नई दिल्ली : स्त्री कोई वस्तु नहीं, बल्कि भावनाओं से भरी हाड़ मांस से बनी इंसान है. भारतीय संस्कृति (Indian Culture) में उसे पूज्य का दर्जा दिया गया है. लेकिन मिशनरी और मजहबी सोच के लोग इस बात से चिढ़ते हैं कि उन्होंने मातृशक्ति (Womenhood) पर ही हमला शुरु कर दिया है. यह हमले लगातार जारी हैं. हालांकि इसका न्याय जगदंबा स्वयं करेंगी. लेकिन इस साजिश के पीछे की वजह को जानना बेहद जरुरी है.
देखिए किस तरह किया जा रहा है मातृशक्ति का अपमान
भारत में वामपंथी, मिशनरी और मजहबी कट्टरपंथी एकजुट होकर सनातन परंपराओं पर हमला कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें मालूम है कि नवरात्रि (Navratri) के मौके पर पूरा देश मातृशक्ति की उपासना में जुटा हुआ है. ऐसे में वह उसी मूल शक्ति पर हमला करके प्रचार हासिल कर सकते हैं.
ताजा कोशिश है मजहबी कट्टरपंथियों से भरे पड़े इरोज नाउ (Eros Now) नाम की बॉलीवुड कंपनी ने. जिसने नवरात्रि के दौरान मां जगदंबा (Duvi Durga) के सम्मान में किए जाने वाले गरबा (Garba) और डांडिया नृत्य को बदनाम करने के लिए उसे अश्लील स्वरुप देने की कोशिश की है.
गरबा नृत्य का संबंध मातृशक्ति के सृजन की क्षमता से है. इस नृत्य के दौरान मिट्टी के एक छेद युक्त घड़े के अंदर दिया जलाया जाता है तो कि माता के गर्भ का प्रतीक होता है. जिसके चारो तरफ नृत्य करने की परंपरा है. यह सदियों पुराना रिवाज है.
इसके मूल में स्थित भावना को समझे बिना बॉलीवुड (Bollywood) के निकृष्ट मानसिकता के अल्पबुद्धि दोगले लोगों ने इस पवित्र परंपरा को अपमानित करने लिए इसे सेक्स से जोड़ने की कोशिश की. इनकी मंशा हिंदू धर्म का अपमान करने के साथ विवाद पैदा करके प्रचार पाने की भी थी.
लेकिन भारत अब वो पुराना भारत नहीं है. सनातनी लोग अपनी ताकत को समझ रहे हैं. इसलिए इरोज नाउ को अपना विवादित ट्विट हटाना पड़ गया. लेकिन उनकी कुत्सित मानसिकता तो स्पष्ट तौर पर सामने आ ही गई.
इसके पहले हुई थी हिंदू पुरुषों को बलात्कारी साबित करने की कोशिश
इरोज नाउ से पहले सनातन धर्म को अपमानति करने की मुहिम में एक अनजान सी वकील दीपिका राजावत कूदी थी. जो कि भले ही नाम से हिंदू लगती हो. लेकिन अपने संस्कारों और विचारों में यह महिला पूरी तरह निकृष्ट मजहबी कट्टरपंथियों का प्रतिनिधित्व करती है. पहले इस वकील ने कठुआ बलात्कार कांड में झूठे गवाह गढ़ कर जम्मू के पूरे हिंदू समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की. लेकिन बाद में इस वकील को उन्हीं लोगों ने खारिज कर दिया. जिनकी आवाज बनने का यह महिला दावा कर रही थी.
लेकिन प्रचार की भूखी दीपिका राजावत ने अपनी कोशिशें नहीं छोड़ी. उदाहरण के तौर पर देखिए इस स्यूडो सेक्यूलर महिला का दोहरा चेहरा. जिसने दुर्गापूजा के मौके पर समस्त हिंदू पुरुषों को बलात्कारी साबित करने की कोशिश की. लेकिन ईद पर उसे सिवईयों की मिठास सद्भाव फैलाने वाली लगती है.
सनातन परंपरा पर हमले के पीछे की साजिश को समझिए
भारत में सदियों से मातृशक्ति की उपासना करने की परंपरा है. नवरात्रि के दौरान भारत के ज्यादातर लोग जगदंबा की भक्ति में लीन होते हैं. यह त्योहार इस बात को दर्शाने के लिए है कि मातृशक्ति सर्वोपरि है. लेकिन यह बात वामपंथी, मजहबी और मिशनरी मानसिकता के लोगों को बेहद अखरती है.
क्योंकि उन्हें भारत की हर एक प्राचीन परंपरा से दुश्मनी होती है. उनका उद्देश्य भारत को तोड़ना है. इसीलिए वह सनातन परंपराओं पर हमला करते हैं. क्योंकि इन्हीं परंपराओं के धागे से जुड़कर भारत हजारों सालों से एक ताकत बना हुआ है. जिसे हजारों विदेशी हमले भी तोड़ नहीं पाए.
इन वामपंथी, मजहबी और मिशनरी सोच के लोगों को भारत राष्ट्र की एकजुटता से डर लगता है. वह जानते हैं कि यह एक सोया हुआ शेर है. जो जब भी पूरी तरह जाग जाएगा तो सभी आयातित विचारधाराओं को खिलौनों की तरह नष्ट कर देगा. इसीलिए उनकी भरपूर कोशिश होती है कि सनातन धर्म और उसकी परंपराओं की पूरी तरह बदनामी की जाए.
मातृशक्ति की उपासना की परंपरा है सदियों पुरानी
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत दुनिया का एकलौता ऐसा देश है जहां मातृशक्ति को ईश्वर के रूप में माना जाता है. दुनिया की तमाम विचारधारां जो आधुनिक और विचारशील होने का ढोंग करती हैं. वह स्त्रियों को दोयम दर्जे का मानते हैं. कई जगहों पर तो स्त्रियों को मानव भी मानने को तैयार नहीं.
स्त्री को ईश्वर मानना तो दूर मजहबी कट्टरपंथियों की जमात में औरतों को यौन वासियों से ज्यादा कुछ नहीं माना जाता. वही ईसाइयत में औरतों को अब जाकर अधिकार प्राप्त हुए अन्यथा पहले कैथोलिक चर्च के जमाने में औरतों को आधा इंसान ही माना जाता था. आज तक अमेरिका जैसे अति आधुनिक माने जाने वाले देश में कोई भी महिला राष्ट्रपति के पद तक नहीं पहुंच पाई है. हालांकि वहां लोकतंत्र का इतिहास लगभग 220 साल पुराना है.
जबकि भारत में आदि काल से स्त्री को ईश्वर के रूप में पहचाने का स्पष्ट आदेश है. ऋग्वेद के नासदीय सूक्त जहां ईश्वर को स्त्री और पुरुष दोनों ही माना गया है. हजारों साल पुराना यह विचार आज भी सनातन भारतीय परंपराओं में दिखता है. मातृशक्ति को पुरुष शक्ति से ज्यादा पवित्र और पूज्य माना जाता है. सनातन धर्म के सबसे शक्तिशाली देवता शिव को बिना शक्ति यानी देवी के शव यानी लाश के रुप में माना जाता है.
ऋग्वेद के इस नासदीय सूक्त को गौर से सुनें. जिसमें स्पष्ट रुप से ईश्वर को स्त्री और पुरुष के सम्मिलित स्वरुप में देखे जाने का आदेश है. यह आदेश आज का नहीं बल्कि हजारों साल पुराना है.
जबकि इस्लाम और ईसाईयत जैसे अब्राहमिक धर्मों में ऐसा कतई नहीं है. बाइबल और कुरान दोनों में ही स्त्री को पुरुष की बराबर नहीं बल्कि उसकी पसली से बना हुआ बताया गया है. अब्राहमिक ग्रंथों के मुताबिक स्त्री की भूमिका मात्र पुरुष के मनोरंजन तक सीमित है. मातृशक्ति का अपमान करने वाले लोग इसी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं.
भारत में प्राचीन काल से महिलाओं को कई अधिकार प्राप्त थे. वह जमीनों की स्वामिनी हो सकती थी. शासक बन सकती थी और राजनीति में उसका अच्छा दखल होता था. लेकिन मुस्लिम देशों में औरतों के हाथ में राज्य देना तो छोड़िए सामान्य मानव अधिकारों से भी वंचित रखा जाता है. मध्य पूर्व के अरब और ईरान जैसे दकियानूसी देशों में ये परंपरा आज भी जारी है.
आपराधिक घटनाओं के आधार पर पूरे सनातन धर्म को निशाना बनाने की साजिश
मजहबी कट्टरपंथियों के इशारे पर दीपिका राजावत जैसे प्रचार के भूखे लोग भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाओं पर सवाल उठाते हैं. लेकिन रेप की यह घटनाएं भी पश्चिम की उपभोक्तावादी संस्कृति की देन हैं. जिसका प्रतिनिधित्व इरोज नाउ जैसी कंपनियां कर रही हैं. बॉलीवुड के अर्द्धविकसित मानसिकता के पहले तो पुरुषों को पशु बनाने की भरपूर कोशिश करते हैं. जिसकी परिणति बलात्कार की घटनाओं में होती है. जिसके बाद मजहबी कट्टरपंथियों के शह पर सेक्लूयर गैंग का विधवा विलाप शुरु हो जाता है.
लेकिन भारत जैसे सवा अरब की आबादी वाले देश में इस तरह की आपराधिक घटनाएं भी भूसे के ढेर में सुई की तरह हैं. लेकिन इन्हीं चंद घटनाओं का सहारा लेकर पूरे सनातन धर्म को बदनाम करने की कोशिश की जाती है.
लेकिन भारत अब जाग चुका है. वह सनातन धर्म को अपमानित करने वाली हर कोशिश पर बारीकी से नजर रखे हुए है. जल्दी ही वो समय आएगा जब ऐसी हर कोशिश का भरपूर जवाब दिया जाएगा.
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