नई दिल्ली. चार बिंदुओं पर चल सकता है मुंबई पुलिस पर मुकदमा. और ये बात खुद मुंबई पुलिस भी अच्छी तरह से जानती है. लेकिन हैरानी इस बात की भी है कि क़ानून की रक्षा के लिए तैनात पुलिस बल क़ानून कैसे तोड़ सकता है? कहा जाता है कि क़ानून की जानकारी पुलिस को वकीलों से कम नहीं होती. मुंबई पुलिस के विरुद्ध नेग्लिजेंस ऑफ़ ड्यूटी, क्रिमिनल नेग्लीजेन्स, साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ और कानूनी जांच को बाधा पहुंचाने के चार मामले बन सकते हैं.
बिहार आईपीएस को हाउस अरेस्ट किया
बिहार पुलिस अधिकारी को हाउस अरेस्ट करना और वो भी बदनीयती के साथ क़ानून का उललंघन कहा जा सकता है. इसमें इरादा अहम है जिस इरादे से आपने ऐसा किया है वो इरादा बदनीयती का है अर्थात Malefic Intent वाला है. ऐसा इसलिए कहा जाता है कि आने से पहले जब पटना एसपी ने मुंबई पुलिस से बात करके अपने आने की सूचना दी और अपने लिए आवश्यक व्यवस्थाओं की बात की तब मुंबई पुलिस ने ऐसी कोई बात नहीं की किन्तु जांच के लिए मुंबई पहुंचते ही विनय तिवारी को रात में क्वारेंटीन करने के बहन हाउस अरेस्ट कर देना -बदनीयती की कार्रवाई का प्रमाण है.
दिशा 'हत्या' के मामले में फाइलें डिलीट हुईं
आज वर्ष 2020 चल रहा है, ये वर्ष 2000 नहीं चल रहा है. आज मुंबई की पुलिस को कम्प्यूटर चलाना न आता हो, यह बात तो मानी ही नहीं जा सकती. इसलिए कम्प्यूटर अज्ञानता का बहाना करके जब मुंबई पुलिस ने दिशा की फाइलें उड़ा दीं तो इस लापरवाही में क्रिमिनल नेग्लिजेंस की बू आ रही है. इसकी जांच होनी चाहिये. इससे यह भी लगता है कि मुंबई पुलिस अक्सर ऐसा करती है और आम आदमी ऐसी स्थिति में चुप हो कर बैठ जाने को लाचार हो जाता होगा किन्तु यहां ये मामला आम आदमी का नहीं है.
डिलीट फाइलों को रिकवर क्यों नहीं किया
ये मामला किसी आम आदमी का नहीं है कि आपने ऐसी गलती कर दी और सांस भी नहीं ली. जब बात ये हो रही है कि दिशा की हत्या के तार सुशांत की हत्या से जुड़ रहे हैं और यह एक ऐसा संवेदनशील मामला है जो हाइप्रोफाइल तो है ही, देश भर के लोगों की भावनाओं से भी जुड़ा है, तो ऐसे में मुंबई पुलिस ऐसा कैसे कर सकती है? और ये हो ही नहीं सकता कि मुंबई पुलिस को ये न पता हो कि डिलीट हुई फाइलें कैसे रिकवर की जा सकती हैं. ऐसा लगता है कि पूरी मेहनत करके मुंबई पुलिस ने फाइलें अंदर तक जा कर डिलीट कर डाली हैं, इसलिये कंप्यूटर से प्रोफेशनल रिकवरी करने वाली एजेन्सीज़ अर्थात प्रोफेशनल सेवायें भी शायद अब उनको रिकवर नहीं कर सकेंगी.
सुशांत आत्महत्या की छानबीन में इरादतन लापरवाही
जो हो रहा है वह सारा देश देख रहा है. सभी देख रहे हैं कि सुशांत हत्या के मामले में हर कदम पर किस तरह मुंबई पुलिस ने लगातार लापरवाही की. लेकिन ये कहना उचित नहीं होगा, उचित तब होगा जब ये कहा जाए कि मुंबई पुलिस ने लगातार सुशांत हत्या मामले में जानबूझ कर ढिलाई की.
जान पर खतरे की सूचना पर भी पुलिस निष्क्रिय रही
मुंबई पुलिस को फरवरी में सुशांत के पिता ने बताया था कि मेरे बेटे की जान को खतरा है किन्तु मुंबई पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया. आखिर क्यों? आखिर क्यों पुलिस ने कार्रवाई नहीं की इस पर? पुलिस किस लिए होती है? चूंकि मुंबई पुलिस ने इस जानकारी के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की और इस 'लापरवाही' ने चूंकि सुशांत की जान ले ली है, इसलिए अदालत में मुंबई पुलिस पर क्रिमिनल नेग्लिजेंस का मामला बनता है.
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