जानें कौन हैं नकुल दुबे, जिन्हें मायावती ने बनाया है बसपा का नया ब्राह्मण चेहरा

चुनाव प्रचार के लिए बसपा प्रमुख मायावती, उनके भाई आनन्‍द कुमार और पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा समेत 18 नेताओं की सूची जारी हुई है. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 23, 2022, 02:52 PM IST
  • सतीश चंद्र मिश्रा के अलावा नकुल दुबे भी लिस्ट में शामिल
  • नकुल को बसपा का नया बड़ा ब्राह्मण चेहरा माना जा रहा
जानें कौन हैं नकुल दुबे, जिन्हें मायावती ने बनाया है बसपा का नया ब्राह्मण चेहरा

लखनऊ: up election 2022- बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में अपने उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के लिए बसपा प्रमुख मायावती, उनके भाई आनन्‍द कुमार और पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा समेत 18 नेताओं की सूची जारी की है. 

ये हैं बसपा के स्टार प्रचारक
बसपा के स्‍टार प्रचारकों की सूची में मायावती, आनन्‍द कुमार, सतीश चंद्र मिश्रा के अलावा मुनकाद अली, समसुद्दीन राईन, सतपाल पिपला, गोरेलाल जाटव, राज कुमार गौतम, सूरज सिंह जाटव, आशीर्वाद आर्या, नकुल दुबे, प्रदीप जाटव, प्रताप सिंह बघेल, दिनेश कुमार काजीपुर, डॉक्टर कमल सिंह राज, करतार सिंह नागर, चांद सिंह कश्यप और सत्य प्रकाश के नाम शामिल हैं. 

कौन हैं नकुल दुबे
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए बसपा ने नकुल दुबे को अपना नया ब्राह्मण चेहरा बनाया है. वर्ष 1984 में विद्यान्त हिन्दू डिग्री कॉलेज लखनऊ से बीए और 1987 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री लेकर इन्होंने लखनऊ हाईकोर्ट में वकालत शुरू की. इसके बाद राजनीति में रुझान होने से वर्ष 2007 में महोना से बसपा के सिंबल पर विधायक निर्वाचित हुए. 

बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नकुल दुबे को सीतापुर का लोकसभा प्रभारी बनाया गया था, लेकिन वह चुनाव हार गए थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में नकुल दुबे लखनऊ से मैदान में उतरे थे. यहां पर भाजपा के राजनाथ सिंह ने जीत दर्ज की थी. बसपा के नकुल दुबे 64449 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे. 

ब्राह्मणों का संख्या बल कितना
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की संख्या क़रीब 11-12 फ़ीसद है. हालांकि कुछ ज़िले ऐसे भी हैं जहां इनकी संख्या क़रीब बीस फ़ीसद है. जानकारों का कहना है कि यदि बीएसपी के परंपरागत मतदाताओं के अलावा ब्राह्मण मतों का कुछ हिस्सा भी बीएसपी को मिल जाता है तो उसे फ़ायदा पहुंच सकता है. जहां तक भाजपा से नाराज़गी का सवाल है तो सत्ता में शीर्ष स्तर पर भागीदारी तो ब्राह्मणों को 1989 के बाद कभी नहीं मिली है.

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