नई दिल्ली: आपको अक्साई चिन को लेकर ड्रैगन के खौफ से रूबरू होना चाहिए. क्योंकि, सरहद पर इन दिनों चीन से गरमा-गर्मी का माहौल है. चीन की हर एक नादानी पर भारत ने नजर बनाए रखा है. उसकी एक भी गलती उसको काफी मुश्किल में डाल सकती है.
चीन को अक्साई चिन गंवाने का डर
भारत का हिस्सा अक्साई चिन अभी चमगादड़ चीन के कब्ज़े में हैं. जिसे लेकर हिन्दुस्तान ने बड़ी तैयारी कर रखी है. भारत के जबरदस्त तैयारियों को देखते हुए चीन के दिल में डर और खौफ पनप रहा है. बड़ी जानकारी ये सामने आ रही है कि चीन LAC पर सैनिक इसलिए बढ़ा रहा है, क्योंकि उसे अक्साई चिन गंवाने के डर सता रहा है.
अबकी बार, अक्साई चिन पर आर-पार
पिछले साल 2019 में 5 अगस्त को जब भारत ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए. जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश और लद्दाख को UT बनाने का ऐलान किया था तो, इसपर चीन ने आपत्ति जताई थी. अक्साई चिन से होकर तिब्बत से XINJIANG PROVINCE जाने का आसान रास्ता है. अगर ये रास्ता नहीं होगा को काराकोरम रेंज होकर जाना पड़ेगा. अगर भारत अक्साई चिन की तरफ बढ़ेगा, तो न सिर्फ अक्साई चिन खोने का डर है बल्कि XINJIANG प्रांत भी खो सकता है.
अक्साई चिन विवाद क्या है?
इसी कड़ी में आपको अक्साई चिन के पूरे विवाद से रूबरू होना बेहद जरूरी है. क्योंकि ये हिस्सा भारत का है, जिसपर चीन ने पाकिस्तान की मदद से कब्जा कर रखा है.
अक्साई चिन लद्दाख का हिस्सा है. क्षेत्रफल 37,244 किलोमीटर है. अक्साई चिन पर चीन का अवैध कब्जा है. साल 1947 के बाद चीन ने शुरू की घुसपैठ और 10 साल बाद वर्ष 1957 में चीन ने सड़क बनाई. इसके एक वर्ष बाद ही साल 1958 में चीन ने अपने नक्शे में दिखाया. इसके 4 साल साल के भीतर ही वर्ष 1962 के युद्ध के बाद चीन ने इस इलाके पर कब्जा कर लिया. और फिर साल 1963 में पाकिस्तान ने चीन को अक्साई चिन दिया.
भारत के अक्साई चिन के क्षेत्रफल को समझिए-
अब आपको अक्साई चिन के क्षेत्रफस को समझाते हैं. अक्साई चिन का क्षेत्रफल 37,244 वर्ग किलोमीटर है. जिसका आकार कई राज्यों से बड़ा है. ये गोवा से करीब दस गुना बड़ा है. सिक्किम से करीब 5 गुना बड़ा है. मणिपुर से करीब डेढ़ गुना बड़ा है.
यही नहीं ये क्षेत्र आकार में कई देशों के मुकाबले भी बड़ा हैं. अक्साई चिन का क्षेत्रफल ताइवान से ज्यादा है. अक्साई चिन भूटान से थोड़ा ही छोटा है. जबकि, अक्साई चिन बेल्जियम से काफी बड़ा है.
कहां है अक्साई चिन?
इस बीच आपको ये भी समझाते हैं कि अक्साई चिन कहां है? केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख का हिस्सा है. काराकोरम पर्वत शृंखला के बीच है. समुद्र तल से ऊंचाई 17 हजार फीट है. कश्मीर के कुल क्षेत्रफल का करीब 20% है, जबकि क्षेत्रफल करीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर है. अक्साई चिन पर चीन का अवैध कब्जा है.
अक्साई चिन का रणनीतिक महत्व
अब आपको अक्साई चिन का रणनीतिक महत्व समझाते हैं. निश्चित तौर चीन पर निगरानी रखने के लिए अक्साई चिन की अहमियत काफी अधिक है. चीन के शिनजियांग और तिब्बत को जोड़ता है. मध्य एशिया की सबसे ऊंची जगह है, ऐसे में ऊंचाई पर होने से सामरिक दृष्टि से अहम है. अक्साई चिन से भारत चीन की सेना भारत पर नजर रख सकती है. साल 1950 के दशक में चीन ने सड़क बनाई. जो शिनजिंयाग और तिब्बत को जोड़ने वाली सड़क है.
अक्साई चिन पीएम मोदी और उनकी सरकार की रणनीति का कितना अहम हिस्सा है. इसका अंदाजा अमित शाह के उस बयान से लगाया जा सकता है. जो उन्होंने संसद में दिया था. अमित शाह ने आर्टिकल 370 के खत्म होने के बाद लोकसभा में कहा था कि पीओके और अक्साई चिन दोनों ही भारत के जम्मू-कश्मीर का अहम हिस्सा हैं.
भारत ने साफ-साफ चीन से कब्जा खाली करने को कह चुका है. लेकिन आपको यहां ये जानना जरूरी है कि साल 1962 में उस वक्त के पीएम जवाहरलाल नेहरू ने क्या कहा था, ये भी समझिए..
अक्साई चिन पर नेहरू का बयान
1962 युद्ध में हार के बाद नेहरू ने संसद में कहा, 'अक्साई चिन में घास का एक तिनका तक नहीं उगता है. वो बंजर इलाका है'
अक्साई चिन चीन के कब्जे में नहीं होता अगर..
1. 1950 के दशक में नेहरू सरकार सावधान हो जाती
2. नेहरू सरकार चीन की घुसपैठ को समय रहते रोक देती
3. नेहरू सरकार चीन को सड़क नहीं बनाने देती
4. नेहरू सरकार सैन्य शक्ति की अहमियत समझती
5. 1962 में भारत की सेना चीन से बेहतर होती
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साल 1947 से अक्साई चिन पहले कश्मीर रियासत का हिस्सा हुआ करती थी. जिसके बाद 1947 में राजा हरि सिंह ने विलय का समझौता किया और कानूनी तौर पर अक्साई चिन भारत का हिस्सा बना था. साल 1947 के बाद से ही चीन ने घुसपैठ शुरू की लेनिक नेहरू सरकार चीन की घुसपैठ रोक नहीं पाई. और 1962 के युद्ध के बाद तो नेहरू ने अपने देश की जमीन गंवाने के बाद उसे बंजर बता दिया.
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