नई दिल्लीः Vishwakarma Puja Jayanti 17th September 2021: इस धरती पर जो कुछ भी संरचना, मशीनी कल-पुर्जे व अन्य जो भी निर्माण दिखाई दे रहा है, इन सभी की रचना और उत्पत्ति भगवान विश्वकर्मा के द्वारा की गई है. निर्माणकर्ता होने के कारण ही उन्हें ब्रह्मा का ही एक रूप या अवतार माना जाता है. भगवान विश्वकर्मा का जिक्र 12 आदित्यों और लोकपालों के साथ ऋग्वेद में होता है. इस तरह भगवान विश्वकर्मा की मान्यता पौराणिक काल से भी पहले मानी जाती है.
इन वस्तुओं के निर्माण कर्ता
विश्वकर्मा जी के बारे में कहा जाता है कि एक महान ऋषि होने के साथ-साथ वो एक महान शिल्पकार और ब्रह्म ज्ञानी भी थे. इसी के कारण उन्हें भगवद पद भी प्राप्त हुआ है.
ऐसी मान्यता है कि उन्होंने देवताओं के घर, नगर, अस्त्र-शस्त्र आदि चीजों का निर्माण किया था. इसके अलावा हस्तिनापुर, द्वारिकापुरी, पुष्पक विमान, भगवान शिव का त्रिशूल इत्यादि ऐश्वर्य की वस्तुओं के निर्माता भी विश्वकर्मा जी है हैं. भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र भी विश्वकर्मा जी ने ही निर्मित किया था.
विश्वकर्मा जी की उत्पत्ति
विश्वकर्मा जी का जन्म कब हुआ और कैसे हुआ इस बात को लेकर अलग-अलग कथाएं और तथ्य हैं. एक कथा के अनुसार वह ब्रह्मा के वंशज माने जाते हैं. कथा है कि ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म थे. जिनकी पत्नी का नाम वस्तु था. वस्तु के सातवें पुत्र थे वास्तु, जो शिल्प शास्त्र के आदी थे. उन्हीं वासुदेव की अंगीरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था.
वहीं स्कंद पुराण में बताया जाता है कि धर्म ऋषि के आठवें पुत्र प्रभास का विवाह गुरु बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मवादिनी के साथ हुआ था. ब्रह्म वादिनी ही विश्वकर्मा जी की माँ थी. इसके अलावा वराह पुराण में इस बात का उल्लेख है कि सब लोगों के उपकारार्थ ब्रह्मा परमेश्वर ने बुद्धि से विचारक विश्वकर्मा को पृथ्वी पर उत्पन्न किया था.
यह है शुभ मुहूर्त
17 सितंबर, शुक्रवार को सुबह 6:07 बजे से 18 सितंबर, शनिवार को 3:36 बजे तक पूजन
केवल राहुकल के समय पूजा निषिद्ध
17 सितंबर को राहुकाल सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक
बाकी समय पूजा का योग रहेगा.
पूजन विधि
इस दिन सूर्य निकलने से पहले स्नान आदि करके पवित्र हो जाना चाहिए.
इसके बाद रोजाना उपयोग में आने वाली मशीनों को साफ किया जाता है.
फिर पूजा करने बैठे. पूजा में भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान विश्वकर्मा की भी तस्वीर शामिल करें.
इसके बाद दोनों ही देवताओं को कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, हल्दी, व फूल, फल, मेवे, मिठाई इत्यादि अर्पित करें.
आटे की रंगोली बनाएं और उनके ऊपर सात तरह के अनाज रखें.
पूजा में जल का एक कलश भी शामिल करें.
धूप दीप इत्यादि दिखाकर दोनों भगवानों की आरती करें.
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