Sakat Chauth Vrat Katha Hindi: जानिए कौन हैं सकट माता? क्या है सकट चौथ की पैराणिक कथा

Sakat Chauth Vrat Katha Hindi: पौराणिक कथाओं के मुताबिक सकट माता को देवी दुर्गा का रूप कहा जाता है. देवी के इस रूप की पूजा से बच्चों पर आने वाले संकट का नाश होता है. इसके साथ ही उन्हें लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की प्रप्ति होती है. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 10, 2023, 02:39 PM IST
  • क्यों होती है सकट माता की पूजा?
  • क्या है सकट चौथ के पीछे की कथा?
Sakat Chauth Vrat Katha Hindi: जानिए कौन हैं सकट माता? क्या है सकट चौथ की पैराणिक कथा

Sakat Chauth Vrat Katha Hindi आज सकट चौथ है. आज के दिन महिलाएं संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ मनाया जाता है. इसे सकट चौथ के अलावा संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट, माघ चतुर्थी भी कहा जाता है. मान्यता के अनुसार, सकट चौथ के दिन भगवान गणेश और सकट माता की पूजा करने से संतान के जीवन में आने वाली सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं.

पौराणिक कथाओं के मुताबिक सकट माता को देवी दुर्गा का रूप कहा जाता है. देवी के इस रूप की पूजा से बच्चों पर आने वाले संकट का नाश होता है. इसके साथ ही उन्हें लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की प्रप्ति होती है. इस दिन भक्त भगवान गणेश के लंबोदर रूप की भी पूजा करते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं.

सकट चौथ कथा
बहुत समय पहले की बात है एक गांव में एक कुम्हार रहता था. वह मिट्टी के अच्छे-अच्छे बर्तन बनाता था और उन्हें भट्ठे में पकाता था. एक बार जब कुम्हार ने भट्ठे में बर्तन रखे तो आग से बर्तन नहीं पके. बार-बार प्रयास करने पर भी मिट्टी के बर्तन नहीं पके. अंत में कुम्हार मदद के लिए राजा के पास पहुंचा. कुम्हार की दुर्दशा सुनने के बाद राजा ने राजपुरोहित से परामर्श किया और इस विचित्र घटना का कोई समाधान पूछा. राजपुरोहित ने सुझाव दिया कि हर बार बर्तन के लिए भट्ठा तैयार करने पर एक बच्चे की बाली चढ़ानी होगी.

राजपुरोहित की बात सुनने के बाद राजा ने आदेश दिया कि जब भी भट्ठा तैयार हो, प्रत्येक परिवार को बली के लिए अपना एक बच्चा देना होगा. सभी परिवारों ने एक-एक करके राजा की आज्ञा का पालन करने के लिए बच्चों में से एक को देना शुरू कर दिया. कुछ दिनों बाद एक बूढ़ी औरत की बारी आई जिसका एक ही बेटा था. सकट चौथ का दिन था. बूढ़ी महिला ने अपने इकलौते बेटे को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा सुरक्षा के रूप में दिया और अपने बेटे को भट्ठे में देवी सकट की प्रार्थना करने का सुझाव दिया और खुद सकट देवी की आराधना करने लगी.

इस बार सकट देवी की कृपा से जिस भट्ठे को पकने में कई दिन लग जाते थे, वह एक ही रात में तैयार हो गया. अगले दिन सुबह जब कुम्हार भट्ठे का निरीक्षण करने आया तो उसे देखकर हैरान रह गया. उन्होंने न केवल बुढ़िया के बेटे को सुरक्षित और जीवित पाया बल्कि अन्य बच्चे भी जीवित थे. इस घटना के बाद माताएं देवी सकट की पूजा करती हैं और अपने बच्चों को किसी भी अप्रिय घटना से बचाने की प्रार्थना करती हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लें.)

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