नई दिल्ली: सुशांत सिंह राजपूत को मारने वालों की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. क्योंकि अब जांच की कमान CBI के हाथों में है, मतलब साफ है कि अब इस केस को उलझाने के लिए जांच में लापरवाही नहीं बरती जाएगी. अब सुशांत के हत्यारों की तलाश होगी, अब सुशांत को मारने वालों की एक-एक साजिशों का पर्दाफाश होगा.
सुशांत के कातिलों को बचाने के 3 संकेत
शिवसेना और उद्धव सरकार के नेताओं की करतूत ने बार-बार इस बात के संकेत दिए हैं कि वो सुशांत की रहस्यमयी मौत के सुसाइड साबित करने में जुटे हुए हैं. आपको ऐसे ही 3 मुख्य संकेतों से रूबरू करवाते हैं.
संकेत नंबर 1). क्या सुप्रीम कोर्ट से भी बड़ी हो गई है शिवसेना?
हर कोई ये जानता है कि महाराष्ट्र की कमान शिवसेना के उद्धव ठाकरे के पास है. उद्धव सरकार के नेता और मुंबई पुलिस ने पहले तो सुशांत मामले की जांच तो गोल-गोल घुमाया, फिर शिवसेना के मुखपत्र सामना में अब देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट को ही सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया.
सुशांत केस की CBI जांच पर शिवसेना के मुखपत्र सामना में सवाल उठाए गए है. सामना ने मामले की सिंगल बेंच में सुनवाई पर भी सवाल उठाये. पटना में दर्ज FIR को सही बताने पर भी सामना में लिखा है. शिवसेना और उद्धव सरकार ने इस पूरे प्रकरण में "सामना" को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है. उद्धव सरकार इस हथियार का इस्तेमाल सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भी इशारों-इशारों में ज़हर उगलने के लिए कर रही है.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब शिवसेना ने सामना के जरिए सुशांत के हत्यारों को बचाने की कोशिश हुई है. इससे पहले कई बार संजय राउत ने सुशांत की मौत को आत्महत्या साबित की है. राउत ने तो ये तक लिख दिया था कि सुशांत के आत्महत्या की मार्केटिंग की जा रही है. अब जब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच का रास्ता साफ कर दिया है, तो शिवसेना के पेट में दर्द उठने लगा है. मतलब साफ है शिवसेना और उद्धव सरकार सुशांत के कातिलों को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को भी कटघरे में खड़ा कर रही है.
संकत नंबर 2). किसके सह पर मामले को उलझाती रही मुंबई पुलिस?
सुशांत सिंह राजपूत के रहस्यमयी मौत की जांच को किस कदर घुमाया गया, इसके एक या दो सबूत नहीं हैं, बल्कि कई मुख्य सबूत मौजूद हैं. सुशांत की मौत की जांच करने से पहले ही मुंबई पुलिस ने और शिवसेना और उद्धव सरकार ने इसपर सुसाइड का ठप्पा लगा दिया. सुशांत की मौत के 2 महीने बीत जाने के बाद भी जांच के नाम पर मुंबई पुलिस ने सिर्फ मामले को और उलझा दिया है. ऐसा हम क्यों कह रहे हैं इसे समझिए..
1. आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि सुशांत की मौत के बाद उसकी डेड बॉडी को बांद्रा से 7 किलोमीटर दूर अंधेरी के कूपर अस्पताल में ही पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया, जो अस्पताल पहले से ही विवादों में घिरा रहा है. मुंबई पुलिस ने आखिर सुशांत के शव को बांद्रा के ही अस्पताल में क्यों नहीं भेजा?
2). आखिर सुशांत सिंह राजपूत के कमरे का ताला किस चाबी वाले ने तोड़ा था. इस बात पर यकीन करना मुश्किल है कि चाभी वाले ने कमरे का ताला तोड़कर सुशांत की लटकी हुई लाश को नहीं देखा. सिद्धार्थ पिठानी की ये दलील बिल्कुल ही बेकार है. खासकर मुंबई पुलिस ने इस पहलू की जांच क्यों नहीं की?
3). क्या मुंबई पुलिस ने चाबी वाले से पूछताछ क्यों नहीं की? जानकारी के मुताबिक उस चाबी वाले का नाम रफीक था, उस इलाके में रफीक नाम के कई चाबी वाले हो सकते हैं. लेकिन जमीनी पड़ताल में ये बात सामने आई है कि चाबी वालों के पास पूछताछ के लिए पुलिस नहीं पहुंची.
इन सारे तथ्यों पर लगातार पर्दा डालने का काम होता रहा, सबूतों को नजरअंदाज किया जाता रहा, लेकिन आखिर मुंबई पुलिस को ये सब करने पर किसने मजबूर किया? किसने मुंबई पुलिस को मामले की जांच ढंग से नहीं करने का फरमान जारी किया? क्या उद्धव सरकार कातिलों के बचाना चाहती है? क्या शिवसेना सुशांत की मौत का सच सामने नहीं आने देना चाहती है?
संकेत नंबर 3). 'न जांच होगी, ना ही होने देंगे!'
उद्धव सरकार ने सिर्फ मुंबई पुलिस पर दबाव नहीं बनाया, बल्कि जांच को रोकने के लिए BMC का सहारा लिया और बिहार पुलिस की जांच में भी रोड़ा बनकर खड़ी हो गई.
जांच को रोकने के लिए पटना के एसपी को जबरदस्ती क्वारंटीन कर दिया गया. बिहार पुलिस की जांच में बार-बार अड़ंगा लगाया, सभी दस्तावेजों को छिपाया गया, पुलिसिया जांच में दिशा सालियान की मौत के एंगल को नजरअंदाज किया गया और फिर जब केंद्र सरकार ने सीबीआई जांच को मंजूरी दी, तब जांच को रोकने के मकसद से सुप्रीम कोर्ट का सहारा लिया. लेकिन अब शिवसेना और उद्धव सरकार को कोई चालबाजी काम नहीं आने वाली है.
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शिवसेना, उद्धव सरकार और मुंबई पुलिस आखिरकार सुशांत की मौत का सच क्यों छिपाना चाहती है, आखिर क्यों शिवसेना और उद्धव सरकार बार बार जांच में बाधा डाल रही है. इसका जवाब हर कोई जानना चाहता है. लेकिन इन तीन संकेतों से ये समझना आसान हो जाता है कि कातिलों को बचाने की कोशिश हो रही है.
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