जानिए कौन हैं कुर्द जिनके साथ है अमेरिका, लेकिन उन्हें दबा रहे हैं तुर्की और ईरान
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जानिए कौन हैं कुर्द जिनके साथ है अमेरिका, लेकिन उन्हें दबा रहे हैं तुर्की और ईरान

एक समय कुर्द अपना खुद का देश बनाने के करीब थे. पिछले साल इराक में जनमत संग्रह जीतने के बाद अब भी कुर्द अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं. 

 इस्लामिक स्टेट आतंकियों के खात्मे के बाद से पश्चिम एशिया में कुर्दों की समस्या प्रमुखता से दुनिया के सामने आई है.  (फोटो: Reuters)

नई दिल्ली: तुर्की लंबे समय से अपने देश में पू्र्वी सीमा पर घरेूल कुर्द विद्रोहियों की वजह से अशांति झेल रहा है. इस सशस्त्र विद्रोह को दबाने के लिए सेना के इस्तेमाल पर तुर्की को दुनिया में मानवाधिकारों की दुहाई भी झेलनी पड़ी है. पिछले कई सालों से तुर्की ने कई क्षेत्र में, खासकर भाषा के मामले में कुर्दों को मान्यता देते हुए उन्हें अपने देश की मुख्यधारा में शामिल करने की कोशिश भी की है. लेकिन कुर्द समस्या हल होने के बजाए उलझती जा रही है. कुर्द केवल तुर्की में ही संघर्षरत नहीं हैं, वे ईरान और इराक में भी अपने हक केलिए जूझ रहे हैं. इस समस्या ने अब अंतरराष्ट्रीय स्वरूप ले लिया है. 

कुर्द पश्चिम एशिया में पूर्वी एंतोलिया प्रायद्वीप के टॉरस पहाड़ों, पश्चिम ईरान के जागरोस पर्वतों, उत्तरी ईराक, उत्तर पूर्वी सीरिया, अर्मेनिया और आसपास के इलाकों में रहने वाले निवासी हैं. माना जाता है कि वे कुर्द मेसोपोटामिया के मैदान और पर्वतीय इलाक़ों के मूल निवासी हैं. इन इलाकों ये लोग कुर्दिस्तान कहते हैं और अपनी आजादी के सशस्त्र और शांति दोनों तरह के संघर्ष कर रहे हैं. इसमें तुर्की में स्वायत्ता और इराक और सीरिया में अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. यह पश्चिम एशिया में चौथे सबसे बड़े जातीय समूह है. इनकी संख्या अभी तीन करोड़ के आसपास मानी जाती है. 

पहले कुर्दों के लिए अलग देश बनाने की बात हो चुकी है
20वीं सदी की शुरुआत में कुर्दों ने अलग देश बनाने की कोशिशें की थीं. पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य की हार के बाद पश्चिमी सहयोगी देशों ने 1920 में संधि कर कुर्दों के लिए अलग देश बनाने पर सहमति हुई थी लेकिन 1923 में तुर्की के नेता मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने इस संधि को ख़ारिज कर दिया था. तुर्की की सेना ने 1920 और 1930 के दशक में कुर्दिश उभार को कुचल दिया था. 

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आईसिस के विरोध में दुनिया का साथ दिया कुर्दों ने
अपने लिए सशस्त्र लड़ाई लड़ने के बाद भी कुर्दों ने सीरिया और इराक में स्थित आईएस (पहले आईसिस) आतंकियों का साथ नहीं दिया और उनके खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली सेनाओं का साथ दिया. इस वजह से कुर्दों को अमरिकता सहित दुनिया की सहानुभूति मिली. दरअसल आतंकियों ने खुद ही कुर्दों के विरोध को न्योता दिया था. अपने उदय के साथ ही आईसिस ने कुर्दों पर हमला बोला, इराक में भी आईसिस ने कुर्दों को अपने निशाने पर लिया. इसके बाद कुर्दों ने हथियार उठा लिए और अपनी रक्षा के लिए पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स का गठन किया. वहीं सीरियाई कुर्दिश डेमोक्रेटिक यूनिटी पार्टी ने हथियार उठाकर अपना एक रक्षा समूह बना लिया. तुर्की ने इस मामले में कुर्दों का साथ नहीं दिया और न ही अपने कुर्द बहुल इलाकों में आतंकियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की जबकि अपने देश में कुर्दों का दबाना जारी रखा. 

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क्यों है कुर्द के खिलाफ तुर्की
कुर्दों की तुर्की से तनातनी काफी पुरानी है. ओटोमन साम्राज्य के खत्म होने के बाद से कमाल पाशा ने भी कुर्दों का दमन ही किया. तुर्की में 15 से 20 फ़ीसदी कुर्द हैं, लेकिन लंबे समय तक तुर्की ने कुर्दों को हाशिए पर रखा. पिछले कुछ सालों में कुर्दों को तुर्की में कुछ अधिकार को दिए गए हैं, लेकिन तुर्की उन्हें स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता देने को तैयार नहीं है जिसके लिए उसे अपना काफी हिस्सा छोड़ना पड़ेगा. 

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1978 में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) का गठन हुआ जो पहले एक राजनैतिक संगठन था. अब्दुल्लाह ओकालन ने इसकी स्थापना की. इसे तुर्की के भीतर एक स्वतंत्र राष्ट्र राज्य बताया गया. 1884 में इस समूह ने हथियाबंद आंदोलन शूरू कर दिया. इसके बाद से हजारों लोग मारे गए और विस्थापित हुए हैं. 1990 के दशक में पीकेके ने अलग देश की मांग छोड़ दी और उसकी जगह राजनीतिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता की मांग रखी, लेकिन संघर्ष आज भी जारी है. वहीं दूसरी ओर तुर्की भी कुर्दों को अपने देश की मुख्यधारा में जोड़ने में पूरी तरह नाकाम रहा. उन्हें हमेशा ही सीमित अधिकार दिए गए और उन पर कई पाबंदियां लगाई गईं. विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की के यूरोपियन यूनियन में शामिल न हो पाने के की बड़ी वजह तुर्की में कुर्दों के बुरे हालात ही हैं. 

स्वतंत्र कुर्द राष्ट्र की मांग जीत हुई है जनमत संग्रह में
2017 में इराक में कुर्दों की स्वायत्ता को लेकर एक जनमत संग्रह हुआ जिसमें स्वतंत्र कुर्द की मांग की जीत हुई लेकिन इसके बावजूद भी यह हकीकत में न बदल सका. कुर्दों की स्थिति सबसे अच्छी केवल इराक में ही मानी जाती है, जहां कि 15 से 20 प्रतिशत आबादी कुर्दों की है. वहां अन्य देशों (तुर्क और ईरान) के मुकाबले कुर्दों के ज्यादा अधिकार हैं. वहीं सीरिया में इस्लामिक स्टेट (आइएस) के खात्मे के बाद कुर्दों की स्थिति स्पष्ट होना बाकी है. ईरान भी कुर्दों से परेशान है. वहां भी कुर्दों का तुर्की जैसा हाल है पर वहां न तो कुर्दों पर तुर्की जैसा दमन है और न ही वहां के कुर्द तुर्की की तरह सक्रिय हैं. 

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वर्तमान परिदृश्य
वर्तमान में तुर्की और ईरान को छोड़ दे तो पश्चिम एशिया में कुर्दों की स्थिति में सुधार आया है कम से कम अंतरराष्ट्रीय राजनीति में. जबकि तुर्की और ईरान ने कुर्दों विद्रोहियों को कुचलने के लिए हाथ मिलाया है. तुर्की के एक मंत्री का कहना है कि  तुर्की और ईरान अब कुर्द विद्रोहियों के खिलाफ एक संयुक्त अभियान चलाएंगे. अब अमेरिका भी कुर्दों के साथ आ गया है. कुर्दों ने अमेरिका को इस्लामिक स्टेट के खिलाफ जंग में भरपूर सहयोग किया और कहा जाता है कि इस सहयोग के बिना अमेरिका यहां नहीं जीत सकता था. अब अमेरिका तुर्की पर भी कुर्दों के खिलाफ कार्रवाई करने को मना किया है और चेतावनी भी दी है कि अगर तुर्की ने कुर्दों को दबाया तो उसे आर्थिक संकट झेलना पड़ सकता है.  

 अब इस्लामिक स्टेट के खात्मे के बाद कुर्द अब ज्यादा हथियारों से लैस हैं अगर उन्हें उनकी समस्याओं का हल नहीं मिला तो उनका असंतोष नए सैन्य संघर्ष में बदल सकता है. इस मामले में यहां के देश ही पहल कर आपस में हल निकालें तो ज्यादा मुफीद होगा. 

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