Kuno Cheetah Project: कूनो नेशनल पार्क में क्यों मरते जा रहे चीते, क्या है 9 मौतों का रहस्य?
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Kuno Cheetah Project: कूनो नेशनल पार्क में क्यों मरते जा रहे चीते, क्या है 9 मौतों का रहस्य?

Kuno Cheetah death: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के नेतृत्व में भारत में चीतों को फिर से बसाने की परियोजना देश की सबसे ऐतिहासिक वन्यजीव परियोजनाओं में से एक बन गई है. लेकिन भारत लाए गए 14 चीतों में से नौ की बीमारियों के कारण मौत ने इस परियोजना को संकट में डाल दिया है.

Kuno Cheetah Project: कूनो नेशनल पार्क में क्यों मरते जा रहे चीते, क्या है 9 मौतों का रहस्य?

Kuno Cheetah death: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के नेतृत्व में भारत में चीतों को फिर से बसाने की परियोजना देश की सबसे ऐतिहासिक वन्यजीव परियोजनाओं में से एक बन गई है. लेकिन भारत लाए गए 14 चीतों में से नौ की बीमारियों के कारण मौत ने इस परियोजना को संकट में डाल दिया है. 70 वर्षों से विलुप्त हुए चीतों को भारत वापस लाने के क्रम में आठ बड़ी बिल्लियों को विदेशों से मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में लाया गया. देश में चीतों की संख्या बढ़ाने और भारत में उन्हें फिर से बसाने के लिए सारे इंतजाम भी किए गए. लेकिन 9 मौतों के बाद चीतों के स्वास्थ्य का मसला चिंता का विषय बनता जा रहा है.

वन्यजीव विशेषज्ञ इस बात पर विभाजित हैं कि चीतों को बसाने के लिए कितनी जगह की जरूरत है. कुछ कहते हैं कि एक अकेले चीते के लिए 100 वर्ग किलोमीटर की जरूरत होती है, जबकि अन्य का तर्क है कि इसका अनुमान लगाना कठिन है. एक मादा चीता को 400 वर्ग किलोमीटर तक की जरूरत हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट सहित कई विशेषज्ञों ने मध्यप्रदेश के कूनो पार्क में जगह और सुविधाओं की पर्याप्तता पर संदेह जताया है और चीतों को अन्य अभयारण्यों में शिफ्ट करने का सुझाव दिया है. वन्यजीव विशेषज्ञ इस बात पर असहमत हैं कि चीता के आवास के लिए कितनी जगह होनी चाहिए. बता दें कि कूनो नेशनल पार्क का मुख्य क्षेत्र 748 वर्ग किलोमीटर है, जबकि बफर जोन 487 वर्ग किलोमीटर है.

वरिष्ठ वन्यजीव पत्रकार देशदीप सक्सेना ने नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 14 और चीतों की रिहाई के बारे में चिंता व्यक्त की और उन्हें समायोजित करने के लिए केएनपी से सटे अतिरिक्त 4,000 वर्ग किलोमीटर के परिदृश्य की जरूरत पर जोर दिया.

दक्षिण अफ़्रीकी वन्यजीव विशेषज्ञ विंसेंट वान डेर मेरवे ने एक साक्षात्कार में कहा था कि भारत को चीतों के लिए दो या तीन आवासों की बाड़ लगा देनी चाहिए, क्योंकि इतिहास में कभी भी बिना बाड़ वाले रिजर्व में सफल पुनरुद्धार नहीं हुआ है. इससे पहले अप्रैल में मेरवे ने चेतावनी दी थी कि अगले कुछ महीनों में और भी अधिक मौतें होने वाली हैं, जब चीते अपना इलाका बढ़ाने के लिए कूनो में तेंदुओं और बाघों का सामना करने की कोशिश करेंगे.

अप्रैल में मध्यप्रदेश वन विभाग ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को एक पत्र लिखा था. जिसमें कूनो में चीतों के लिए एक "वैकल्पिक" साइट का अनुरोध किया गया था. जहां दो महीने से भी कम समय में तीन वयस्क चीतों की मौत हो गई है.

दक्षिण अफ्रीका में चीता मेटापॉपुलेशन प्रोजेक्ट के प्रबंधक वान डेर मेरवे ने कहा कि अभी आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि कम से कम तीन या चार चीतों को मुकुंदरा हिल्स लाया जाए और उन्हें वहां प्रजनन करने दिया जाए. मुकुंदरा हिल्स पूरी तरह से बाड़ से घिरा हुआ है. हम जानते हैं कि चीते वहां बहुत अच्छा करेंगे. एकमात्र समस्या यह है कि इस समय यह पूरी तरह से भरा हुआ नहीं है. इसलिए आपको कुछ काले हिरण और चिंकारा लाने होंगे.

इससे पहले खबर आई थी कि नौ चीतों में से दो की मौत उनके गले में लगे कॉलर से हुए संक्रमण के कारण हुई थी. सबसे हालिया चीता की मौत का कारण मायियासिस या मैगॉट संक्रमण को बताया गया. जिसका निदान जानवर के घावों से किया गया था. विशेषज्ञों ने कहा कि चीते मध्यप्रदेश में पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाने में सक्षम नहीं थे. उमस और तेज गर्मी के कारण जानवर कमज़ोर हो गए और अंततः उनकी मृत्यु हो गई.

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