मध्य प्रदेश में अमित शाह का गेम प्लान, चारों खाने चित्त हुई कांग्रेस, बीजेपी ने रच दिया इतिहास

दरअसल मध्य प्रदेश में चुनाव की तैयारियों में जान फूंकने के लिए देश के गृह मंत्री अमित शाह ने जुलाई में ही दो बार राज्य का दौरा किया था. उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि राज्य की लीडरशिप में कोई बदलाव नहीं होगा. लेकिन स्मार्ट स्ट्रैटजी अपनाते हुए नए लीडर्स की एंट्री भी चुनाव प्रबंधन में करा दी. दरअसल कर्नाटक में हुए चुनाव के नतीजों से सबक लेते हुए भाजपा की टॉप लीडरशिप ने यह फैसला लिया था. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 3, 2023, 07:12 PM IST
  • मध्य प्रदेश में अमित शाह का गेम प्लान.
  • चारों खाने चित्त हुई विपक्षी कांग्रेस पार्टी.
मध्य प्रदेश में अमित शाह का गेम प्लान, चारों खाने चित्त हुई कांग्रेस, बीजेपी ने रच दिया इतिहास

नई दिल्ली. मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की चुनावी जीत के पीछे कई अहम वजहें बताई जा रही हैं. इनमें लाडली बहना योजना समेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता जैसे काई कारण बताए जा रहे हैं. लेकिन इन सबके के बीच अगर बात रणनीति करें तो इस जीत में केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी के 'चाणक्य' कहे जाने वाले अमित शाह का भी बहुत बड़ा रोल रहा है.

दरअसल मध्य प्रदेश में चुनाव की तैयारियों में जान फूंकने के लिए देश के गृह मंत्री अमित शाह ने जुलाई में ही दो बार राज्य का दौरा किया था. उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि राज्य की लीडरशिप में कोई बदलाव नहीं होगा. लेकिन स्मार्ट स्ट्रैटजी अपनाते हुए नए लीडर्स की एंट्री भी चुनाव प्रबंधन में करा दी. दरअसल कर्नाटक में हुए चुनाव के नतीजों से सबक लेते हुए भाजपा की टॉप लीडरशिप ने यह फैसला लिया था. 

लीडरशिप के बीच मतभेद को लेकर सख्त हुए शाह 
26 जुलाई को अमित शाह ने करीब साढ़े चार घंटे की बैठक की थी. इस बैठक में शाह ने साफ शब्दों में कहा था कि अगर लीडरशिप के भीतर कोई मतभेद है तो उसे सुलझा लें. पब्लिक के बीच केवल यही संदेश जाना चाहिए कि हम यूनाइटेड हैं. पब्लिक में एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी नहीं होनी चाहिए. दरअसल, जून महीने तक मध्यप्रदेश के कई नेताओं के बीच कुछ मतभेद सामने आ रहे थे. 

कर्नाटक के नतीजों में ग्राउंड लीडरशिप के बीच मतभेद भी एक वजह रही थी. लिहाजा इस बार शाह ने कोई कोई रिस्क नहीं लिया. बंद दरवाजे के पीछे हुई 26 जुलाई की बैठक में राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्य के प्रेसीडेंट विष्णु दत्त शर्मा, केंद्रीय रेल मंत्री, सांसद और इलेक्शन कोइंचार्ज अश्विनी वैष्णव और राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा शामिल रहे थे. 

नहीं बदलेगी ग्राउंड लीडरशिप, शिवराज ही रहेंगे सीएम पद के उम्मीदवार 
शाह ने बैठक में स्पष्ट कर दिया था कि ग्राउंड लीडरशिप में कोई बदलाव नहीं होगा. सीएम शिवराज सिंह चौहान ही पद के दावेदार रहेंगे. विष्णु दत्त शर्मा स्टेट प्रेसीडेंट बने रहेंगे. दरअसल कर्नाटक में चुनाव से पहले भाजपा ने लीडरशिप में बड़े बदलाव किए थे. नतीजतन भाजपा की करारी शिकस्त हुई. इस बार भाजपा की टॉप लीडरशिप फूंक-फूंक कर कदम रखना चाह रहा था.

चुनाव के लिए बनाई स्मार्ट स्ट्रैटजी 
हालांकि राज्य के नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं के मुताबिक विष्णु दत्त शर्मा पार्टी काडर और नेताओं को बांधकर रखने में असफल दिखे. लेकिन शाह ने उन्हें हटाने की जगह एक स्मार्ट स्टैटजी को अपनाया. उन्होंने शर्मा को बिना हटाए एक नए व्यक्ति की नियुक्ति कर दी. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर राज्य की इलेक्शन मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष बनाए गए. इससे शर्मा का कार्यभार खुद ब खुद कम हुआ, और मुख्य लगाम तोमर के हाथों में आई. तोमर की नियुक्ति 15 जुलाई को हुई थी. इससे पहले 11 जुलाई को शाह ने राज्य का दौरा किया था. 

चुनाव के लिए 15 कमेटियों का ऐलान
शाह ने बैठक में 15 चुनाव कमेटियों का ऐलान किया था. इन कमेटियों में सभी बड़े नेता शामिल रहे. कमेटी ने टिकट वितरण, जनता से फीडबैक लेने, चुनाव प्रचार, रैली और मीडिया मैनेजमेंट का काम किया. सिविल एविएशन मिनिस्टर ज्योतारादित्य सिंधिया, एनवायरमेंट मिनिस्टर, और राज्य के इलेक्शन कोइंचार्ज भूपेंद्र सिंह यादव, अश्विनी वैष्णव, नरेंद्र सिंह तोमर, शिवराज सिंह चौहान, विष्णु दत्त शर्मा और दूसरे बड़े नेता कमेटी में पदाधिकारी थे. 

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