'अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा..' 6 अप्रैल 1980 को अटल बिहारी वाजपेयी ने इन शब्दों के साथ भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी थी. आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली भाजपा का गठन करते वक्त किसी ने कल्पना शायद ही कि होगी कि 11 सदस्य वाली पार्टी आज 18 करोड़ से अधिक सक्रिय सदस्य वाली पार्टी बन जाएगी. वाजपेयी की दूरदर्शी सोच ने इस मुकाम को हासिल करने में मुख्य भूमिका निभाई.
भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी
यूं तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना साल 6 अप्रैल 1980 में हुई है, लेकिन इसके मूल में श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा 1951 में निर्मित भारतीय जनसंघ ही है. इसके संस्थापक अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी रहे, जबकि मुस्लिम चेहरे के रूप में सिकंदर बख्त महासचिव बने. लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी को भी महासचिव पद की जिम्मेदारी दी गई. इस पार्टी में भूतपूर्व जनसंघ दल से जुड़े सदस्य तो शामिल हुए ही, इसके अतिरिक्त सिकंदर बख्त, राम जेठमलानी, शांति भूषण और के.एस. हेगड़े जैसे नेताओं को भी शामिल किया गया. जो न जनसंघ के सदस्य थे और न ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य थे.
अटल आडवाणी युग की शुरुआत
जब BJP नही बनी थी, भारतीय जनसंघ था. राजस्थान में विधानसभा चुनाव में जनसंघ की तरफ से भैरो सिंह शेखावत चुनाव लड़ रहे थे. उनके प्रचार के लिए पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी को भी भेजा था. आडवाणी ने जब अटल जी को बोलते हुए देखा तो वो अटल जी के मुरीद हो गए. वहीं से दोनों की दोस्ती की शुरुआत हुई और ये दोस्ती इतनी मजबूत हुई कि पार्टी की स्थापना से लेकर शून्य से शिखर तक का सफर तय किया.
एक असाधारण वक्ता तो दूसरा संगठन बनाने में माहिर.. ये कहने में कोई दो मत नहीं कि आडवाणी ने पार्टी को आधार दिया तो दूसरी और वाजपेयी ने राष्ट्रीय छवि प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई और पार्टी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई.
विवादों से रहा पुराना नाता
कट्टरता रूढ़िवादी विचारधारा वाली इस पार्टी ने कामयाबी का आसमान छुआ, तो बदनामी का कालिख भी देखा है. चाहे 1980 में रथ यात्रा निकालने वाला फैसला, 1992 में विवादित ढांचा ध्वस्त करने का आरोप, तो 2002 में गोधरा कांड का आरोप.. विवादों से भाजपा का गहरा नाता रहा है. इस कारण पार्टी की हिंदुत्व पहचान को और उजागर किया गया. हालांकि इन सब को दरकिनार करने की कोशिश लगातार जारी है. सबका साथ सबका विकास के नारे के साथ सबको साथ लाने में अग्रसर भी दिखाई दे रही है.
स्थापना से वर्तमान तक का सफर
1984 के चुनाव में भाजपा की मात्र 2 सीटें थीं, लेकिन वर्तमान में सर्वाधिक राज्यों में भाजपा की खुद की या फिर उसके समर्थन से बनी हुई सरकारें हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा कांग्रेस के बाद देश की एकमात्र ऐसी पार्टी बनी जिसने चुनाव भले ही गठबंधन साथियों के साथ लड़ा, लेकिन 282 सीटें हासिल कर अपने बूते बहुमत हासिल किया.
2019 में फिर एक बार शानदार प्रदर्शन कर 303 सीटे जीतने में कामयाब रही. अयोध्या में राम मंदिर और हिन्दुत्व भाजपा के ऐसे मुद्दे रहे जिनके चलते वह 2 सीटों से 303 सीटों तक पहुंच गई. भाजपा को मजबूत करने में वाजेपयी और लालकृष्ण आडवाणी की अहम भूमिका रही है.
आडवाणी की रथयात्रा ने भाजपा के जनाधार को और व्यापक बनाया. 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के पहले प्रधानमंत्री बने, लेकिन बहुमत न होने के कारण उनकी सरकार 13 दिन में ही गिर गई. 1998 में हुए चुनाव में एक बार फिर वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, लेकिन जयललिता के कारण उनकी सरकार फिर गिर गई. 1999 में वाजपेयी फिर प्रधानमंत्री बने और उन्होंने गठबंधन सरकार चलाई.
हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में वे सत्ता में वापसी नहीं कर सके. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. फिर 2019 में 303 सीटे हासिल लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी की. प्रधानमंत्री मोदी की जादूगरी एवं अमित शाह की कुशल कारीगरी ने बीजेपी को दोबारा मजबूत किया.
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देखना ये अहम होगा कि क्या बीजेपी अपने विजयी अभियान को जारी रख एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण का सपना देख सबका साथ सबका विकास करेगी. 6 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी के 41 वर्ष पूरे हो रहे हैं. 41 साल की उम्र में बीजेपी की ताकत पूरी दुनिया देख रही है.
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