Amrish Puri Special: 'जा सिमरन जा जी ले अपनी जिंदगी' और 'मोगैम्बो खुश हुआ' जैसे इन साधारण से डायलॉग्स को यादगार बनाने वाली शख्सियत हैं अमरीश पुरी. जिन्हें आज भी भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा विलेन माना जाता है. उनकी बैरिटोन आवाज और मिलिट्री स्टाइल वाली बॉडी लेंग्वेज के सामने अक्सर हीरो भी हल्के पड़ जाते थे. उन्होंने किरदार को पर्दे पर ऐसे जिया कि अमर हो गया. चलिए आज एक्टर की जन्मदिन के खास मौके पर उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों पर गौर करते हैं.
21 साल की सरकारी नौकरी
22 जून, 1932 को पंजाब के नवांशहर में जन्में अमरीश पुरी आंखों में एक्टर बनने का सपना सजाए मुंबई आए थे. हालांकि, काफी रिजेक्शन का सामना करना पड़ा, लेकिन एक्टर ने कभी हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी एक्टिंग को निखारने के लिए काफी वक्त पृथ्वी थिएटर में नाटक करते हुए बिताया, लेकिन जब वह कई ऑडिशन्स में फेल होते गए तो थक कर उन्होंने राज्य बीमा निगम के सरकारी नौकरी तलाश कर ली. करीब 21 साल तक उन्होंने यह नौकरी की. नौकरी के दौरान ही उनकी एक्टिंग का शौक बढ़ गया.
मिलने लगे रोल
अमरीश पुरी को पहली बार 1956 में आई फिल्म 'भाई-भाई' एक छोटा सा रोल मिला. इसके लंबे समय तक वह फिर कहीं नहीं दिखे. इसके बाद बाद उन्हें 1970 में आई फिल्म 'प्रेम पुजारी' में देखा गया. बस यहीं से ही अमरीश की किस्मत पटरी पर आने लगी. करीब 40 साल की उम्र में उनका एक्टर बनने का सपना पूरा होने लगा था. अगले ही साल 1971 में रिलीज हुई फिल्म 'रेशमा और शेरा' के बाद तो अमरीश के पास फिल्मों के ऑफर्स की कतार लग गई.
दर्शक हुए प्रभावित
उनकी लंबे-चौड़े कद, दमदार आवाज और डायलॉग्स बोलने के एक अलग अंदाज ने दर्शकों को बहुत प्रभावित किया. पर्दे पर उन्हें देख लोग उनसे नफरत करने लगते थे, लेकिन विलेन के रूप में उनके अलावा किसी और को देखना भी पसंद नहीं करते थे. एक वक्त पर अमरीश पुरी एक ऐसे विलेन के रूप में पहचाने जाने लगे जो अगर पॉजिटिव रोल करें तो उस पर भी यकीन करने के लिए पूरी फिल्म खत्म होने पर ही होता था.
बेटे के लिए था ये डर
अमरीश पुरी ने अपने करियर में करीब 450 फिल्मों में बेहतरीन काम किया. वहीं, दूसरी ओर जब उनके बेटे ने भी एक्टर के तौर पर करियर बनाने का ख्वाब देख तो अमरीश ने उनके इस सपने को साकार नहीं होने दिया. दरअसल, एक इंटरव्यू में अमरीश ने खुलासा किया था कि उन्हें डर था कि उनके बेटे को भी इंडस्ट्री में इस तरह का स्ट्रगल न करना पड़ा जो उन्होंने किया. वहीं, उन दिनों इंडस्ट्री के हालात भी ठीक नहीं थे. ऐसे में उन्होंने बेटे को एक्टर बनने के लिए मना कर दिया, जिसके बाद राजीव ने मर्चेंट नेवी ज्वॉइन कर ली.
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