नई दिल्लीः पूजा व्रत विधान में केले का फल प्रसाद में, केले के पत्ते पूजा स्थल को सजाने में और केले का पौधा किसी भी स्थान को पूजा स्थल की मान्यता देने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है.
आरोग्य की नजर में संपूर्ण आहार वाला फल केला, आध्यात्म की नजर में भी बहुत पवित्र और पूजनीय (spiritual benefits of banana) है. इसके चौड़े पत्तों में श्रहरि का वास माना जाता है तो जड़ों में महादेव का जिसे मूल शंकर कहते हैं.
केले का कोई बीज नहीं होता है और इस पेड़ में तना भी नहीं होता है. सिर्फ पत्तों ही पत्तों में परत दर परत लिपटा यह पेड़ इतना अलग और विशेष क्यों है, कैसे हुआ इसका जन्म, पुराणों में इसकी कथा (Banana Tree Katha in Hindi) भी बहुत रोचक और आश्चर्य में डालने वाली है.
ऐसा है केले के पेड़ का स्वरूप
केले के पेड़ को ध्यान से देखें तो यह किसी भारतीय स्त्री की कल्पना जैसा लगता है. पत्तों-पत्तों में लिपटा तना ऐसा लगता है, जैसे किसी महिला ने साड़ी लपेट रखी है और सबसे ऊपरी भाग में फलों से लदी शाखानुमा आकृति जमीन की ओर ऐसी लटकती है, जैसे फूलों से सजी हुई किसी महिला की चोटी.
दरअसल, यह संरचना यूं ही नहीं है. असल में यह एक स्त्री का ही रूप है. इसका वर्णन पुराण कथा में मिलता है, जिसका संबंध सबसे क्रोधी ऋषि दुर्वासा से है.
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यह है केले के पेड़ की कथा (Banana Tree Katha)
एक कथा के अनुसार महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र दुर्वासा बहुत ही क्रोधी स्वभाव के थे. लेकिन उनके अंदर ऋषि संस्कार बचपन से ही प्रबल थे और वह 5 वर्ष की अवस्था आते-आते ध्यान-साधना में लीन रहने लगे थे. दरअसल दुर्वासा खुद महादेव के क्रुद्ध स्वरूप रुद्र के अंश से उत्पन्न हुए थे.
क्रोध ही उनके स्वभाव का मूल था और वह तमाम ज्ञान हो पाने के बाद भी इसे नहीं त्याग सके थे. बड़े होते-होते जब माता-पिता ने देखा कि बालक के अंदर वैराग्य अधिक उत्पन्न हो रहा है और वह समाज की व्यवहारिकता को नहीं समझ रहा है तब उन्होंने उनका विवाह ऋषि अंबरीष की कन्या से करा दिया.
ऋषि दुर्वासा और कंदली का विवाह
ऋषि अंबरीष ने अपनी कन्या के कई गुण बताए और ऋषि दुर्वासा ने माता-पिता की आज्ञा मानकर विवाह कर लिया. ऋषि अंबरीष दुर्वासा की क्रोधाग्नि को जानते थे, इसलिए पुत्री के साथ कोई अनिष्ट न हो इसके लिए भी चिंतित थे.
उन्होंने ऋषि दुर्वासा से पत्नी से कोई भूल हो जाए तो उसे क्षमा कर दिए जाने की प्रार्थना की. तब ऋषि ने उन्हें वचन दिया कि वह अपनी पत्नी के 100 अपराध क्षमा करते रहेंगे.
कंदली में आने लगी निश्चिंतता
गृहस्थ जीवन में कुछ बातें ऊपर-नीचे तो होती ही रहती हैं. ऋषि दुर्वासा की पत्नी का नाम था कंदली, जो कि स्वभाव से कर्मठ और बहुत समझदार थीं. वह हर एक बात का ख्याल रखती थीं. लेकिन फिर भी कभी-कभी कुछ न कुछ हो ही जाता था, लेकिन ऋषि ने उन पर कभी क्रोध नहीं किया. ऐसा होने से धीरे-धीरे कंदली के स्वभाव में भी निश्चिंतता आने लगी.
दुर्वासा ने दिया निर्देश
लेकिन एक दिन ऋषि कहीं से प्रवास कर कुछ देरी से आए. रात में भोजन के बाद उन्होंने विश्राम के लिए कहा साथ ही पत्नी से कहा कि मुझे कल ब्रह्म मुहूर्त में जरूर उठा दें. मैं खुद भी कोशिश करूंगा, लेकिन थकान के कारण शायद ऐसा संभव न हो. ब्रह्म मुहूर्त में ऋषिवर को जरूरी अनुष्ठान करना था.
कंदली ने दिखाया आलस
अगली सुबह कंदली की ब्रह्म मुहूर्त में नींद तो खुली, लेकिन आलस के कारण न तो वह खुद उठीं और न हीं ऋषि को उठाया. सुबह सूर्योदय के बाद जब ऋषि की आंख खुली तो दिन चढ़ आया था. अपना अनुष्ठान न कर पाने के कारण वह कंदली पर बहुत क्रोधित हुए और उन्हें भस्म हो जाने का श्राप दे दिया.
ऐसे बन केले का पेड़
ऋषि के शाप का तुरंत असर हुआ और कंदली राख बनकर रह गई. ऋषि को भी इस घटना पर बहुत दुख हुआ, लेकिन अनुशासन स्थापित करने के लिए उन्हें ऐसा करना पड़ा. जब कंदली के पिता ऋषि अंबरीश आए तो अपनी पुत्री को राख बना देखकर बहुत दुखी हुए.
तब दुर्वासा ऋषि ने कंदली की राख को पेड़ में बदल दिया और वरदान दिया कि अब से यह हर पूजा व अनुष्ठान का बनेगी. इस तरह से केले के पेड़ का जन्म हुआ और कदलीफल यानी केले का फल हर पूजा का प्रसाद बन गया. यही वजह है कि केले के पेड़ की गुरुवार को पूजा होती है.
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