अयोध्या की 'सियासत' उनसे नहीं छूटती!

जफरयाब जिलानी हों या हैदराबाद के ओवैसी बंधु या फिर संभल से समाजवादी सांसद शफीकुर्रहमान वर्क, तीनों का एक ही राग है- अयोध्या में मस्जिद थी, है और रहेगी. अयोध्या विवाद का शांतिपूर्ण समाधान उन्हें नहीं पच रहा है, क्योंकि क्योंकि उन्होंने अपनी सियासत की जमीन तैयार करने में पांच सदी पुराने इस विवाद का भरपूर इस्तेमाल किया.

Written by - raghunath saran | Last Updated : Dec 25, 2020, 10:41 AM IST
  • अयोध्या विवाद का शांतिपूर्ण समाधान कुछ लोगों को नहीं पच रहा है
  • अयोध्या में रामजन्मभूमि पर राममंदिर के निर्माण की सोच उन्हें डराती है
अयोध्या की 'सियासत' उनसे नहीं छूटती!

अयोध्याः अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना चुका है. राम जन्मभूमि पर भव्य राममंदिर बने, देश भर में मुस्लिम श्रद्धालुओं की भी यही चाहत है. वो चाहते हैं कि अयोध्या का राममंदिर हिन्दुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब की नई मिसाल बने, लेकिन कट्टरपंथी सोच इसे पचा नहीं पा रही है.

ढूंढ-ढूंढ कर मौके निकाले जा रहे हैं, पुरजोर कोशिश की जा रही है कि बाबरी मस्जिद के नाम पर मुस्लिम समाज को नफरत के नये बीज बोए जाएं.इसीलिये अयोध्या में प्रस्तावित मस्जिद की तस्वीर सामने आते ही जफरयाब जिलानी जैसे चेहरे एक्शन में हैं और प्रस्तावित मस्जिद को शरीयत के खिलाफ बताया जा रहा है.

देश को नफरत की आग में दोबारा झोंकने की कसम क्यों?

सवाल ये है कि क्या उन्होंने हिन्दुस्तान को कट्टरपंथी नफरत की आग में दोबारा झोंकने की कसम खा रही है?

शरीयत का हवाला देकर हिन्दुस्तान के संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ क्यों मुस्लिम आबादी को भड़काने की साजिश क्यों की जा रही है? जफरयाब जिलानी और उनके जैसी सोच वाले लोग ये क्यों भूल गए कि ऐतिहासिक तथ्य और खुदाई में मिले सबूत गवाही देते रहे हैं कि बाबरी मस्जिद की बुनियाद मंदिर पर रखी गई थी.

वो ये तो भूल गए कि किसी दूसरे के धर्मस्थल पर मस्जिद बनाने की इजाजत शरीयत नहीं देती है...और वो ये भी भूल गए कि अयोध्या में मस्जिद की जमीन विवादित नहीं है. उसे वक्फ की संपत्ति के तौर पर खरीदा गया है.

जिलानी साहब, बेहतर होता अयोध्या को फिर हिंदू मुस्लिम में उलझाने की जगह आप मुस्लिम तबके को तरक्की की राह दिखाते.

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नफरत की 'विरासत' उनसे नहीं छूटती!

जफरयाब जिलानी हों या हैदराबाद के ओवैसी बंधु या फिर संभल से समाजवादी सांसद शफीकुर्रहमान वर्क, तीनों का एक ही राग है- अयोध्या में मस्जिद थी, है और रहेगी. अयोध्या विवाद का शांतिपूर्ण समाधान उन्हें नहीं पच रहा है, क्योंकि क्योंकि उन्होंने अपनी सियासत की जमीन तैयार करने में पांच सदी पुराने इस विवाद का भरपूर इस्तेमाल किया.

इसलिये अयोध्या में रामजन्मभूमि पर राममंदिर के निर्माण की सोच उन्हें डराती है. अयोध्या में नई मस्जिद के निर्माण में रोड़े अटकाने की बुनियाद शरीयत नहीं, उनकी वो सोच और सियासत है, जो विवादों की विरासत को बरकरार रखना चाहती है.

सवाल ये है कि क्या उनकी सोच और सियासत को आम मुसलमान का समर्थन हासिल है?

तो इसका जवाब अयोध्या विवाद में पक्षकार रहा अंसारी परिवार भी बहुत खुलकर दे चुका है और देश का वो मुस्लिम तबका भी, जिसने अयोध्या में राममंदिर की बुनियाद रखे जाने के ऐतिहासिक मौके पर घी के दिये जलाए, खुशियां मनाई, देश को राममंदिर निर्माण का रास्ता साफ होने की बधाई दी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाज जताया.

कौम की नुमाइंदगी का मुगालता कब जाएगा?
असली सवाल तो ये है कि जब हिन्दुस्तान का आम मुसलमान चाहता है कि अयोध्या में राममंदिर और ऐतिहासिक मस्जिद का निर्माण जल्द से जल्द हो, तो फिर अपनी सियासत चमकाने के लिये विवादों की विरासत को हवा देने में ऐसे लोग क्यों जुटे हैं.

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पाकिस्तान ने जिस तरह का हल्ला मचाया था, अयोध्या में ऐतिहासिक मस्जिद निर्माण को लेकर जिलानी जैसों के सुर अलग नहीं हैं. बड़ी बात तो ये है कि इसके लिये वो उसी शरीयत का हवाला दे रहे हैं, जिसके कायदे को मस्जिद के नीचे मंदिर की सबूत मिलने के बाद भी वो खारिज करते रहे.

अयोध्या में मस्जिद विरोध के बहाने मंदिर विवाद को जिंदा रखने की ऐसी कोशिशों में जो भी चेहरे जुटे हैं, बेहतर तो ये होता कि वो अपना ये मुगालता समय रहते साफ कर लेते कि हिन्दुस्तान का मुसलमान उन्हें अपना नुमाइंदा मानता है भी कि नहीं?

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