नई दिल्ली: बंगाल चुनाव में इस बार मां, माटी, मानुष का नारा सुनने को नहीं मिलेगा बल्कि इस बार ममता, मतुआ और मोदी मैजिक देखने को मिलेगा. पीएम मोदी इस बार बंगाल की धरती से नहीं बल्कि बांग्लादेश की धरती से 'बंगाल' को साधेंगे.
26 मार्च को होने वाली PM मोदी की इस गेमचेंजर उड़ान से दीदी अभी से परेशान हैं क्योंकि सवाल उस किंगमेकर मतुआ वोट बैंक का है जो दीदी के हाथ से फिसलकर मोदी के साथ जा रहा है और 27 मार्च को ये वोटबैंक पूरी तरह से दीदी के हाथ से फिसल सकता है.
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26-27 मार्च को पीएम मोदी एक 'गेमचेंजर' उड़ान
बंगाल के विधानसभा चुनाव में इस बार हवा का रुख पल पल बदल रहा है. बीजेपी को इस सियासी हवा का साथ मिल रहा है तो टीएमसी को हवा के थपेड़े झेलने पड़े रहे हैं. इस बार बंगाल में मां, माटी, मानुष का नारा कहीं खो सा गया है या यूं कहें की बीजेपी के जय श्री राम के नारे के शोर में कहीं दब सा गया है.
अब से करीब 3 हफ्ते बाद पीएम मोदी एक गेमचेंजर उड़ान उडने वाले हैं जिससे दीदी का दिमाग अभी से चकरा गया है. दरअसल, पीएम मोदी, 26-27 मार्च को बांग्लादेश के दौरे पर जाने वाले हैं. 1 साल के कोरोनाकाल के बाद पीएम मोदी की ये पहली विदेश यात्रा होगी.
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पिछले साल मार्च में मोदी की बांग्लादेश यात्रा कोविड की वजह से रद्द हो गई थी, अब पीएम की इस बांग्लादेश यात्रा के तार पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से जोड़े जा रहे हैं.
बांग्लादेश में है मतुआ समाज का सबसे पवित्र धर्मस्थल
अब इसे संयोग कहें या बीजेपी की रणनीति कि जिस दिन पश्चिम बंगाल में 8-चरण वाले विधानसभा चुनाव में मतदान का पहला चरण शुरू होगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश के एक मतुआ समाज के सबसे पवित्र धाम ओरकांडी जा सकते हैं.
दरअसल, बांग्लादेश यात्रा के दौरान पीएम मोदी का तुंगीपारा जाने का कार्यक्रम है जो बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान का पैतृक गांव है. तुंगीपारा से ओरकांडी ज्यादा दूर नहीं है लिहाजा, माना जा रहा है कि पीएम मोदी, ओरकांडी भी जा सकते हैं और मतुआ समाज के सबसे पविक्ष धर्मस्थली पर मत्था टेक स
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26-27 मार्च को पीएम मोदी भले ही पड़ोसी देश बांग्लादेश में रहेंगे लेकिन उनके दौरे का मैजिक बंगाल की सियासत में बहुत बड़ा उलटफेर कर सकता है.
बांग्लादेश के ओरकांडी का बंगाल के ठाकुरनगर से कनेक्शन
बांग्लादेश से 'बंगाल' को कैसे साधेंगे मोदी, ये समझने के लिए बांग्लादेश के ओरकांडी का बंगाल के ठाकुरनगर से कनेक्शन जानना बेहद जरूरी है. दरअसल, बांग्लादेश का ओरकांडी हरिचंद्र ठाकुर की जन्मस्थली है. मतुआ समाज में हरिचंद्र ठाकुर को भगवान की तरह पूजा जाता है.
भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद हरिचंद्र ठाकुर का परिवार भारत आ गया. हरिचंद्र ठाकुर का परिवार पश्चिम बंगाल में रहने लगा. बाद में मतुआ संप्रदाय का जिम्मा हरिचंद्र ठाकुर के परपोते प्रथम रंजन ठाकुर ने संभाला. प्रथम रंजन ठाकुर की पत्नी बीणापाणि देवी को मतुआ माता या बोरो मां कहा जाने लगा. बोरो मां का मतलब है बड़ी मां. बोरो मां ने बांग्लादेश के बॉर्डर पर ठाकुरगंज नाम से एक बस्ती बसाई.
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ठाकुरगंज गंज में हरिचंद ठाकुर का भव्य मंदिर बनाया गया. ठाकुरगंज मंदिर में भी मतुआ समाज की आस्था ओरकांडी जैसी ही है. अगर पीएम मोदी ओराकंडी मंदिर में जाकर मत्था टेकते हैं तो ऐसा करने वाले वो पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे. राजनीति के जानकार मानते हैं पीएम मोदी बांग्लादेश में मतुआ समुदाय की नब्ज छूकर बंगाल में मतुआ समाज का वोट बीजेपी में कनवर्ट करा सकते हैं.
टीएमसी के खिलाफ चुनावी हवा के 3 बड़े कारण
इस बार पश्चिम बंगाल में चुनावी हवा टीएमसी के खिलाफ बहती नजर आ रही है जिसके 3 बड़े कारण माने जा रहे हैं-
टीएमसी को चुनावी हवा का पहला थपेड़ा मां माटी मानुष के उस नारे के नाम पर लग रहा है जिसकी बदौलत उन्होंने सत्ता की दहलीज पर पहला कदम रखा था. पश्चिम बंगाल की जनता अब समझ चुकी है कि मां माटी मानुष का नारा महज छलावा था.
दीदी को चुनावी हवा का दूसरा थपेड़ा फुरफुरा शरीफ दरगाह से लगा जिसका करीब 4 करोड़ का वोटबैंक पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की वजह से उनके हाथ से फिसलता नजर आ रहा है और दीदी को चुनावी हवा का तीसरा थपेड़ा मतुआ समाज से लगता दिखाई दे रहा है जिसे 10 सालों से सिर्फ धोखा मिला है.
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बीजेपी के पक्ष में चुनावी हवा के 3 बड़े कारण
बंगाल में 2009 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीतने वाली बीजेपी से आज अगर सत्ताधारी टीएमसी को सबसे बड़ी टक्कर मिल रही है तो उसके पीछे वो चुनावी हवा ही है जिसका साथ बीजेपी को मिल रहा है. बंगाल में बीजेपी की इस मजबूती के पीछे भी 3 बड़ी वजहें हैं.
मुस्लिम वोटबैंक में फूट, मतुआ समाज का साथ और राम नाम से दीदी की नफरत. फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के नई पार्टी बनाकर ताल ठोकने और हैदराबादी भाईजान की बंगाल लैंडिंग से बंगाल का मुस्लिम वोट 3 हिस्सों में बंटता नजर आ रहा है.
अब तक 30 फीसदी मुस्लिम वोटरों का साथ दीदी को मिलता रहा है. मतुआ समाज को भारत की नागरिकता दिलाने में दीदी नाकाम हो गई. उन्होंने CAA का खुलकर विरोध भी किया और बंगाल में उसे लागू करने से इनकार भी कर दिया.
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दीदी के इस फैसले ने बीजेपी को मतुआ समाज से जुड़ने का सुनहरा मौका दे दिया और बीजेपी ने CAA कानून के जरिए मतुआ समाज को नागरिकता देने का ऐलान कर दिया.
CAA का विरोध करने से दीदी से बिदक गया मतुआ समाज
दरअसल, मतुआ समाज 50 सालों से भारत की नागरिकता का इंतजार कर रहा है. मतुआ समाज के 50 सालों के सपनों पर दीदी पानी फेरने पर ऊतारू हैं जिसकी वजह से मतुआ समाज उनसे बेहद नाराज हो गया है. दीदी से मतुआ समाज की इसी नागारजी का फायदा बीजेपी को मिल रहा है जो बंगाल में CAA और NRC लागू कर विस्थापित विदेशी हिन्दुओं को नागरिकता देना चाहती है.
बंगाल का मतुआ समाज भी ये देख रहा है कि दीदी का तुष्टिकरण अभियान चरम पर है. टीएमसी के 10 सालों के शासन में मतुआ समाज हाशिए पर है जबकि एक विशेष वर्ग को दीदी ने पलकों पर बैठा रखा है. CAA और NRC का विरोध करने से पहले दीदी ने मतुआ समाज को नागरिकता मिलने की उम्मीद के बारे में नहीं सोचा.
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