बिहार के बब्बर शेर, झारखंड में ढेर

झारखंड जो कभी बिहार का हिस्सा रहा है. वहां बिहार की किसी भी पार्टी की दाल न गल सकी. झारखंड चुनाव में बिहार की लगभग सभी बड़ी पार्टियों ने झारखंड में चुनाव लड़ने की तैयारी की और चुनावी दंगल में मेहनत भी खूब की. लेकिन बावजूद इसके किसी भी पार्टी का प्रदर्शन संतोषजनक भी नहीं रहा. तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली राजद भी बस 1 ही सीट पर जीत दर्ज कर सकी, वो भी महागठबंधन में झामुमो का साथ देने की वजह से.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 25, 2019, 01:14 PM IST
    • जदयू ने अकेले भरा था दम जो निकल गया
    • लोजपा ने भी काफी निराश किया
    • मुख्यमंत्री कुमार ने नहीं की एक भी सभाएं
    • राजद ने दिखाया दम, सरकार में हिस्सेदारी
बिहार के बब्बर शेर, झारखंड में ढेर

रांची: झारखंड चुनाव में बिहार की सभी बड़े दल फिसड्डी साबित हुए हैं. सत्तारूढ़ जदयू हो या सरकार में हिस्सेदारी वाली लोजपा किसी ने भी झारखंड चुनाव में कोई खास कमाल नहीं किया. पार्टियों के सामने यह चुनौती थी कि वह अपनी खोई जमीन तलाश कर सकें लेकिन हुआ उसके ठीक उल्टा झारखंड में सबकी जमानत जब्त हो गई. राजद ने एक सीट जीतकर बिहार की पार्टियों की लाज जरूर बचाए रखी. 

जदयू ने अकेले भरा था दम जो निकल गया

दरअसल, बिहार में एक साथ सरकार में हिस्सेदारी रखने वाली तीनों पार्टियां झारखंड के चुनाव में अकेले-अकेले ही उतरी थीं. लेकिन किसी भी पार्टी को झारखंड की जनता का समर्थन नहीं मिला. जहां एक ओर भाजपा सरकार से बेदखल हो गई, वहीं जदयू और लोजपा एक सीट को भी तरस गई. देखा जाए तो जदयू और लोजपा के उम्मीदवार तो किसी भी सीट पर कड़ी टक्कर तक नहीं दे पाए. चुनाव से पहले जदयू ने यह ऐलान किया था कि वह झारखंड में भाजपा के बिना उतरेगी. उनका गठबंधन सिर्फ बिहार तक ही सीमित है. 

लोजपा ने भी काफी निराश किया

लगभग यहीं हाल लोजपा का भी था. लोजपा हालांकि, शुरुआती दौर में भाजपा से कुछ सीटों पर चुनाव लड़ने की ईच्छा जता चुकी थी, लेकिन भाजपा ने लोजपा की मांग को कुछ खास तरजीह नहीं दी. इसके बाद लोजपा ने तकरीबन 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और एक पर भी टक्कर में न रह सकी. वहीं जदयू ने 47 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. 

मुख्यमंत्री कुमार ने नहीं की एक भी सभाएं

दिलचस्प बात यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो जैसे पार्टी को सांकेतिक तौर पर उतारने का ही मन बनाया था. ना उन्होंने झारखंड में कोई प्रचार किया और ना ही भाजपा और लोजपा के खिलाफ कोई काम किया. जदयू का सारा दारोमदार उनके मंत्री और नेताओं पर ही था. शायद यहीं कारण है कि मुख्यमंत्री की ओर से जनता को नकारा जाना उन्हें रास नहीं आया और मतदाताओं ने जदयू को ही नजरअंदाज कर दिया. 

राजद ने दिखाया दम, सरकार में हिस्सेदारी

इन सभी पार्टियों में सबसे अधिक प्रभाव राजद का ही रहा जिसने सात सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे और एक सीट अपने खाते में करने में सफल भी हुई. इतना ही नहीं झारखंड में झामुमो गठबंधन की सरकार का हिस्सा राजद भी है.चतरा सीट पर जीत दर्ज कर राजद के प्रत्याशी पार्टी की लाज बचाए रखी. 

बिहार में लोकसभा चुनाव के बाद जिस पार्टी को नकार दिया जाना समझा गया था, उसी पार्टी ने लगातार बिहार में हुए उपचुनाव में और अब झारखंड में विधानसभा चुनाव में अपना प्रभाव दिखाया. राजद और जदयू बिहार में वो दो बड़ी क्षेत्रीय पार्टियां हैं जो सत्ता का कमाना संभालते रहती हैं. लेकिन इस बार झारखंड में उतरने का फैसला पार्टियों के लिए कुछ खास अच्छा नहीं रहा.

 

 

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