ZEE जानकारी: बाजार में आ गई इलेक्ट्रिक कार, एक बार चार्ज करने पर दौड़ेगी 450 किलोमीटर
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ZEE जानकारी: बाजार में आ गई इलेक्ट्रिक कार, एक बार चार्ज करने पर दौड़ेगी 450 किलोमीटर

भविष्य की कारें अब डिजिटल उपकरणों में बदलने लगी हैं और इनका निर्माण वो कंपनियां कर रही हैं जिनका काम गाड़ियों का निर्माण करना नहीं बल्कि Gadgets का निर्माण करना है. 

ZEE जानकारी: बाजार में आ गई इलेक्ट्रिक कार, एक बार चार्ज करने पर दौड़ेगी 450 किलोमीटर

भविष्य की कारें अब डिजिटल उपकरणों में बदलने लगी हैं और इनका निर्माण वो कंपनियां कर रही हैं जिनका काम गाड़ियों का निर्माण करना नहीं बल्कि Gadgets का निर्माण करना है. लेकिन भविष्य की गाड़ियां भी किसी Gadget की तरह होंगी इसलिए बड़ी बड़ी कार निर्माता कंपनियों को पीछे छोड़कर Gadget बनाने वाली कंपनियां भविष्य की इन गाड़ियों का निर्माण कर रही हैं. Electronic उपकरण और Gadgets बनाने वाली एक कंपनी Sony ने अपनी Conept कार VISION S एक Consumer Electronics Show में कुछ दिनों पहले लॉन्च की.

हैरानी की बात ये है कि इस कार को किसी Auto Show में नहीं Consumer Electronics Show में लॉन्च किया गया है यानी एक ऐसी जगह जहां कंपनिया नए नए Electronic उपकरण और Gadgets लॉन्च करती हैं. इस कार को चार्ज करके आप एक बार में 450 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय कर सकते हैं. इस कार की कई विशेषताएं और इसके Features के बारे में जानकर आपको ऐसे लगेगा कि हम किसी कार की नहीं बल्कि किसी Gadget या मोबाइल फोन जैसी Device की बात कर रहे हैं.

इस इलेक्ट्रिक कार में high-resolution कैमरे, तैंतीस अलग-अलग तरह के Sensors और Radar लगे हुए हैं. ये कार आपको सड़क पर अचानक आने वाले खतरों के बारे में पहले ही बता देगी यानी आगे कोई बेरिकेड लगा है कोई आपकी कार से टकराने वाला है या फिर सड़क पर गड्ढे हैं. ये सब आपको पहले ही पता चल जाएगा. इससे आपकी यात्रा आसान और सुरक्षित हो जाएगी.

इस कार के डैश बोर्ड के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक एक विशाल स्क्रीन लगाई गई है. जिस पर आप आगे का रास्ता देख पाएंगे. इसके अलावा Map, Music और मनोरंजन जैसी सुविधाएं भी आपको मिलेंगी. हैरानी की बात ये है कि भविष्य की इन कारों का निर्माण अब पारंपरिक कार निर्माता कंपनियां नहीं बल्कि Sony, Apple, Samsung और Google जैसी कंपनियां कर रही हैं.

ये पारंपरिक कार निर्माता कंपनियों के लिए एक खतरे की घंटी है. यानी अब कारों और Gadgets के बीच का अंतर खत्म हो रहा है और आने वाले दिनों में आपको कार की ज़रूरत एक वाहन के तौर पर महसूस हो या ना हो लेकिन एक Electronic उपकरण के तौर पर आपको ये डिजिटल गाड़ियां अपने पास ज़रूर रखनी होगी ठीक वैसे ही जैसे आप आज Smart Phone अपने साथ रखते हैं.

अब आपको इलेक्ट्रिक कारों की लोकप्रियता की वजह भी जाननी चाहिए. इन कारों की लोकप्रियता की सबसे बड़ी वजह ये है कि इलेक्ट्रिक कारों को बनाने का खर्च दूसरी कारों के मुकाबले 30 प्रतिशत कम है. और ये Electric गाड़ियों का निर्माण करने वाली कंपनियों के लिए एक फायदे का सौदा है.

दूसरा बड़ा कारण ये है कि पूरी दुनिया में पारंपरिक ऑटो सेक्टर में मंदी है, वर्ष 2019 में भारत में भी कारों की बिक्री में 31 प्रतिशत की कमी आई थी. और इस वर्ष भी इसकी रफ्तार धीमी बने रहने के आसार है . लेकिन इसके विपरीत पूरी दुनिया में इलेक्ट्रिक कारों को पसंद किया जा रहा है. वर्ष 2030 तक दुनिया में ढाई करोड़ से ज्यादा इलेक्ट्रिक गाड़ियां बिकने का अनुमान है.

इन कारों की लोकप्रियता की तीसरी वजह है Petrol और Diesel कारों से होने वाला Carbon Emission पर्यावरण को बचाने के लिए दुनिया भर में नियमों को कड़ा किया जा रहा है. वर्ष 2021 से Europe में प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों के निर्माताओं पर जुर्माना लगाया जा सकता है. इसलिए अब लोग ऐसी गाड़ियों को खरीदना चाहते हैं जो कम या ना के बराबर प्रदूषण फैलाएं.

और चौथा कारण है इलेक्ट्रिक कार उद्योग में लगातार रिसर्च हो रही है. वर्तमान में बैटरियों की तकनीक महंगी होने की वजह से इलेक्ट्रिक कारों की कीमत ज्यादा है. लेकिन बड़े पैमाने पर बैटरियों के निर्माण के बाद इनकी कीमत कम होगी और इसका फायदा इलेक्ट्रिक कार उद्योग को मिलेगा.

एक रिसर्च के मुताबिक पिछले वर्ष दुनिया के जिन 30 शहरों में सबसे ज्यादा प्रदूषण था, उनमें से 22 शहर भारत के थे.और इनमें देश की राजधानी दिल्ली भी शामिल थी. इसलिए भविष्य की ये गाड़ियां..सिर्फ एक Gadget के तौर पर नहीं बल्कि पर्यावरण की रक्षा करने वाले साधन के तौर पर भी ज़रूरी हो गई है.

भविष्य के इस विश्लेषण को समझने के लिए परिवर्तन का दर्शन समझना बहुत जरूरी है. कहते हैं कि The only constant in life is change मतलब जिंदगी में बदलाव ही अंतिम सत्य है. इसका संदेश साफ है कि समय और नई चुनौतियों के साथ खुद में बदलाव करना आवश्यक है. और जो बदलते नहीं है वो या तो मिट जाते हैं या रेस में पीछे छूट जाते हैं.

मोबाइल फोन बनाने वाली मशहूर कंपनी Nokia इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. वर्ष 2008 के बाद Mobile Phone बनाने वाली दूसरी कंपनियां Android Operating System को अपना रही थीं. लेकिन Nokia समय रहते इस बदलाव को समझ नहीं पाई और धीरे-धीरे Android Mobile Phones में इस्तेमाल होने वाला सबसे मशहूर Software बन गया. जबकि Nokia जो एक ज़माने में Mobile Phones के बाजार में शिखर पर थी, वो बंद होने की स्थिति तक पहुंच गई.

फिलहाल ऑटो इंडस्ट्री भी इसी बदलाव की चुनौती से संघर्ष कर रही है. और अस्तित्व की इस लड़ाई में इलेक्ट्रिक वाहनों का Gadget अवतार पारंपरिक कार कंपनियों से ज्यादा मजबूत दिखाई दे रहा है. आप भी शायद अपने मोबाइल फोन के सॉफ्टवेयर को लगातार Update करते होंगे और एक या दो वर्ष बीतने के बाद शायद आप नया मोबाइल फोन खरीद लेते होंगे. लेकिन, इतना काफी नहीं है. अब आपको अपने ज्ञान और विचारों को भी लगातार Update करते रहना होगा ताकि आप नए जमाने से कदम मिलाकर चल सकें. जैसे-जैसे तकनीक बढ़ रही है, वैसे-वैसे आशंकाएं भी बढ़ रही हैं.

क्या आपको भी आशंका है कि आपकी नौकरी ख़तरे में है? एक रिसर्च में ये दावा किया गया है कि भारत के करीब 80 प्रतिशत लोगों में ये डर है कि उनकी नौकरी किसी ना किसी वजह से जा सकती है. स्विटजरलैंड के दावोस में World Economic Forum के सम्मेलन में जारी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में ज्यादातर लोगों को आज इस बात का भरोसा नहीं है कि आने वाले 5 वर्षों में उनकी स्थिति बेहतर होने वाली है. हर वर्ष जारी होने वाले इस Trust Barometer में ध्यान देने वाली बात ये है कि भारत में अलग-अलग संस्थानों पर देश के लोगों का भरोसा बढ़ा है. आपको संक्षेप में बताते हैं कि लोगों का भरोसा किस पर,कितना बढ़ा है ?

सबसे ज्यादा भरोसा बढ़ा है मीडिया पर. साल भर पहले आई रिपोर्ट में मीडिया पर भारत के 64 प्रतिशत लोगों का भरोसा था जब कि इस साल 73 प्रतिशत लोगों ने अपना भरोसा जताया है. यानी मीडिया पर 9 प्रतिशत भरोसा बढ़ गया है.

इसी तरह NGO पर 8 प्रतिशत भरोसा बढ़ा है. ये भरोसा 72 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत पहुंच गया है. सरकार पर 7 प्रतिशत भरोसा बढ़ा है. एक साल पहले भारत के 74 प्रतिशत लोग सरकार पर भरोसा करते थे, ये आंकड़ा बढ़कर 81 प्रतिशत हो गया है. उद्योग जगत पर भी लोगों का भरोसा बढ़ा है, लेकिन सबसे कम बढ़ा है. पहले उद्योग जगत पर 77 प्रतिशत लोग भरोसा करते थे, अब 82 प्रतिशत लोग भरोसा कर रहे हैं . यानी इस सेक्टर पर भी 5 प्रतिशत भरोसा बढ़ा है.

ध्यान देने की बात ये है कि मीडिया पर सबसे ज्यादा भरोसा बढ़ने के बाद भी भरोसे के मीटर में सबसे नीचे मीडिया ही है यानी सबसे कम भरोसा मीडिया पर ही है. मीडिया पर अभी भी 73 प्रतिशत लोगों को ही भरोसा है, जो कि सरकार, NGO और उद्योग जगत के मुकाबले कम है .

रिपोर्ट के मुताबिक अब लोगों का ये भरोसा भी टूट रहा है कि वो कठिन मेहनत करके ऊपर बढ़ सकते हैं क्योंकि तकनीक बढ़ रही है, स्पर्धा बढ़ रही है, नई नौकरियों के हिसाब से ट्रेनिंग नहीं मिल रही है और इन सबके बीच फेक न्यूज भी बढ़ रही है. लेकिन, आर्थिक आशंकाओं और नकारात्मक खबरों के बीच अगर भारत के लोगों का भरोसा अपने संस्थानों पर बढ़ रहा है, तो ये एक सकारात्मक खबर है.

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