लखनऊ. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने योगी आदित्यनाथ के 25 सितंबर 2022 के बाद उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बने रहने पर सवाल उठाने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया. पीठ ने बेकार की याचिका दाखिल कर अदालत का वक्त खराब करने पर याचिकाकर्ता पर 11 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. न्यायमूर्ति ए. आर. मसूदी और न्यायमूर्ति ओ. पी. शुक्ला की पीठ ने डॉ. एम स्माइल फारुकी द्वारा दाखिल याचिका पर यह आदेश पारित किया. यह आदेश 11 नवंबर का है जो बुधवार को उपलब्ध हुआ.
याची ने पीठ से आग्रह किया था कि वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 25 सितंबर 2022 के बाद भी पद पर बने रहने के समर्थन में विधिक दस्तावेज पेश करने के आदेश दे. पीठ ने यह पाया कि याचिकाकर्ता ने इस बात को लेकर किसी भी कारण का जिक्र नहीं किया कि आखिर पीठ को ऐसा आदेश क्यों जारी करनी चाहिए. पीठ ने यह भी पाया कि पूर्व में भी याचिकाकर्ता ऐसी ही याचिका दाखिल करके उसे वापस ले चुका है. उसने अदालत से इजाजत लिए बगैर फिर वही याचिका दाखिल कर दी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने भी खारिज की ऐसी ही एक याचिका
दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सीजेआई की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक चायिका खारिज की है. भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के तौर पर न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि संवैधानिक पदाधिकारियों के पदों की सतही आरोपों के आधार पर जनहित में स्वयंभू योद्धाओं द्वारा आलोचना नहीं की जा सकती. हाईकोर्ट ने कहा कि यह याचिका संदेहों, अनुमानों, इच्छा के अनुसार सोच पर आधारित है और संवैधानिक पद की गरिमा के खिलाफ है.
यह जनहित याचिका 11 नवंबर को खारिज की गई थी और विस्तृत आदेश मंगलवार को उपलब्ध कराया गया. अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगा कर अदालत का रुख करना एक चलन हो गया है.’
अदालत ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश की नियुक्ति के विषय में संविधान के अनुच्छेद 124 का पालन किया गया. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने 11 नवंबर को याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता संजीव कुमार तिवारी पर एक लाख रुपये का अदालत खर्च भी लगाया.
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