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Carbon Dioxide reached highest level of human history: धरती (Earth) को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) की अगुवाई में लगातार कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. दुनिया के कई देश जीरो कॉर्बन इमीशन (Zero Carbon Emission) का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं. भारत भी पर्यावरण को बचाने की मुहिम में अपना अभूतपूर्व योगदान दे रहा है. इन तमाम कोशिशों के बीच एक बुरी खबर ये आई है कि कॉर्बन उत्सर्जन के मामले में पिछले 40 लाख सालों का रिकॉर्ड टूट गया है.
प्राकतिक संसाधनों के दोहन के बीच वायुमंडल (Atmosphere) में कार्बन डाईऑक्साइड (Carbon Dioxide) की मात्रा में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. कार्बन उत्सर्जन औद्योगिक क्रांति से पहले के लेवल से 50% ज्यादा हो गया है. 'न्यूयॉर्क टाइम्स' में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक हवाई (Hawaii) स्थित Mauna Loa Atmospheric Baseline Observatory की रिपोर्ट में पिछले 40 लाख साल में इस साल कार्बन उत्सर्जन सबसे ज्यादा रहने का खुलासा हुआ है.
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यानी इंसानों ने साल 2021 में 36 बिलियन टन CO2 Gas वायुमंडल में छोड़ी जो इंसानी इतिहास के पिछले किसी भी साल की तुलना में सबसे ज्यादा रही. आपको बताते चलें कि इस गैस का अधिकांश उत्सर्जन तेल, गैस और कोयले को जलाने से होता है.
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वैज्ञानिकों नें 3 जून को ऐलान किया कि NOAA के मौसम स्टेशन ने मिले डाटा में कार्बन डाईऑक्साइड मई में 421 पार्ट्स प्रति मिलियन पहुंच गया जो इंसानी इतिहास में अब तक सबसे ज्यादा है. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि दुनिया भर के बिजली संयंत्रों, ऑटोमोबाइल और अन्य स्रोतों के जरिए भी काफी बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में छोड़ी जा रही है.
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NOAA लैब के एडमिनिस्ट्रेटर रिक स्पिनराड के मुताबिक मानवीय गतिविधियां लगातार अर्थव्यवस्था को संभालने के दबाव में पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं. इससे जलवायु परिवर्तन (Global Warming) को बढ़ावा मिला है. रिक ने ये भी कहा, 'नया डेटा हमें फिर से चेतावनी दे रहे हैं कि अब जरूरी और सख्त कदम उठाने का समय आ गया है.' इसी लैब के वैज्ञानिकों ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण आर्थिक मंदी के दौरान CO2 गैस का स्तर 2020 में कम हो गया था. लेकिन अगले साल ही इसमें भयानक स्तर तक इजाफा हो गया.
आपको बताते चलें कि कार्बन डाई ऑक्साइड के पर्यावरण में बढ़ने से धरती भी गर्म हो रही है. इस वजह से पूरी दुनिया में बाढ़, भीषण गर्मी, सूखा पड़ने के साथ जंगलों में आग लगने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. तटीय शहर धीरे धीरे डूब रहे हैं. इस तरह करोड़ों इंसानों के बेघर होने का खतरा बढ़ गया है.
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