National Pollution Control Day 2021: दिल्ली में पिछले 50 साल में यूं बढ़ा प्रदूषण

हर साल 2 दिसंबर को भारत में राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 2, 2021, 09:05 AM IST
  • 1970 के दशक में सल्फर डाइआक्साइड ज्यादा थी
  • आज की हवा में धूल के कणों की मात्रा ज्यादा है
National Pollution Control Day 2021: दिल्ली में पिछले 50 साल में यूं बढ़ा प्रदूषण

नई दिल्ली: 1984 में भोपाल गैस त्रासदी में अपनी जान गंवाने वाले हजारों लोगों और बढ़ते प्रदूषण की समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 2 दिसंबर को भारत में राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है. 

भोपाल गैस त्रासदी के वक्त पूरा शहर एक गैस चैंबर बन गया था जिसमें 3788 लोगों ने जान गंवा दी थी. लेकिन देश का एक और शहर है जो पिछले पचास साल में रह-रहकर गैच चैंबर बन जाता है. वह शहर है देश की राजधानी दिल्ली. आइये जानते हैं कि साल दर साल दिल्ली में प्रदूषण के हालात बदतर होते गए और कब-कब इसे रोकने के बड़े उपाय किए गए.

70 का दशक, जब दिल्ली में आसमान में तारे गिनना मुश्किल होता था
इंडियन एसोसिएशन आफ एयर पोल्यूशन कंट्रोल के अध्यक्ष डा. जेएस शर्मा ने हाल में एक इंटरव्यू में बताया है कि 1970-80 के दशक में एयर क्वालिटी इंडेक्स( AQI) में सल्फर डाइआक्साइड(So2) और नाइट्रोजन डाइआक्साइड(No2) की मात्रा वर्तमान समय के मुकाबले काफी ज्यादा थी. 

आज की हवा में एक्यूआइ में धूल के कणों की मात्रा ज्यादा है. जेएस शर्मा के मुताबिक पहले के ईंधन में सल्फर की मात्रा काफी ज्यादा थी. यह सल्फर ईंधन से निकलता था. पर बाद में ईंधन परिष्कृत हुआ. यह हाल दिल्ली, आगरा समेत देश के कई शहरों का था. वहीं राजधानी के लोग बताते हैं कि 1970 के दशक में दिल्ली के आसमान में रात में तारे देखना भी मुश्किल था.

1990 से शुरू हुआ याचिकाओं का दौर
सुप्रीम कोर्ट में प्रदूषण रोकने के लिए लगाई जा रही याचिकाओं का दौर नया नहीं है. 1990 में पर्यावरणविद और वकील एम सी मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली प्रदूषण से जुड़ी याचिका लगाई थीं. इन पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट पिछले 25 सालों के दौरान अलग-अलग आदेश देता रहा है.  1985 में पहली बार एम सी मेहता ने दिल्ली के प्रदूषण को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी. इससे आप समझ सकते हैं कि दिल्ली 50 साल से गैस चेंबर बनती रही है. 

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कोर्ट के आदेश पर उठाए गए कदम
-1996 में दिल्ली के ईंट भट्टों को बंद करने का आदेश दिया गया
-1998 में एनवायरमेंट प्रदूषण अथारिटी का गठन
-2004 में सैकड़ों उद्योगों के राजधानी से बाहर किया
-2000 में पेट्रोल डीजल बसों को सीएनजी में बदलने की सीमा तक की गई
-2001 में दिल्ली में पेरिफेरल रोड बनाने का सुझाव, 15 साल लगे बनने में
-2004 में अरावली में खनन पर नियंत्रण के आदेश
-2014 में 10 साल पुरानी डीजल और 15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ियों पर रोक
-2016 में पटाखों की बिक्री पर रोक
-2017 में पराली पर किसानों को जागरूक करने का आदेश

बढ़ते गए गैस चैंबर वाले दिन
दिल्ली में ज्यादा प्रदूषण वाले दिनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. जैसे सीपीसीबी के नवंबर के आंकड़ों को देखें तो 1990 में नवंबर में 6 दिन प्रदूषण गंभीर श्रेणी में था. लेकिन 2016 में यह आंकड़ा 15 दिन का हो गया. हालांकि 2015 में इसमें गिरावट आई और गंभीर प्रदूषण वाले दिनों की संख्या 7 पहुंच गई. फिर 2018 में 5 दिन, 2019 में 7 दिन, 2020 और 2021 में 9 दिन नवंबर के प्रदूषण की गंभीर श्रेणी में रहे. 

हर साल 15 लाख लोगों की मौत
वहीं  प्रदूषण से होने वाली मौतों पर नजर डालें तो हाल में पर्यावरणविद विमलेंद्रू झा ने बताया है कि देश में साल में 15 साल लोग प्रदूषण से जान गंवा देते हैं. वहीं अत्याधिक जहरीली गैसों के चलते दिल्ली के लोगों की औसत उम्र 9.5 साल तक कम हो जाती है. 

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