...तो भारत में फरवरी 2021 में हर रोज कोरोना के 2.87 लाख नए मरीज होंगे!
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...तो भारत में फरवरी 2021 में हर रोज कोरोना के 2.87 लाख नए मरीज होंगे!

अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी की मानें तो भारत के लिए बेहद डराने वाली खबर है. एमआईटी की रिसर्च टीम का दावा है कि अगर कोरोना की वैक्सिन नहीं बनती है तो भारत में अगले साल फरवरी में रोजाना 2.87 लाख महामारी की चपेट में आएंगे.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी की मानें तो भारत के लिए बेहद डराने वाली खबर है. एमआईटी की रिसर्च टीम का दावा है कि अगर कोरोना (Coronavirus) की वैक्सिन नहीं बनती है तो भारत में अगले साल फरवरी में रोजाना 2.87 लाख महामारी की चपेट में आएंगे. एमआईटी की रिसर्च टीम ने जो रिपोर्ट दी है, उसे SEIR के आधार पर तैयार किया गया है. गणित पर आधारित ये मॉडल किसी भी संक्रामक बीमारी के मामले में विशेषज्ञों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है.

  1. भारत में कोरोना महामारी के विकराल होने का दावा
  2. वैक्सिन नहीं बनी तो भारत सबसे ज्यादा प्रभावित देश 
  3. किसी भी देश में हर्ड इम्यूनिटी के संकेत नहीं 

एमआईटी की रिसर्च टीम के मुताबिक अगर वैक्सिन नहीं बनती है तो मई 2021 तक पूरी दुनिया में कोरोना मरीजों की तादाद करीब 25 करोड़ तक पहुंच जाएगी. उनके मुताबिक भारत अगले साल फरवरी के आखिर तक  कोविड-19 वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित देश होगा.

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भारत के बाद अमेरिका का नंबर होगा जहां रोजाना 95000 केस आएंगे. इसी तरह दक्षिण अफ्रीका में रोजाना 21000 और ईरान में रोजाना 17000 केस आएंगे. रिसर्च कर रही टीम ने तीन परिदृश्यों की बात की है.

पहला, मौजूदा टेस्टिंग रेट और उसके नतीजे. दूसरा, 1 जुलाई से टेस्टिंग रेट 0.1% बढ़ती है. तीसरा, अगर टेस्टिंग की मौजूदा रेट ही रहती है लेकिन संपर्क से संक्रमित होने की दर 8 पर पहुंच जाती है. यानी अगर एक मरीज आठ लोगों को संक्रमित करता है.

पहली परिकल्पना में 84 देशों में 1.55 बिलियन मरीज होने की संभावना जताई गई है. लेकिन टेस्टिंग बढ़ने पर यानी दूसरी परिकल्पना में केस 1.37 बिलियन हो सकते हैं. हलांकि कॉन्टेक्ट रेट अगर 8 पर पहुंचता है तो केस और मौत के आंकड़े कम हो जाएंगे. यानी तीसरी परिदृश्य में दुनिया भर में तब 60 करोड़ ही मरीज होंगे.

एमआईटी के मुताबिक मरीजों की ऐसी तादाद के बावजूद अभी तक कोई भी देश कोरोना वायरस के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी के पास नहीं पहुंचा है. रिसर्च टीम के मुताबिक आधिकारिक तौर पर दिए गए आंकड़ो की तुलना में वास्तविक मरीजों की संख्या कहीं ज्यादा है और ज्यादातर लोग महामारी को लेकर अतिसंवेदनशील हैं. रिसर्च टीम की राय में  कोरोना महामारी के लिए 'हर्ड इम्यूनिटी' का इंतजार करना सही तरीका नहीं है.

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