क्या तृणमूल कांग्रेस में बंगाल की सत्ता पर काबिज रहने का दम बचा है?

तृणमूल कांग्रेस (TMC) पिछले 10 सालों से पश्चिम बंगाल की सबसे ताकतवर पार्टी रही है. ममता बनर्जी बतौर मुख्यमंत्री (CM) सरकारी सिंहासन पर विराजमान हैं, लेकिन सवाल यही है कि क्या दीदी की टीएमसी में सत्ता पर काबिज रहने का दम बचा है? पढ़िए खास रिपोर्ट..

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Feb 20, 2021, 06:45 PM IST
  • पश्चिम बंगाल चुनाव में दीदी का दम
  • क्या कुर्सी बचा पाएंगी ममता बनर्जी?
क्या तृणमूल कांग्रेस में बंगाल की सत्ता पर काबिज रहने का दम बचा है?

वर्ष 2011 में जब ममता बनर्जी ने 'मां, माटी, मानुष' का नारा दिया, तो पूरे बंगाल ने उनका दिल खोल के स्वागत किया था. हर कोई दीदी के कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा था. इसी नारे ने तृणमूल कांग्रेस को बंगाल विधानसभा के चुनाव में इतना ताकतवर बना दिया था कि 34 साल से स्थापित लेफ्ट के शासन को दीदी ने उखाड़कर फेंक दिया.

20 मई 2011 यही वो तारीख थी जब बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी को सूबे के सबसे बड़े सियासी सिंहासन यानी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था. दीदी को बंगाल की जनता ने कितना प्यार दिया उसे 2011 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से समझा जा सकता है.

2006 के विधानसभा चुनाव में महज 30 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली ममता बनर्जी की पार्टी ऑल इंडिया तृणमूल (All India Trinamool Congress) ने 5 साल बाद यानी 2011 में इतनी लंबी छलांग लगाई जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.

2011 में हुए बंगाल विधानसभा चुनाव में TMC ने 184 सीटों पर कब्जा जमाया. मतलब ये कि ममता की 5 वर्षों की दमदार नीति ने उन्हें 154 सीटों पर फायदा पहुंचाया. इतना ही नहीं, ममता बनर्जी की लोकप्रियता अगले चुनाव में और बढ़ गई.

2016 के विधानसभा चुनाव में जब पूरा देश में मोदी लहर चल रही थी, तो उस वक्त भी BJP की आंधी दीदी का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाई. दीदी के बढ़ते वजूद को चुनावी नतीजों से समझिए, साल 2011 में 184 सीट और 2016 में 211 सीटों पर दमदार जीत हासिल करके दीदी ने दिखाया कि उनके किले को भेद पाना इतना आसान नहीं है.

ऐसे में सबसे बड़ा और अहम सवाल यही है कि क्या दीदी की TMC अब भी इतनी ताकतवर है, जिससे वो आगामी विधानसभा चुनाव 2021 में अपनी शाख बचाने में सफल हो पाएगी? इसे समझने के लिए दीदी की पार्टी के ग्राफ को समझना जरूरी है.

1). दीदी की पार्टी का हालिया प्रदर्शन

वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों में ममता बनर्जी की पार्टी ने 42 में से 22 सीटों पर जीत हासिल की है. जो पिछली बार की तुलना में 12 सीटों का लॉस है. मगर यहां आपको ये समझना चाहिए कि यदि वोट प्रतिशत की बात करें तो TMC को 2014 की तुलना में इजाफा हुआ है.

दीदी को लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में सीटों पर नुकसान भले ही झेलना पड़ा हो, लेकिन वोट प्रतिशत में 3.48% का लाभ पहुंचा है.

2). दीदी की पार्टी की क्या है तैयारी?

ममता ने 2011 के चुनाव में 'मां, माटी, मानुष' और परिवर्तन का नारा देकर लेफ्ट के किले को ध्वस्त कर दिया. इस बार दीदी की पार्टी TMC ने अपनी खास तैयारी के लिए प्रशांत किशोर (PK) को अपने खेमे में शामिल कर लिया है. ममता बनर्जी सियासी रणभूमि में हर दिन अपनी ताकत दिखा रही हैं.

3). पार्टी की कलह और बागियों का किरदार

चुनावी सीजन आते ही ममता बनर्जी की TMC में भगदड़ मच गई है. मंत्री से लेकर विधायक, सांसद यहां तक कि रणनीतिकारों ने भी दीदी के खिलाफ बागी तेवर अख्तियार कर लिया है. जो निश्चित तौर पर दीदी का खेल बिगाड़ सकते हैं.

4). टिकट बंटवारे की क्या है रणनीति?

तृणमूल कांग्रेस में इस बार के विधासभा चुनाव में टिकट बंटवारे की रणनीति सबसे ज्यादा अहम साबित होने वाली है. TMC के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने BJP का दामन थाम लिया है. ऐसे में इस बार कई नए चेहरों को टिकट मिल सकता है. इसमें प्रशांत किशोर की भी रणनीति शामिल होगी.

5). मुस्लिम-ओवैसी गठजोड़ से TMC पर असर

मुस्लिम 'वोट कटवा' कहे जाने वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM की बंगाल में एंट्री होने से दीदी के कमजोर होने का दावा किया जा रहा है. इस बार TMC का खेल बिगाड़ने में ओवैसी और मुस्लिम वोट बैंक का अहम रोल साबित हो सकता है.

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पश्चिम बंगाल (West Bengal) में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) को देखते हुए सभी सियासी पार्टियों ने अपनी-अपनी कमर कस ली है. इस बार के चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं. देखना होगा कि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी TMC अपने इस शाख को बचाने में कामयाब होती है या फिर दीदी की सत्ता को भाजपा उसी तरह उखाड़ फेंकेती है, जैसे लेफ्ट का सियासी पतन ममता ने किया था.

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