कोलकाता: पश्चिम बंगाल में वामपंथी राजनीति के 'अंतिम रोशन चिराग' रहे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य आज अपना 77वां जन्मदिन मना रहे हैं. रविवार को आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का हाथ थामकर लेफ्ट पार्टियों ने अपने अभियान की कोलकाता के ऐतिहासिक ब्रिगेड परेट मैदान पर विशाल रैली के साथ शुरुआत की.
लंबे समय से बीमार चल रहे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य रैली में शिरकत नहीं कर सके और उन्हें इस बात का बेहद अफसोस हुआ.
रैली से पहले दिया संदेश
उन्होंने रैली के आयोजन से पहले कार्यकर्ताओं के लिए संदेश जारी करते हुए कहा, 'मेरे कॉमरेड जमीन पर जंग लड़ रहे हैं और डाक्टरों की सलाह के मुताबिक मुझे घर के भीतर रहना पड़ रहा है.
मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि ब्रिगेड परेड ग्राउंड में इतनी बड़ी रैली होगी और मैं उसमें हिस्सा नहीं ले पाउंगा. मैं उम्मीद करता हूं कि रैली सफल होगी.'
नैनो कार में बैठकर ममता पहुंची सत्ता के द्वार
ज्योति बसु के बतौर मुख्यमंत्री रिकॉर्ड कार्यकाल के बाद 11 साल तक बुद्धदेव ने राज्य के सातवें मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली. उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद वामपंथ की जड़े बंगाल में लगातार कमजोर होती गईं, ऐसे में ममता ने मां माटी, मानुष के नारे के साथ 'टाटा की नैनो कार' में सवार होकर लेफ्ट को सत्ता से बेदखल कर दिया और खुद सत्ता के दरवाजे तक पहुंच गईं.
कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस का गठन करने वाले ममता बनर्जी ने सिंगूर में टाटा के प्लांट के नैनो कार प्लांट के मुद्दे को जमकर भुनाया और बुद्धदेव को पूंजीवादियों के साथ खड़ा दिखाने में सफल रहीं.
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मुरझाकर फिर नहीं लहलहा पाई वामपंथ की फसल
ममता बनर्जी ने लेफ्ट की राजनीति की काट तृण-मूल की अल्ट्रा लेफ्ट नीतियों से किया और राज्य में वामपंथ की फसल को दोबारा हरा नहीं होने दिया। ऐसे में वामपंथ के दीपक की लौ धीमी पड़ने लगी और बुझने की कगार पर पहुंच गई है.
ममता और मोदी की आंधी से अपने वजूद के दीये को बुझने से बचाने के लिए कांग्रेस के हाथ का सहारा मौजूदा चुनाव में वामदलों ने लिया है.
मुख्यमंत्री रहते हुए हार गए थे विधानसभा चुनाव
भट्टाचार्य साल 2000 से 2011 तक बंगाल के मुख्यमंत्री रहे बुद्धदेव विधानसभा में वो जाधवपुर का नेतृत्व करते थे और 24 साल तक इस क्षेत्र का नेतृत्व किया. उन्होंने साल 2011 में हुए चुनाव में टीएमसी में शामिल होने वाले अपनी ही पार्टी के बागी मनीष गुप्ता के खिलाफ तकरीबन 16 हजार वोट के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था.
बुद्धदेव भट्टाचार्य मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए विधानसभा चुनाव हारने वाले राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री बने थे. उनसे पहले कांग्रेस के प्रफुल्ल चंद सेन को साल 1967 में मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था.
पिछले दो चुनाव में ऐसा रहा है वामदलों का प्रदर्शन
साल 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में वामदल 26 सीट हासिल करके तृणमूल(211) और कांग्रेस(44) के बाद तीसरे पायदान पर रहे थे, वहीं 2011 के चुनाव में टीएमसी ने 184 सीट हासिल करके सत्ता पर कब्जा किया था और वामदल केवल 40 सीट पर सिमट गए थे. वहीं कांग्रेस को 42 सीट हासिल हुई थी.
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