Shaniwar ki katha: शनिदेव को न्याय का देवता कहा जाता है. शनिदेव लोगों के कर्मों का हिसाब करते हैं. शनि देव के बारे में काफी कथाएं चर्चा में है. आज हम इस लेख में आपको शनिदेव और सूर्यदेव की कहानी के बारे में बताएंगे. शनिदेव और सूर्यदेव के बीच पिता और पुत्र का रिश्ता है लेकिन दोनों के बीच शत्रुता का भाव है. आइए जानते हैं सूर्यदेव और शनिदेव के बीच का संबंध मधुर क्यों नहीं था.
शनिदेव और सूर्यदेव के बीच का रिश्ता क्यों था खराब
स्कंद पुराण के अनुसार सूर्यदेव का विवाह दक्ष की पुत्री संज्ञा से हो गया. दोनों की तीन संतानी थी, मनु, यमराज और यमुना. संज्ञा अपने पति सूर्यदेव के तेज से काफी विचलित रही थी. एक बार संत्रा पिता के पास पहुंची. उनके पिता ने उन्हें सूर्यलोक जाने की आज्ञा दी और बोला कि आप आपका घर सूर्यलोक ही है. इसके बाद संज्ञा सूर्य लोक लौटकर आ गई.
उस दौरान संज्ञा ने सूर्य देव से दूर रहने के बारे में सोचा. जिसके बाद संज्ञा ने अपनी छाया यानी हमशक्ल सवर्णा को बनाया. अपनी छाया को बच्चों की जिम्मेदारी देखकर तप करने चली गईं. संवर्णा छायारुप थी ऐसे में सूर्य का तेज प्रभाव का असर नहीं पड़ता था.
शनि को नहीं माना था पुत्र
छाया सवर्णा और सूर्य से तीन संतान हुई तपती, भद्रा और शनि, संवर्णा ने कभी भी सूर्य देव को एहसास नहीं होने दिया कि वह संज्ञा की छाया है. जब शनिदेव का जन्म हुआ, शनिदेव में मां छाया के अंश दिखे. तो सूर्यदेव को शक हुआ कि शनिदेव उनकी संतान नहीं है.
उस समय शनि की क्रोधित नजर पड़ी तो सूर्य देव भी काले हो गए. शापित होने के बाद सूर्यदेव भगवान शिव के पास पहुंचे. महादेव ने उन्हें अपनी गलती का एहसास कराया. सूर्य देव ने संवर्णा से माफी मांगी. इस घटना के बाद से ही शनिदेव और पिता सूर्य देव के संबंध खराब हो गए.
(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Bharat इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.)
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