Bengal Election: मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को CBI का नहीं 'FBI' का है खौफ!

चुनाव के मुहाने पर खड़ी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सीबीआई का नहीं एफबीआई का खौफ सता रहा है. 

Written by - Madhaw Tiwari | Last Updated : Feb 24, 2021, 09:49 AM IST
  • पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनाव से पहले सीबीआई का खौफ नहीं है.
  • इस बार विधानसभा चुनाव में ममता अकेली पड़ती दिख रही हैं.
Bengal Election: मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को CBI का नहीं  'FBI' का है खौफ!

कोलकाता: मौजूदा वक़्त में ममता के घर तक सीबीआई की आंच पहुंच रही है. CBI उनकी बहू से पूछताछ कर चुकी है. लेकिन ममता बनर्जी को CBI नहीं बल्कि FBI का खौफ है. FBI की वजह से ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल का दांव हार सकती हैं.

19 जनवरी 2019 को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड के नजारे को याद कीजिए, वो तस्वीरें बताती हैं कि उस वक्त ममता बनर्जी के साथ देश की बाकी पार्टियां खड़ी हो गई थीं. उस वक्त सबका मकसद था बीजेपी को केंद्र की सत्ता में आने से रोकना, लेकिन हुआ क्या सारी पार्टियां एक तरफ और बीजेपी एक तरफ. एंटी मोदी बयार में ममता बनर्जी को सबसे बड़ी चोट का सामना करना पड़ा. लोकसभा की 18 सीटों पर बीजेपी ने क़ब्ज़ा किया और पश्चिम बंगाल का करीब 40% वोट हासिल किया.

आज पश्चिम बंगाल की तस्वीर लोकसभा चुनाव के वक्त से बिलकुल अलग है. ममता बनर्जी अकेली पड़ चुकी हैं. सब बीजेपी को रोकने की बात करते हैं लेकिन जंग में साथ नहीं आते, क्योंकि किसी को भी ममता बनर्जी का नेतृत्व नहीं चाहिए. कांग्रेस और लेफ़्ट साथ आ चुके हैं. मुस्लिम नेता अब्बास और ओवैसी साथ आ चुके हैं और कांग्रेस लेफ्ट गठबंधन से बात भी कर रहे हैं, दूसरी तरफ मतुआ और आदिवासी वोट भी खिसक चुका है. और ममता दीदी अकेली पड़ गई हैं.

ममता दीदी को 'FBI' का ख़ौफ़!

10 साल पहले सबने साथ दिया तो ममता बनर्जी ने लेफ़्ट का किला ध्वस्त किया. लेकिन अभी माहौल बिल्कुल बदल चुका है और जब साथ छोड़ चुके हैं तो ममता दीदी को FBI का खौफ सता रहा है, F का मतलब है फुरफुरा शरीफ, B का मतलब है बहू और भतीजा और I का मतलब है ITRUDERS यानी घुसपैठिए.

टीएमसी के साथ जब कोई नहीं है और सब एंटी ममता की हवा में ही जंग लड़ रहे हैं तो ऐसे में ममता की सबसे बड़ी ज़रूरत है फुरफुरा शरीफ़. वो दरगाह जिसकी पकड़ पश्चिम बंगाल के 5 ज़िलों में 300 मस्जिदों तक है और जो ममता जी से काफी नाराज़ हैं. फिलहाल ममता बनर्जी के लिए मुस्लिमों का वोट बैंक ही सबसे बड़ा सहारा है और प्रदेश में 30 फीसदी वोटों की हिस्सेदारी रखनेवाली ये कौम फिलहाल बंट चुकी है और जिसके लिए ममता पर्दे के पीछे से मौलानाओं से फिल्डिंग तो कराती हैं लेकिन सवाल है कि इससे क्या असर होगा.

FBI का पहला फैक्टर F यानी फुरफुरा शरीफ
फुरफुरा शरीफ ऐसा फैक्टर है जिसकी वजह से ममता के लिए मुस्लिम समुदाय मुसीबतें पैदा कर सकता है. क्योंकि फिलहाल ममता बनर्जी के लिए मुस्लिम ही वो सहारा है जिसकी वजह से वो जीत की राह तय कर सकती हैं लेकिन फुरफुरा फैक्टर ममता के फेवर में नहीं है. ममता के लिए मुश्किल ये है कि उन्होंने पिछले दस सालों में मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए जो काम किए उसकी वजह से बीजेपी टीएमसी की खातिर एंटी हिन्दू माहौल बनाने में कामयाब रही है.

अब जब पश्चिम बंगाल में राइट विंग के ज़मीन तैयार हो चुकी है तो बीजेपी उस पर अपना किला बनाने में जुटी है और इसी बीच में बिहार के सीमांचल में 5 सीटें जीतकर उत्साहित हैदराबाद की पार्टी एमआईएमआईएम(AIMIM) भी पश्चिम बंगाल में एंट्री मार देती है और ममता के बड़े मोहरे तो तोड़ से जाती है. 

पांच मुस्लिम बहुल जिलों में है पीरजादा की पकड़ 

पश्चिम बंगाल मालदा, मुर्शिदाबाद, दक्षिण दिनाजपुर, उत्तर दिनाजपुर और दक्षिण 24 परगना जैसे पांच जिले मुस्लिम बहुल हैं, फुरफुरा शरीफ़ का सभी 5 ज़िलों में असर है. यहां की तकरीबन 3000 मस्जिदों के इलाकों पर अब्बास सिद्दीकी की सीधी पकड़ है, इसके अलावा दिनाजपुर और मालदा जैसे दो ज़िले बिहार की सीमा से लगते हैं ऐसे में ओवैसी यहां कारगर फैक्टर साबित हो सकते हैं. 

यानी इन ज़िलों में आने वाली करीब 60 सीटों पर जिनता ओवैसी और अब्बास को फायदा होगा, उतना दीदी को नुकसान होगा और इसी नुकसान की भरपाई के लिए मौलाना जरजिस को आगे किया गया है. 

फुरफुरा फैक्टर ने ममता ब्रिगेड को इतना डरा दिया है कि अब पीरज़ादा अब्बास सिद्दीकी के जलसों पर हमले होने लगे हैं और बकौल पीरज़ादा उनकी कौम के लोगों को धमकाया जा रहा है. ज़ी हिन्दुस्तान से बात करते हुए आईएसएफ(ISF) चीफ़ पीरज़ादा अब्बास सिद्दीकी कहते हैं कि, 'विधानसभा चुनाव में टीएमसी (TMC) को लोगों को 50 सीटें भी नहीं मिलेगी. ये लोग हमारे लोगों के साथ गुंडागर्दी कर रहे हैं, मारपीट कर रहे हैं, घरों में आग लगाने की धमकी दे रहे हैं और कह रहे हैं कि वोट देने जाओगे तो मार दिए जाओगे.'

कालीघाट का किला ख़तरे में है और उसकी नींव ही खिसक रही है. किले को सपोर्ट करनेवाले साथ भी इसे गिराने की कोशिश में लगे हैं. और ये फैक्टर्स मिलकर बीजेपी की राह को आसान बना रहे हैं.

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'FBI' में B यानी 'बहू-भतीजा'

बंगाल की सियासी अदावत अब दीदी के बहू-भतीजे के इर्द-गिर्द घूमने लगी है. जैसे-जैसे सीबीआई का शिकंजा बहू-भतीजे पर कसने लगा है वैसे-वैसे दीदी बौखला रही हैं और बीजेपी को वार करने का मौका मिल रहा है. 2 दिनों से सीबीआई की बड़ी टीम अभिषेक बनर्जी के पीछे पड़ी हुई है. अभिषेक बनर्जी के करीब 12 करीबियों के घर-दफ्तर पर छापे मारे गए हैं.

एक दिन पहले कोयला घोटाले के सिलसिले में अभिषेक बनर्जी की साली मेनका गंभीर के घर छापा मारकर अहम दस्तावेज बरामद किए थे और करीब 4 घंटे पूछताछ की थी. सीबीआई टीम ने अभिषेक बनर्जी के घर का रूख फिर से किया और उनकी पत्नी यानी ममता बनर्जी की बहू रुजिरा नरूला बनर्जी से करीब डेढ़ घंटे पूछताछ की. 

रुजिरा से सीबीआई ने पूछे ये पांच सवाल 

पूछताछ के दौरान कोयला घोटाले और शेल कंपनी से जुड़े कई सवाल रुजिरा पूछे गए जैसे कि उनकी कंपनी का लेन-देन किस-किसके साथ होता है? अचानक से कंपनी के खाते में पैसा कहां से आ गया?  कोयला तस्करी में अनूप माझी से क्या रिश्ता है?  अनूप माझी ने आपके खाते में पैसे क्यों भेजे? कंपनी के खाते से पैसे कहां-कहां ट्रांसफर किए गए?

जिस वक्त सीबीआई अभिषेक के घर पहुंच रही थी. उसी वक्त ममता बनर्जी भी वहां पहुंच गई और अपनी बहू रुजिरा से बातचीत करने के बाद पोती को लेकर वहां से निकल गईं.

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करारा हमला करने की फिराक में है भाजपा 

अभिषेक बनर्जी को लेकर बीजेपी पहले से ही हमलावर है. बीजेपी की रैली में भाईपो मुर्दाबाद के नारे लगते रहते हैं और शाह से लेकर मोदी तक बुआ-भतीजे पर प्रहार करते हैं. अब कोयला घोटाले की जांच का शिकंजा कसने से बीजेपी पूरी ताकत से हमला करने की प्लानिंग में है. क्योंकि दीदी के भतीजे के अलावा बहू का नाम भी आरोपियों की फेहरिस्त में जुड़ सकता है.

सूत्रों की माने तो ऐसा कहा जा रहा है कि लीप्स एंड बाउंड मैनेजमेंट सर्विस नाम की फर्म को अभिषेक बनर्जी ने 2010 में अपनी मां लता के नाम से शुरु किया था.. जिसमें बाद में अपनी पत्नी रुजिरा और उनके पिता को शामिल किया. कहा जा रहा है कि इस कंपनी के जरिए कोयला खदानों से मिले कटमनी को ब्लैक से व्हाइट करने का खेल किया गया. जिससे कंपनी का टर्नओवर कुछ ही साल में 300 करोड़ जा पहुंचा. जिसके बाद अभिषेक बनर्जी ने डायरेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया था लेकिन तब तक कोयले की कालिख उनके दाम पर लग चुकी थी जिसे वो जितना मिटाने की कोशिश करते उतना ही सीबीआई का शिकंजा कसता गया.

FBI में I = INTRUDERS (घुसपैठिए)

FBI का तीसरा फैक्टर है INTRUDERS यानी घुसपैठिए. वो बांग्लादेशी घुसपैठिए जिनसे ममता अनकंडिशनल प्यार करती हैं और यहीं पर सियासत के उनके विरोधी फायदा उठा ले जाते हैं और वोटर्स की भावनाओं को मोड़ देते हैं. अवैध बांग्लादेशियों के साथ ममता, दीदी के लिए एक बड़ी चुनौती है.

बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर ममता बनर्जी को लगातार बीजेपी घेरती आई है. वो ममता बनर्जी जो कभी बांग्लादेशियों को तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी का वोटर कहती थीं और लोकसभा में नाराज़ होकर स्पीकर पर अपने वक्तव्य के कागज़ उछालती थीं वो सत्ता में आईं तो वाम के रास्ते पर चलने लगीं, और जब बीजेपी अवैध बांग्लादेशियों को बाहर करने की बात करती है तो ममता उन्हें नागरिकता देने की बात करती हैं

ममता बनर्जी ने 4 मार्च 2020 को कहा था कि, “जो भी उस वक़्त बांग्लादेश से आए वो बंगाली थे, तो उस समय समझौता हुआ, नेहरू लियाकत समझौता. उस समझौते के अनुसार वो जो बांग्लादेश से आए वो भारतीय हैं और 1971 में मार्च महीने में मुक्ति वहिनी आंदोलन से आए. उस वक़्त इंदिरा गांधी और शेख मुजीरुहमान के बीच समझौता हुआ कि ये हमारे नागरिक हैं”

बीजेपी सिर्फ बांग्लादेशी घुसपैठियों का आरोप नहीं लगाती बल्कि चुनाव टीएमसी के नारों को भी बांग्लादेशी करार देकर ममता दीदी को बांग्लादेशी प्रेमी साबित करने में लगी है और ममता एंड कम्पनी को इसका जवाब देना नहीं बन रहा. बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर ममता पर यहीं तक तुष्टिकरण के आरोप नहीं लगते बल्कि एनआरसी( NRC) की मुखालफत करना और साथ में सीएए(CAA) के विरोध में खड़े होने को लेकर भी बीजेपी ममता के खयालात को हिन्दू-मुस्लिम में बांट देती है.

ममता बनर्जी ने बांग्लादेशियों पर अपना स्टैंड बदला है. बांग्लादेशी घुसपैठ पर ममता दीदी ने साल 2005 में लोकसभा में स्पीकर के ऊपर पेपर फेंक दिया था. साल 2006 में लोकतंत्र की हत्या के नाम से किताब लिखा, लेकिन सत्ता आने के बाद उनके विचार ऐसे बदले कि वो घुसपैठियों को बाहर करने वाले केंद्र सरकार के कानूनों का विरोध करने लगीं.

पश्चिम बंगाल में ममता के लिए बचे-खुचे वोट बैंक में भी मुसीबतों का अम्बार लगा हुआ है. इसके अलावा टीएमसी की छवि को भी चोट पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. और ये सब मिलाकर ममता के लिए 2021 की राह मुश्किल कर रहा है.

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