फ्रांस के खिलाफ सड़कों पर उतरे कट्टरपंथी अंधश्रद्धा का शिकार हैं, लेकिन बांग्लादेश सरकार यह भूल नहीं कर सकती. 3 नवंबर को बांग्लादेश के विदेश सचिव मसूद बिन मोमन (Masood bin Momen) के बयान से भी कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है.
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पेरिस और ढाका के बीच लगभग 9 हजार किलोमीटर की दूरी है और दोनों के बीच व्यावहारिक रूप से कुछ भी एक समान नहीं है. इसके बावजूद, बांग्लादेश में फ्रांस के खिलाफ उग्र प्रदर्शन हुए. राजधानी ढाका और चटगांव में हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे. उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का पुतला जलाया, फ्रेंच उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया और ढाका से फ्रांसीसी राजदूत को बाहर निकालने की मांग की.
यह सबकुछ 16 अक्टूबर की घटना पर फ्रांसीसी राष्ट्रपति के बयान के बाद शुरू हुआ. पेरिस के स्कूल टीचर सैमुएल पैटी को 16 अक्टूबर को इस्लामी कट्टरपंथी द्वारा बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया था. पैटी का कसूर मात्र इतना था कि उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद के कैरिकेचर के जरिये बच्चों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में समझाने का प्रयास किया था.
धर्म के नाम पर हुई इस हत्या के बाद फ्रांस के नीस शहर को भी इस्लामिक आतंकवाद का सामना करना पड़ा. यहां भी कई लोगों की जान गई. राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने पेरिस की घटना के संबंध में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ते हुए बयान दिया था, जिसके बाद तमाम मुस्लिम देश उनके खिलाफ आ गए. बांग्लादेश में भी उनके खिलाफ उग्र प्रदर्शन हुए.
डैमेज कंट्रोल की कोशिश
हालांकि, अब ऐसा प्रतीत होता है जैसे बांग्लादेश कूटनीतिक परिपक्वता दिखाने का प्रयास कर रहा है, ताकि डैमेज कंट्रोल किया जा सके और संभावित नुकसान की आशंका भी सीमित हो सके. 4 नवंबर को बांग्लादेश के विदेश मंत्री डॉ. एके अब्दुल मोमन (AK Abdul Momen) ने अपने फ्रांसीसी समकक्ष से फोन पर बात की और आग्रह किया कि धर्म और व्यापार को आपस में न मिलाया जाए. जाहिर है बांग्लादेश, फ्रांस से व्यापारिक रिश्ते बिगाड़ने का जोखिम मोल नहीं लेगा क्योंकि, फ्रांस वह चौथा बड़ा देश है जिसे बांग्लादेश गार्मेंट एक्सपोर्ट करता है.
सड़कों पर उतरे कट्टरपंथी अंधश्रद्धा का शिकार
फ्रांस के खिलाफ सड़कों पर उतरे कट्टरपंथी अंधश्रद्धा का शिकार हैं, लेकिन बांग्लादेश सरकार यह भूल नहीं कर सकती. 3 नवंबर को बांग्लादेश के विदेश सचिव मसूद बिन मोमन (Masood bin Momen) के बयान से भी कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है. ढाका में राजनयिक संवाददाताओं के एक समूह को संबोधित करते हुए उन्होंने जोर देते हुए कहा कि बांग्लादेश ने धार्मिक असहिष्णुता का कभी समर्थन नहीं किया. हालांकि, यह बात अलग है कि इस देश की कथनी और करनी में अंतर है. मौजूदा हालातों में एक बात जो सबसे ज्यादा चिंता की है, वो यह है कि बांग्लादेश के बहुसंख्यक धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा शांतिप्रिय हिंदू अल्पसंख्यक को निशाना बनाया गया. फ्रांस की घटना के विरोध में जब उग्र भीड़ सड़कों पर उतरी, तो उसने कोमिला जिले के मुरादनगर में हिंदुओं के घरों पर भी हमला बोला. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन को प्रतिबंधक आदेश जारी करने पड़े.
मौके की तलाश में थे कट्टरपंथी
सुरक्षा एजेंसियां इस हमले की थाह लेने और उसे विफल करने में पूरी तरह नाकाम रहीं. शांतिप्रिय हिंदुओं के साथ हजारों किलोमीटर दूर की एक ऐसी घटना के लिए बर्बर सलूक किया गया, जिनसे उनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है. लिहाजा, यह कहना गलत नहीं होगा कि बांग्लादेश के धार्मिक अतिवादी हिंदुओं को निशाना बनाने के लिए बस एक मौके की तलाश में थे और फ्रांस के रूप में उन्हें यह मौका मिल गया. उन्होंने कानून के रखवालों की लापरवाही का फायदा उठाया और असहाय हिंदुओं पर हमला बोल दिया.
तस्वीरें अल्पसंख्यक समुदाय से ज्यादती की गवाही दे रहीं
बांग्लादेश के ‘हिंदू बौद्ध ईसाई ओइक्या परिषद' (HBCOP) ने हिंदुओं पर हुए हमलों की निंदा करते हुए ढाका, चटगांव, कॉक्स बाजार, पबना में विरोध-प्रदर्शन, रैलियां आयोजित करने का फैसला किया है, ताकि अल्पसंख्यकों की स्थिति सबके समक्ष प्रकट की जा सके. हालांकि, बांग्लादेश के गृह मंत्री असदुज्जमां खान ने हिंदुओं और HBCOP के आरोपों को अतिशयोक्तिपूर्ण बताया है. यह बात अलग है कि हिंदुओं के जले घर और उनके साथ हुई बर्बरता की तस्वीरें अल्पसंख्यक समुदाय से ज्यादती की गवाही दे रही हैं. जो भी हो, बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है. इस संदर्भ में, यह उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि अतीत में भी भोला, ब्राह्मणबारिया आदि इलाकों में हिंदुओं को निशाना बनाया गया है.
तनावपूर्ण है स्थिति
इन घटनाक्रमों के बीच, शेख हसीना और सत्तारूढ़ अवामी लीग के करीबी माने जाने वाले इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन ‘हिफाजत-ए-मुस्लिम’ ने सरकार को फ्रांसीसी राजदूत को देश से निष्कासित करने और फ्रांस से सभी राजनयिक रिश्ते खत्म करने के लिए 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया है. हाल ही में संगठन द्वारा एक विशाल रैली आयोजित की गई थी. रैली में शामिल लोगों को फ्रांसीसी दूतावास की ओर कूच करने और उसे नुकसान पहुंचाने के लिए उकसाया गया. स्थिति बेहद तनावपूर्ण बनी हुई है और पहले से ही भय एवं असुरक्षा की भावना में जी रहे हिंदू खुद को एक नई परेशानी में पा रहे हैं.
दिशाहीन चरमपंथियों पर लगाम लगाना मुश्किल हो जाएगा
शेख हसीना सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए सूक्ष्म कूटनीतिक प्रयासों के अलावा कुछ बड़े कदम उठाने होंगे कि बांग्लादेश के कट्टरपंथी फ्रांस में ईशनिंदा के नाम पर खुद को एकजुट न कर पाएं. यदि उन्हें फ्रीहैंड दिया जाता है, तो सरकार को धार्मिक रूप से संचालित दिशाहीन चरमपंथियों पर लगाम लगाना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि उनके पास सरकारी नियंत्रण से बाहर निकलने की क्षमता है.
वास्तव में, वे बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त करने के लिए मुख्यधारा की राजनीति में बने रहना चाहते हैं. बांग्लादेश का खूनी इतिहास ऐसी प्रवृत्तियों का गवाह है. शेख हसीना अभी भी देश में धार्मिक कट्टरता पर लगाम लगाने की आखिरी उम्मीद हैं. मजबूत जीडीपी और आर्थिक प्रगति बांग्लादेश के लिए अच्छे संकेत हैं, लेकिन यदि धर्म के नाम पर अतिवादियों को कुछ भी करने की छूट मिलती रही, तो बांग्लादेश के विकास की गाड़ी को पटरी से उतरते देर नहीं लगेगी.
(लेखक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और सुरक्षा विश्लेषक हैं. शांतनु मुखर्जी मॉरीशस के प्रधानमंत्री के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी रहे हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी विचार हैं)