोर की प्रतिभा को निखारा. कंठ संगीत से जुड़ी व्याकरण सम्मत बारीकियों और गायिकी के व्यावहारिक पहलुओं की बुनियादी सीखों के बाद 'संगीत प्रवीण' और 'भाषा रत्न' की उपाधियां प्राप्त कर पंडित शर्मा ने हिन्दुस्तानी शात्रीय संगीत और साहित्य के अन्तर्संबंधों को जाना. संस्कृत, हिन्दी और उर्दू का अध्ययन किया. संगीत की बंदिशें तैयार कीं. ये 1950 का समय था, जब पंडितजी अपने अर्जित संस्कारों और संगीत के संज्ञान की पूंजी को समाज में बांटने और एक नई सांस्कृतिक हिलोर जगाने का स्वप्न लिए सक्रियता के नए कदम नाप रहे थे. उर्दू अदब और नवाबी ठसक की पहचान वाले तब के भोपाल में हिंदुस्तानी शास्त्री संगीत की नई स्वर धाराओं को प्रवाहित करने तथा गंगा-जमुनी तहज़ीब का सौहार्द स्थापित करने की सुरीली पहल का श्रेय बेशक पंडित नंदकिशोर शर्मा को दिया जा सकता है. 

पुराने भोपाल के काजीपुरा इलाके में जब सरस्वती संगीत कला मंदिर के नाम से पंडितजी ने संगीत प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की और उसे प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से जोड़ा तो सैकड़ों की संख्या में संगीत की तालीम पाने की गरज लिए युवा प्रतिभाएं खींची चली आईं. उत्साह परवाहन चढ़ा. 'संगीत प्रवीण' की उपाधि और अपनी लगन की बुनियाद पर अनेक विद्यार्थियों ने संगीत के क्षेत्र में अपना सुनहरा भविष्य तय किया. आज के अनेक सिद्ध-प्रसिद्ध कलाकार पंडितजी की परंपरा में ही दीक्षित हैं और गुरू-ऋण के प्रति विनत भाव से भरे हैं.

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पंडित नंदकिशोर शर्मा के व्यक्तित्व के कई रंग हैं. कुछ उजले हैं, तो कुछ ऐसे अनजाने भी जिन्हें जानकर हैरत भी होती है. उनके परिजन बताते हैं कि स्वाधीनता की अलख जगाने के लिए पंडितजी ने प्रवचनों का सहारा लिया. ब्रिटिश हुकूमत की पाबंदियों के चलते पंडितजी प्रवचनों की भक्तिधारा के बीच देशभक्ति का संदेश देते और अंग्रेजों के खिलाफ खड़े होने का ज़ज्बा समाज में जगाते. 1946 यानी आज़ादी के पहले 'तलवार शिवाजी की' नाम से उनकी वीरोचित कविता का संग्रह भी छपा था. नंदकिशोर जी के अनन्य सखा साहित्यकार स्वरु प्रो. अक्षय कुमार जैन शर्माजी की पहलवानी के किस्से भी सुनाते थे और उनके निडर-साहसी व्यक्तित्व की तारीफ के कसीदे काढ़ा करते थे.

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अक्षय बाबू ने ही बताया कि उनकी बेखौफी की मिसाल तब देखी जब शहर में संगीत की विरोधी लहर के दौरान पंडितजी ने अपना अभियान बदस्तूर जारी रखा. पंडितजी के पास मेवात संगीत घराने के उस्ताद घसीटा खां- मसीदा खां, अक्सर मशविरे के लिए आते थे. पंडितजी उदारमना थे. ज़रूरतमंद लोगों के लिए उनका द्वार खुला था. मुक्त हस्त से दान करते और हर संभव आश्रय देते. उन्होंने शीश तरंग वाद्य का आविष्कार किया था. जलतरंग और हारमोनियम पर उनके हाथ सधे थे. संगीत के लिए की गई उनकी जीवन व्यापी साधना और सेवाओं के लिए उन्हें अभिनव कला परिषद भोपाल ने 'भोपाल श्री' पंडित राधेश्याम न्यास मुंबई ने 'कीर्तनाचार्य' और भोपाल की ही मधुबन संस्था ने श्रेष्ठ कला आचार्य की मानद उपाधियों से विभूषित किया. जीवित होते तो पंडित नंदकिशोर शर्मा आज यशस्वी जीवन के सौ बरस पूरे कर लिए होते. यह उनका शताब्दी वर्ष है. उनकी स्मृति और योगदान को प्रणाम.

(मीडियाकर्मी, लेखक और कला संपादक)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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