शिक्षा नीति को देश की नीति माना है मोदी सरकार ने

राज्यपालों की बैठक को संबोधित करते हुए राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अविस्मरणीय बात कही - ''नई शिक्षा नीति, सरकार की नहीं अपितु देश की एक नीति है जैसे कि भारत की रक्षा नीति अथवा विदेश नीति.''

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Sep 10, 2020, 03:47 AM IST
    • तृणमूल ने किया संकीर्ण सोच का प्रदर्शन
    • शिक्षा का माध्यम मातृभाषा रखा जायेगा
    • अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा करेगी लोगों के दो हिस्से
    • अध्ययन के साथ व्यवहारिक शिक्षा भी आवश्यक
    • सरकार आवश्यक सुधारों के लिये तैयार है
 शिक्षा नीति को देश की नीति माना है मोदी सरकार ने

नई दिल्ली. पीएम मोदी का सन्देश राज्यपालों के सम्मेलन में सदा ही अविस्मरणीय रहेगा. इसमें सरकार की सोच अंतर्निहित है और राष्ट्र सर्वोपरि है. प्रधानमंत्री ने कहा है कि शिक्षा नीति पर सर्वसम्मति होनी चाहिए. परन्तु अचम्भा लगता है ये देख कर कि नई शिक्षा नीति में सुधार हेतु रचनात्मक सुझाव देने की बजाए कुछ नेता इसकी कटु-निन्दा में लग गए हैं. 

 

तृणमूल की संकीर्ण सोच 

 प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय सोच के उलट पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस की संकीर्ण सोच दिखाई दी. उनके नेता ने कहा कि प्रदेश सरकार नई शिक्षा नीति को इसलिए लागू नहीं करेगी क्योंकि इसमें बांग्ला को शास्त्रीय भाषा या प्राचीन भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है. सहज बुद्धि इस्तेमाल करते तो समझ आता कि बांग्ला को दर्जा देने से बाकी दर्जन भर भाषाओं को भी यही दर्जा देना जरूरी हो जाता. अब संसद का यह सत्र नई शिक्षा नीति पर बहस करते हुए बीतेगा. 

शिक्षा का माध्यम मातृभाषा रहेगा

सबसे अच्छी बात इस नई शिक्षा नीति की ये है कि प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही रखी गई है. वहीं दूसरी तरफ संसद, सरकार और अदालतों में सभी महत्वपूर्ण कार्य अंग्रेजी में यथावत चलते रहेंगे. यदि ऐसा होगा तो लोग मातृभाषा के माध्यम से अपने बच्चों को क्यों पढ़ाएंगे? बच्चों को हिंदी में पढ़ाने वाले मजबूर लोगों में ग्रामीण, किसान, मजदूर, पिछड़े, आदिवासी और गरीब लोग ही रहेंगे. मध्यम वर्ग के और शहरी लोग जो कि पहले ही ढंग से पढ़े लिखे हैं. वे ज़ाहिर है, अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से ही पढ़ाएंगे. 

भाषा करेगी लोगों के दो हिस्से  

ऐसे में देश हिन्दीवादी भारतीय और अंग्रेजी मानसिकता के इंडियंस के दो समूहों में बंट जायेगा. इस एक बड़ी टूटन से देश को बचाने के लिए बच्चों की पढ़ाई में अंग्रेजी माध्यम पूरी तरह हटाना होगा. अंग्रेजी माध्यम पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो नये-नये कान्वेंट स्कूलों और पब्लिक स्कूलों की लाइन लग जायेगी.

अध्ययन के साथ व्यवहारिक शिक्षा भी 

सरकार की ये अच्छी पहलकदमी है कि पढ़ने की शिक्षा और करने की शिक्षा दोनों का ही ध्यान रखा जाएगा. लेकिन इतना ही जरूरी ये भी है कि भारत में शारीरिक श्रम करने वालों और मानसिक श्रम करने वालों के बीच की दूरियां कम की जाएं. काम-धंधों का प्रशिक्षण प्राप्त छात्र व्यावसायिक क्षेत्र में हमेशा नीची नज़र से देखे जाते हैं. इस अन्याय और असामाजिकता के अंत हेतु समाज के मूल स्वरूप में आधारभूत परिवर्तनों की आवश्यकता है. 

सरकार सुधार को राज़ी है 

इस नई शिक्षा नीति की तारीफ़ जितनी हुई है उतनी ही चिंताएं और शंकाएं भी विशेषज्ञों ने जताई हैं. सराहना का विषय ये भी है कि प्रधानमंत्री जी ने आश्वासन दिया है कि सरकार सभी आवश्यक सुधारों का पूरा ध्यान रखेगी.

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