नई दिल्ली: चित्रांगदा सिंह ने अपनी लाइफ में जितना भी काम किया बेमिसाल किया. उनकी एक्टिंग और उनके हुनर का हर कोई कद्रदान है. ऐसे में उनका ये लंबा सफर बेहद खास था. बता दें कि चित्रांगदा सिंह ने दिल्ली में मॉडलिंग के दौरान गुलजार साहब के म्यूजिक एल्बम 'सनसेट प्वाइंट' में काम किया. वहां से उन्हें अपनी फिल्म का पहला ऑडिशन मिला. उसकी कहानी भी बड़ी ही दिलचस्प थी. सारे NSD एक्टर्स के बीच एक मॉडल जो मेन लीड के लिए बुलाई गई है जिसे डायलॉग डिलीवरी से लेकर एक्टिंग का क ख ग भी नहीं पता था.
'हजारों ख्वाहिशें ऐसी' का ऑडिशन
चित्रांगदा सिंह ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि फिल्म के अलग-अलग कैरेक्टर्स के लिए NSD से एक्टर लिए जा चुके थे लेकिन हजारों की लीड गीता के लिए कोई एक्टर नहीं मिल रहा था. ऑडिशन के तीसरे दिन उन्हें सबसे आखिरी स्लॉट में रखा गया. जब वहां ऑडिशन देने पहुंची तो पाया कि सारे NSD के बड़े-बड़े दिग्गज वहां मौजूद थे. चित्रांगदा ने उस भीड़ को देखकर कहा कि 'यहां तो कोई चांस ही नहीं है'. फिर भी हंसते-खिलखिलाते जैसे तैसे ऑडिशन दे दिया.
ऑडिशन के लिए किया मना
कहती हैं कि कुछ लाइनें ठीक-ठाक बोल दी थी. ऑडिशन उतना खास नहीं था इसलिए उम्मीद भी नहीं रखी. ऑडिशन के दूसरे दिन पूरी फैमिली के साथ कोरिया जाने वाली थीं. तभी एक दिन के बाद कॉल आया और मुझे ऑडिशन के दूसरे राउंड के लिए बुलाया गया. कोरिया जाने के लिए लगभग दूसरे ऑडिशन के लिए मना कर दिया गया. फिर चित्रांगदा ने सोचा क्यों न चांस लिया जाए और फ्लाइट को आगे शेड्यूल करवाया.
स्वानंद किरकिरे उस वक्त उनका ऑडिशन ले रहे थे. दूसरे ऑडिशन के लिए उन्होंने एक-एक डायलॉग सीखाया. जो बड़ी मुश्किल से डायरेक्टर सुधीर मिश्रा को पसंद आ गया. उन्हें लगा अब तो सिलेक्ट, लेकिन मुंबई में फिर तीसरा ऑडिशन हुआ जिसे लेकर काफी घबराई हुई थीं. आखिरकार उन्हें वो किरदार मिल ही गया.
कॉलेज की भयानक रैगिंग
चित्रांगदा सिंह करनल निरंजन की बेटी थीं जो जोधपुर में पैदा हुईं. दिल्ली के एक कॉलेज में चित्रांगदा होम साइंस फूड एंड न्युट्रीशन की पढ़ाई कर रही थीं. उनके खॉलेज में फ्रेशर्स की रैगिंग करने का कल्चर था. रैगिंग में लड़कियों को सलवार-कमीज उलटे पहनाकर चालीस चोटियां करवाई जाती थीं. बालों में इतना तेल लगाया जाता कि अगर चोटी से हाथ लगाएं तो तेल की बूंदे उनमें से टपकती थीं. बकायदा सीनियर हाथ लगाकर चेक भी करते. इसका बाद बाल्टी में किताबें भरकर लड़कियों को होस्टल से कॉलेज तक जाना होता था. ये सारा सिलसिला तरीबन एक महीने तक चलता.
पहला रैंप वॉक
रैगिंग के दौरान का एक दिन याद करते हुए कहती हैं कि मैं ऑडिटोरियम में थी और तभी एक सीनियर ने मुझे बुलाया कि ओए! फ्रेशर स्टेज पर जा और रैंप वॉक कर. पता नहीं उन्हें ऐसा क्यों लगता था कि मुझमें एटीट्यूड है. शायद मैं कम बोला करती थी इसलिए. मैंने ऑर्डर सुनते ही अपनी बाल्टी उठाई, स्टेज पर गई और ठान लिया कि भले ही कैसी भी दिख रही हूं, लेकिन वॉक अच्छे से करूंगी. वॉक किया और बाल्टी के साथ पोज दिए और कॉन्फिडेंस के साथ वॉक करके आ गई. एक सीनियर को इतना पसंद आया कि उन्होंने सुझाव दिया कि इसे फैशन शो टीम में डालो. इसके बाद मॉडलिंग का सिलसिला शुरू हुआ.
चित्रांगदा उस दौर को याद करते हुए कहती हैं कि एक बार उन्होंने ड्रीम फ्लावर टाल्क के लिए ऑडिशन दिया था लेकिन उन्हें कहा गया कि वो बहुत काली हैं. उस पाउटर के लिए जितनी भी एक्ट्रेसेज के फोटोज आए थे उन्हें गुलजार साहब को दिया गया. उन्होंने जब फोटोज में मुझे देखा तो कहा कि इसका ऑडिशन टेप दो. बस उस टाल्क के ऑडिशन से मुझे मेरा पहला वीडियो मिला!
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