नई दिल्ली: UP Election 2022- यूपी चुनाव में मतदान में अब महज 28 दिन का समय रह गया है, ऐसे में एक बार फिर चुनाव से पहले टिकट की जुगाड़ में और राजनीतिक गोटियां सेट करने के लिए नेता लगातार दल बदल रहे हैं. बीते दिनों योगी सरकार के मंत्री और बड़े क्षेत्रीय क्षत्रप स्वामी प्रसाद मौर्य समेत 5 विधायकों ने भाजपा छोड़ दी. फिर बुधवार को एक और मंत्री दारा सिंह चौहान ने भाजपा छोड़ने का एलान किया, गौरतलब है कि ये सभी सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव से मुलाकात कर चुके हैं.
दोहराया जा रहा 2019 लोकसभा चुनाव का खेल
बहरहाल ऐसी ही कुछ भगदड़ 2019 लोकसभा चुनाव से पहले देखने को मिली थी, जब टिकट कटने या कद के हिसाब से अहमियत ना मिलने पर तमाम BJP नेताओं और सांसदों ने मोदी सरकार पर दलित, पिछड़ा और किसान विरोधी होने का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ दी थी. आपको बता दें, इन सभी नेताओं ने तुरंत ही कोई ना कोई विपक्षी पार्टी (अधिकतर ने सपा) ज्वाइन की और 2019 लोकसभा चुनाव लड़ा, ये सभी नेता अपने क्षेत्रों में जहां से BJP से 2014 में चुनकर आए थे, वहीं से BJP के विरोध में लड़ने पर 2019 में बुरी तरह से चुनाव हारे और लगभग राजनीतिक परिदृश्य से गायब से हो गए.
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एक नजर डालिए इन नेतागण के रिकार्ड पर:
6 अप्रैल 2019 – पटना साहिब से बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिंहा कांग्रेस में शामिल हुए और 2019 लोकसभा चुनाव बुरी तरह हारे.
18 फरवरी 2019 – दरभंगा से बीजेपी सांसद कीर्ति आजाद कांग्रेस में शामिल हुए और 2019 लोकसभा चुनाव बुरी तरह हारे.
16 मार्च 2019 – इलाहाबाद से बीजेपी सांसद श्यामाचरण गुप्ता एसपी में शामिल हुए और बांदा से 2019 लोकसभा चुनाव लड़े बुरी तरह हारे.
अप्रैल 2019 – उत्तर पश्चिम दिल्ली के बीजेपी सांसद उदित राज कांग्रेस में शामिल हो गए, 2019 लोकसभा चुनाव लड़े बुरी तरह हारे.
19 अप्रैल 2019 – मछलीशहर से बीजेपी सांसद राम चरित्र निषाद एसपी में शामिल हुए है, बुरी तरह लोकसभा चुनाव हारे.
29 मार्च 2019 – इटावा से बीजेपी के सांसद अशोक कुमार दोहरे कांग्रेस में शामिल, बुरी तरह से चुनाव हारे.
27 मार्च 2019 – हरदोई से बीजेपी सांसद अंशुल वर्मा एसपी में शामिल हुए, टिकट नहीं मिला.
2 मार्च 2019 - बहराइच से बीजेपी सांसद सावित्री बाई फूले कांग्रेस में शामिल हुई, बुरी तरह चुनाव हारी.
क्या कहते है राजनीतिक विशेषज्ञ
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह इस बाबत कहते हैं कि बीजेपी की समस्या ये है कि जब वह किसी नेता को विपक्षी पार्टी से अपनी पार्टी में शामिल कर आते हैं तो उसकी लार्जर देन लाइफ छवि बनाते हैं, यह दिखाते हैं कि वह अपने समाज का बहुत बड़ा नेता है और जब यह नेता जिनकी कोई विचारधारा नहीं है, वो अपनी मांग बढ़ाते जाते हैं तब पार्टी उन्हें पूरा करने में असमर्थ हो जाती और वह पार्टी छोड़ कर जाते हैं. वैसे तो इनसे कोई खास नुकसान नहीं होना है क्योंकि इन क्षेत्रीय क्षत्रपों के बिना भी BJP ने 2014 में बड़ी जीत दर्ज की थी, लेकिन निश्चित तौर पर चुनाव का समय में एक संदेश तो जाता ही है जिससे थोड़ा फर्क पड़ता है.
उन्होंने कहा कि ये नेता जो अब समाज का खास प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं और ना ही इनके पास अब कोई वोट बैंक है, लेकिन ये अपने बेटे और बेटियों के राजनीतिक भविष्य को लेकर खासे सक्रिय है जो जनता को भी समझ आता है इसलिए इन विधानसभा चुनावों में इनके जाने से कोई विशेष फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है.
कई विधायक भाजपा में आए
इस घटनाक्रम के बाद पलटवार के तौर पर BJP ने भी विपक्षी पार्टियों को बड़ा झटका देते हुए 1 कांग्रेस विधायक, 1 सपा विधायक और 1 पूर्व विधायक को पार्टी में शामिल कराया, सपा विधायक हरिओम यादव तो सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के समधी हैं और उनके गढ़ फिरोजाबाद के मजबूत नेता हैं.
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