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नई दिल्ली: अफगान सत्ता पर तालिबान (Taliban) का काबिज हो गया है, लेकिन पंजशीर उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है. ये वो इलाका है, जिसे तालिबान कभी नहीं जीत सका. इस बार तालिबान ने काबुल पर तो कब्जा कर लिया, लेकिन अभी तक वो पंजशीर (Panjshir) के अभेद्य किला को भेद नहीं पाया है.
एंटी तालिबान फोर्स के नेता और अफगानिस्तान पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह (Amrullah Saleh) तालिबान के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं. उनसे Zee News के सहयोगी चैनल WION की एग्जीक्यूटिव एडिटर पलकी शर्मा उपाध्याय ने बात की. अमरुल्लाह सालेह ने खुद के देश नहीं छोड़ने से लेकर राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Gani) के देश छोड़कर भागने पर खुलकर बात की.
आपको कई देशों ने शरण की पेशकश की थी, लेकिन आपने अफगानिस्तान में रहने का फैसला किया है. आपको ये कहते हुए भी रिपोर्ट किया गया था कि आप अपने देश छोड़ने की बजाय मरना बेहतर समझते हैं. क्या ये बात सही है? अगर आपके पास विकल्प था तो आपने देश क्यों नहीं छोड़ा?
मरुल्लाह सालेह ने कहा, 'अगर मेरे कद का व्यक्ति भागने की कोशिश करता है तो ये शर्मनाक और ऐतिहासिक शर्म की बात होगी. सालों-साल हम अपने लोगों को बताते रहे कि ये एक नेक काम है, आपके जीवन का बलिदान मानवता के लिए है. जब देश हम पर भरोसा कर रहा था और हम बच निकलते हैं तो ये अफगान के लोगों की कुर्बानी का अपमान होता. इसलिए मैं उस अपमान और ऐतिहासिक शर्म का हिस्सा नहीं बनना चाहता था.'
उन्होंने कहा, 'मैं अफगान के लोगों के साथ हूं और मैं अपनी मिट्टी के साथ हूं. मैं ये दर्द और निराशा समझता हूं. मैं अफगानों द्वारा झेली जा रही हर मुश्किल को समझता हूं. उतना नहीं जितना वो लोग झेल रहे हैं जो तालिबान के अत्याचारी नियंत्रण में है. हम अभी भी अफगानिस्तान के आजाद हिस्से में हैं. मुझे अफगानिस्तान से निकलने के लिए मित्र देशों ने चार्टर्ड विमानों की पेशकश की थी, लेकिन मैंने मना कर दिया.
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अमरुल्लाह सालेह ने कहा, 'मैं कहूंगा कि अगर वो अफगान राष्ट्र के साथ और अपनी मिट्टी के साथ रहे होते, तो ये उनकी विरासत और अफगान के लोगों दोनों के लिए अच्छा होता. काबुल के पतन से कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था 'मैं राजा अमानुल्लाह का प्रशंसक हूं' वो राजा जिसने अंग्रेजों से अफगान को आजादी दिलाई थी, लेकिन राष्ट्रपति गनी ने मुश्किलों और अनिश्चितताओं के वक्त में देश छोड़ दिया, जो हमारे इतिहास पर एक दाग है.'
उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि गनी के भागने से उनकी छवि के बारे में जो भी सकारात्मकता चीजे थीं, वो चकनाचूर हो गईं. सही वक्त पर उन्होंने बलिदान की भावना और अपने देश के लिए कुछ करने की भावना नहीं दिखाई. मुझे इसके लिए बहुत दुख है. मान लीजिए वो तालिबान द्वारा बंदी बना लिए जाते, तालिबान के जेल में कैद हो जाते तो जरूर अफगानिस्तान के लोग उनके लिए आवाज उठाते, रैलियां निकालते, अंतरराष्ट्रीय समुदाय उनके साथ खड़ा होता. मुझे नहीं लगता कि अफगानिस्तान से भागने से उन्हें या अफगानिस्तान के लोगों को कोई मदद मिली है. ये हमारे इतिहास का एक काला अध्याय होगा.'
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अमरुल्लाह सालेह ने कहा, 'अगर आप देखें कि इस वक्त अफगानिस्तान में क्या हो रहा है तो ये अशरफ गनी का विश्वासघात नहीं है. ये पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय का अफगान राष्ट्र के साथ विश्वासघात है कोई देश अपनी बात पर कायम नहीं रहा. हम वैश्विक सुरक्षा की रक्षा करने में सबसे आगे रहे हैं. हम अधिकारों और मूल्यों की रक्षा करते रहे हैं. हमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने बार-बार कहा है कि समर्थन अडिग रहेगा. ये कहना बहुत गलत है कि अफगानों ने लड़ाई नहीं की, ये हास्यास्पद है.'
उन्होंने कहा, 'ये अफगान सुरक्षा बलों का सबसे बड़ा अपमान है वो बहादुरी से लड़े. दोहा में तालिबान के साथ वार्ता करके अमेरिकी सैनिकों ने हमारे पीठ में छुरा घोंपा है, ये मेरे देश की सेवा करने वाले सभी पुरुषों और महिलाओं के लिए पीठ में छुरा घोंपने जैसा है. इसलिए, मैं किसी एक व्यक्ति पर दोष नहीं लगाऊंगा. क्या गलत हुआ, इस पर अभी विचार करना जल्दबाजी होगी. ये एक गलत राजनीतिक निर्णय था, जिसने इस विशाल त्रासदी को जन्म दिया जो समाप्त नहीं हुई है.'
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