मुंबई. महाराष्ट्र में प्रदेश सरकार ठीक वैसे ही सो रही है जैसे राजस्थान की सरकार. राजस्थान में बच्चों की मौतों की कोई परवाह नहीं है गहलोत को तो महाराष्ट्र में उद्धव को किसानो की मौतों से कोई फर्क नहीं पड़ता दिख रहा है,
अक्टूबर से बढ़ी हैं आत्महत्या की घटनाएं
महाराष्ट्र में नवंबर 2019 राजगद्दी की हूतूतू का महीना था तो अक्टूबर चुनावी महीना था. सियासी स्वार्थ की कवायदों में मसरूफ थे प्रदेश के नेता. इस दौरान अक्टूबर माह में बेमौसम की बरसात कब हो गई किसी को पता नहीं चला. सिर्फ उन किसानों को पता चला जिनकी खेती इस बारिश ने बर्बाद कर दी. ऐसे में किसान कहते तो किससे कहते. किसानों की मौतें पहले भी होती रही हैं आत्महत्या बन कर. लेकिन पहले भी किसी ने न किसानों की पीड़ा देखी, न ही उनकी आत्महत्या के बाद उनके परिवार का आर्तनाद सुना. इस बार भी यही हुआ. नवंबर में कुर्सी के लिए जी-जान लगा कर भिड़े हुए नेताओं ने आत्महत्या करके जान देते इन किसानों की तरफ नहीं देखा.
पिछले चार सालों में सबसे बड़ी संख्या में हुई आत्महत्या
अक्टूबर 2019 में महाराष्ट्र में होने वाली बेमौसम की बरसात ने किसानो की खरीफ की फसल नेस्तोनाबूद कर दी. और आंकड़े बताते हैं कि इसी महीने के बाद किसानों की आत्महत्या में तेज़ी देखी गई. और इन्हीं दुर्भाग्यपूर्ण आंकड़ों ने ये भी बताया कि तीस दिन के भीतर ही इस प्रदेश के तीन सौ से ज्यादा अन्नदाताओं ने अपनी लाचारी के गमछे से मुँह बंद करके फांसी लगा ली.
आखिर कब रोकेगा कोई हमारे अन्नदाता को मरने से ?
सिर्फ नवंबर महीने में याने के महज तीस दिनों में महाराष्ट्र के 300 किसानों ने आत्महत्या कर ली और किसी के कानों में कोई जूं नहीं रेंगी? आंकड़े बताते हैं कि पिछले 4 सालों में किसी एक महीने में किसानों के आत्महत्या करने की सबसे बड़ी संख्या है ये. हालांकि पांच साल पहले अर्थात 2015 में कई बार ऐसा हुआ कि एक महीने में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा 300 को पार कर जाता था. किसान मर जाता था और देश उसका अनाज खा कर ज़िंदा रहता था. बेशर्म अहसानफरामोशों को कोई फर्क कभी नहीं पड़ा तो आज कैसे पड़ जाएगा?
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