नई दिल्लीः Martyrs' Day 2023: भगत सिंह की आज यानी 23 मार्च को पुण्यतिथि है. इसे शहीदी दिवस के रूप में याद किया जाता है. भगत सिंह 23 साल की उम्र में फांसी पर झूल गए थे. 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह को क्रांतिकारी राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी की सजा मिली थी. भगत सिंह के बारे में कहा जाता है कि वह बचपन से ही देश पर मर मिटने की बातें करते थे. वह 15 साल की उम्र में आजादी के आंदोलन में जुड़ गए थे. इससे उनका परिवार खुश नहीं था.
शादी की बात पर घर छोड़ दिया
कहा जाता है कि परिवार ने उनकी शादी करनी चाही तो वह पत्र लिखकर घर से चले गए. उन्होंने लिखा कि दादा अर्जुन सिंह ने प्रण लिया था कि उनके बड़े भाई जगत सिंह व भगत सिंह को देश के लिए देते है. इसके बाद उन्होंने विवाह का फैसला क्यों किया. परिवार ने अपना हठ छोड़ा तो भगत सिंह अपने घर आ गए.
4 साल की उम्र में 'बो रहे थे बंदूक'
भगत सिंह का पूरा परिवार स्वतंत्रता सेनानियों से भरा था. उनके दादा अर्जुन सिंह, चाचा अजीत सिंह आजादी के लिए लड़े थे. भगत सिंह भी 15 साल की उम्र में आंदोलन से जुड़ गए. 4 साल की उम्र में भगत सिंह खेत में कुछ बो रहे थे. तब उनके पिता के मित्र और कांग्रेस कार्यकर्ता मेहता आनंद किशोर ने पूछा तुम क्या बो रहे हो तो भगत सिंह ने कहा बंदूकें बो रहा हूं. बड़ा होकर इनकी फसल से अंग्रेजों की कैद से अपने चाचा अजीत सिंह को आजाद कर भारत ला सकूंगा.
नहीं पूरी हो सकी आखिरी इच्छा
भगत सिंह कोठरी नंबर 14 में बंद थे. उन्हें 24 मार्च को फांसी दी जानी थी. भगत सिंह ने जेल के सफाईकर्मी बेबे से फांसी से एक दिन पहले घर का खाना लाने के लिए कहा था. भगत सिंह को एक दिन पहले 23 मार्च को फांसी दे दी गई, इसलिए बेबे उनके लिए घर का खाना नहीं ला सके. और भगत सिंह की आखिरी इच्छा पूरी नहीं हो पाई.
फांसी से पहले बढ़ गया था वजन
भगत सिंह का फांसी से पहले वजन बढ़ गया था. वह खुश थे कि वह भारत मां पर कुर्बान होने जा रहे हैं. जबकि अन्य कैदी जिन्हें फांसी दी जानी थी वे रो रहे थे. कहा जाता है कि भगत सिंह 1 साल 350 दिनों तक जेल में रहे थे.
फांसी के समय डिप्टी कमिश्नर को सुनाई क्रांतिगाथा
भगत सिंह को तय तारीख से एक दिन पहले फांसी दे दी गई थी. वह फांसी के तख्त पर चढ़े. उनके गले में फंदा डालने से पहले भगत सिंह ने डिप्टी कमिश्नर की तरफ मुस्कुरा कर देखा. भगत सिंह ने डिप्टी कमिश्नर को देखकर कहा, मिस्टर मजिस्ट्रेट, आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर झूल जाते हैं.
फिल्मों के शौकीन थे भगत सिंह
भगत सिंह फिल्में देखने के शौकीन थे. वह अपने दोस्त जयदेव के साथ फिल्म देखने के लिए जाते थे. एक दिन जयदेव ने कहा कि उन्हें गभीर बीमारी डिस्पेप्सिया है इसलिए वह नहीं जा सकते. इस पर भगत सिंह ने डिक्शनरी निकाली और कहा कि यह सिर्फ पेट का हाजमा खराब होने की दिक्कत है. उन्होंने मजाक में जयदेव के पेट में घूसा मारा और कहा- तू ऐसे फिल्में देखने से नहीं बच सकता.
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