बिना अनुदान, कैसे होगा ‘जय अनुसंधान’?
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बिना अनुदान, कैसे होगा ‘जय अनुसंधान’?

आज देश के वही शोधार्थी और विज्ञान/अनुसन्धान के सैनिक छात्रवृत्ति/फेलोशिप और इससे जुड़ी अन्य मांगों को लेकर सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गए हैं. ऐसा करने वालों में देश के लगभग सभी नामी शोध-संस्थान, उच्च शिक्षा संस्थान एवं विश्वविद्यालय के शोधार्थी शामिल हैं फिर चाहे वो आइआइटी, एनआईटी, आइआइएससी, एम्स, डीआरडीओ जैसे तकनीकी संस्थान के हों या डीयू, जेएनयू, बीएचयू, ऐएमयू जैसे विश्वविद्यालयों के.

बिना अनुदान, कैसे होगा ‘जय अनुसंधान’?

पंजाब के फगवाड़ा स्थित LPU (लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी) में आयोजित 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों से देश में किफायती चिकित्सा, आवास, स्वच्छ हवा, पानी व ऊर्जा उपलब्ध कराने का आह्वान किया. इसके साथ ही उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री के द्वारा दिए हुए प्रसिद्ध नारे (जय जवान, जय किसान), जिसको अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा विस्तृत किया गया था (जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान), को एक कदम आगे बढ़ाते हुए ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसन्धान’ का नारा दिया. शायद इस नारे के माध्यम से वो देश को, और विशेष रूप से शोधार्थी समुदाय को यह सन्देश देना चाह रहे थे कि उनकी सरकार देश में शोध और अनुसन्धान को प्राथमिकता देने को लेकर बहुत गंभीर है. और ऐसा शायद हो भी. लेकिन इसके विपरीत एक सच्चाई और विडंबना यह भी है कि आज देश के वही शोधार्थी और विज्ञान/अनुसन्धान के सैनिक छात्रवृत्ति/फेलोशिप और इससे जुड़ी अन्य मांगों को लेकर सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गए हैं. ऐसा करने वालों में देश के लगभग सभी नामी शोध-संस्थान, उच्च शिक्षा संस्थान एवं विश्वविद्यालय के शोधार्थी शामिल हैं फिर चाहे वो आइआइटी, एनआईटी, आइआइएससी, एम्स, डीआरडीओ जैसे तकनीकी संस्थान के हों या डीयू, जेएनयू, बीएचयू, ऐएमयू जैसे विश्वविद्यालयों के.


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