नई दिल्ली: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने उच्चतम न्यायालय को बुधवार को अवगत कराया कि कॉरपोरेट घरानों के लिए लॉबी करने वाली नीरा राडिया की कुछ नेताओं, कारोबारियों, मीडियाकर्मियों एवं अन्य लोगों से हुई बातचीत के टेप की जांच में कोई भी आपराधिक तत्व नहीं मिला है.
राडिया की टेप की जांच में कोई आपराधिक तत्व नहीं- CBI
न्यायालय ने सीबीआई की इन दलीलों का संज्ञान लेते हुए उसे इस मामले में स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया. सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भार्टी ने न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय पीठ से कहा कि निजता के अधिकार के संदर्भ में शीर्ष अदालत के फैसले के मद्देनजर उद्योगपति रतन टाटा की ओर से दाखिल याचिका का निपटारा कर दिया जाना चाहिए.
इस पीठ में न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल हैं. रतन टाटा की याचिका में राडिया का टेप सामने आने के मद्देनजर निजता के अधिकार की रक्षा का अनुरोध किया गया था.
भाटी ने कहा, ‘‘मुझे आपको यह अवश्य सूचित करना चाहिए कि सीबीआई को टेप की सभी बातचीत की जांच करने का आदेश दिया गया था. चौदह प्रारम्भिक जांच (पीई) दाखिल किये गये और सीलबंद कवर में अदालत के समक्ष रिपोर्ट पेश की गयी थी. उनमें कोई भी आपराधिक तत्व नहीं पाया गया है. इसके साथ ही, फोन-टैपिंग को लेकर दिशानिर्देश भी हैं.’’
12 अक्टूबर को होगी अगली सुनवाई
एएसजी ने कहा कि निजता के अधिकार से संबंधित फैसले के बाद अब इस मामले में कुछ नहीं बचा है. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह अवकाश के बाद इस मामले की सुनवाई करेगी, क्योंकि अगले सप्ताह संविधान पीठ बैठ रही है. पीठ ने कहा, ‘‘इस बीच, सीबीआई अद्यतन स्थिति रिपोर्ट पेश कर सकती है.’’ इसके साथ ही उसने मामले की अगली सुनवाई के लिए 12 अक्टूबर की तारीख मुकर्रर कर दी.
टाटा की ओर से पेश वकील ने सुनवाई शुरू होने के साथ ही स्थगन की मांग की. गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने 2017 में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) के एस पुट्टास्वामी मामले में अपने आदेश में कहा था कि निजता संविधान संरक्षित अधिकार है. याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय को सूचित किया कि गैर सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (सीपीआईएल) ने भी एक याचिका दाखिल की है, जिसमें कहा गया है कि इन टेप की बातचीत को व्यापक जनहित में सार्वजनिक किया जाए.
जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
सीपीआईएल की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि राडिया दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण कंपनियों के लिए लॉबी करती थीं और इस दौरान सार्वजनिक जीवन वाले व्यक्तियों को प्रभावित करने की कोशिश की गयी थी, जिसका खुलासा हुआ था. शीर्ष अदालत ने 2013 में कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया की टेप की गई बातचीत के विश्लेषण से उत्पन्न छह मुद्दों की सीबीआई जांच का निर्देश दिया था.
शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘‘राडिया की बातचीत बाहरी उद्देश्यों की पूर्त्ति के लिए सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से निजी उद्यमों की गहरी चाल को दर्शाती है.’’ सरकार ने राडिया की 180 दिनों की बातचीत को पहले 20 अगस्त 2008 से 60 दिनों के लिए और फिर 19 अक्टूबर से 60 दिनों के लिए रिकॉर्ड किया था. बाद में, 11 मई, 2009 को, एक नए आदेश के बाद, उसके फोन को फिर से 60 दिनों के लिए निगरानी में रखना पड़ा था.
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