ओमप्रकाश राजभर ने पेश की 'परिवारवाद की मिसाल', पिता-पुत्र दोनों लड़ेंगे चुनाव

कभी योगी सरकार में मंत्री रहे ओमप्रकाश राजभर एक बार फिर से गाज़ीपुर के जहूराबाद विधानसभा से चुनाव लड़ने वाले हैं. खास बात ये है कि इस बार चुनावी मैदान में उनके पुत्र भी होंगे.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Jan 31, 2022, 05:24 PM IST
  • एक बार फिर जहूराबाद से चुनाव लड़ेंगे ओमप्रकाश राजभर
  • बेटे अरविंद राजभर को शिवपुर से चुनावी मैदान में उतारा
ओमप्रकाश राजभर ने पेश की 'परिवारवाद की मिसाल', पिता-पुत्र दोनों लड़ेंगे चुनाव

नई दिल्ली: ओमप्रकाश राजभर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तंज कसते हुए कहा था कि जिसका परिवार नहीं है, वो भला क्या परिवारवाद करेगा. अब राजभर ने खुद परिवारवाद के सिद्धांत को अपना लिया है.

चुनावी मैदान में उतरे पिता-पुत्र

जहां जहूराबाद से ओमप्रकाश राजभर अपनी पार्टी ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से प्रत्याशी हैं तो अपने बेटे अरविंद राजभर को उन्होंने वाराणसी के शिवपुर विधानसभा से चुनाव लड़ाने का फैसला लिया है.

सुभासपा ने अपने पांच प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया है. समाजवादी पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के गठबंधन में सुभासपा ने जिन पांच उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की है, उनमें पिता ओमप्रकाश राजभर और पुत्र अरविंद राजभर के अलावा 3 अन्य प्रत्याशी है.

हरदोई के सण्डीला विधानसभा क्षेत्र से सुभासपा ने सुनील अर्कवंशी को टिकट दिया है. वहीं बहराइच के बलहॉ विधानसभा से ललिता हरेंद्र पासवान को टिकट मिला है. इसी के साथ सीतापुर के मिश्रिख विधानसभा से मनोज कुमार राजवंशी को टिकट दिया गया है.

राजभर ने कायम रखी परिवारवाद की प्रथा

ओमप्रकाश राजभर ऐसे नेताओं में गिने जाते हैं, जो खुलकर परिवारवाद का समर्थन करते हैं. वो डंके की चोट पर ये कहते नजर आते हैं कि मेरा परिवार है तो मैं परिवारवाद करूंगा, जिसका परिवार ही नहीं है वो क्या परिवारवाद करेगा.

यही परिवारवाद एक बड़ी वजह थी, जिसके चलते भाजपा से उनका गठबंधन टूट गया. भले ही ओमप्रकाश राजभर बार-बार अपनी छाती पीटकर ये कहते हों कि उन्होंने योगी सरकार का साथ इसलिए छोड़ा, क्योंकि वो ओबीसी विरोधी सरकार है. हालांकि, सच कुछ और ही है.

अखिलेश यादव की साइकिल पर सवार होने वाले ओमप्रकाश राजभर ने असल में भाजपा और योगी का साथ क्यों छोड़ा, इसकी हकीकत जानने के लिए ये समझना होगा कि परिवारवाद की दाल नहीं गली तो उनको भाजपा और योगी खराब लगने लगे.

रिश्तेदार का ट्रांसफर नहीं हुआ तो रूठ गए राजभर

एक निजी समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में राजभर ने इस बात को सार्वजनिक तौर पर कबूल किया कि उनके कहने पर अधिकारियों का ट्रांसफर नहीं किया जाता था. बात सिर्फ एक डीएम तक सीमित नहीं थी, ओमप्रकाश राजभर के कहने पर उनके 'समधि' का भी ट्रांसफर नहीं किया गया.

यूपी में योगी सरकार बनने के कुछ महीने बाद ही ओमप्रकाश राजभर ने गाज़ीपुर के तत्कालीन डीएम संजय खत्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उन्होंने डीएम के तबादले या बर्खास्तगी की मांग के लिए धरना भी दिया था.

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इतना ही नहीं यदि ये कहा जाए कि इस बार जहूराबाद से अपनी सीट बचा पाना ओमप्रकाश राजभर के लिए उतना आसान नहीं होगा, तो ये गलत बात नहीं होगी. ज़ी हिन्दुस्तान की टीम ने ग्राउंड ज़ीरो पर पड़ताल की और लोगों का नब्ज टटोलने की कोशिश की.

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गाज़ीपुर के तत्कालीन डीएम संजय खत्री से छिड़ी जंग ही योगी सरकार और राजभर के बीच मनमुटाव की पहली सीढ़ी थी. ओमप्रकाश राजभर अब एक बार फिर चुनावी मैदान में होंगे. देखना होगा कि क्या यूपी की सत्ता से योगी को उखाड़ फेंकने वाला उनका ख्वाब और उनकी कोशिश मुकम्मल होती है या नहीं.

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