नई दिल्ली. एक बात तो साफ़ हो गई है इस बार देश की संसद में पास एक क़ानून का विरोध करने सड़कों पर उतरी भीड़ को देख कर. ये भीड़ न केवल सरकारी समय और ऊर्जा को तो बड़े पैमाने पर बर्बाद कर ही रही है बल्कि सरकारी सम्पत्ति को भी इरादतन भारी नुकसान पहुंचा रही है. इनको जेलों में ठूंसने का समय आ गया है ताकि आगे से ऐसा न हो.
ये शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने वाले लोग नहीं हैं
कहने की ज़रूरत नहीं न ही किसी प्रमाण की आवश्यकता है. समाचार पत्र अपने अपने दुराग्रहों का शिकार हो कर अगर साफ साफ नहीं भी दिखा रहे हैं तो भी सारा देश देख रहा है टेलीविज़न न्यूज़ में कि किस तरह का प्रदर्शन हो रहा है भारत में. नागरिकता क़ानून का विरोध करने वाले शांति दूत नहीं हैं न ही इनको देश से प्रेम है वरना जो हिंसा भारत की सड़कों पर नज़र आ रही है, वो नज़र नहीं आती.
कार्रवाई न करने से गलत सन्देश जाता है
राष्ट्रीय क़ानून का विरोध करने सड़कों पर उतरी उत्पाती भीड़ का असली चेहरा बेनकाब होता जा रहा है. ये वो राष्ट्रविरोधी ताकतों के मोहरे हैं जो ऐसे मौकों की तलाश में रहते हैं और प्रदर्शन करने का ऐसा कोई भी अवसर मिलते ही ये राष्ट्रीय सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं. इसके अलावा प्रदर्शन करने वाली भीड़ में हज़ारों देश विरोधी तत्व भी शामिल होते हैं जिनका अजेंडा घातक हो सकता है.
दुनिया में कहीं नहीं बख्शे जाते उपद्रवी
ये सिर्फ भारत है जहां हिंसक प्रदर्शन करने वालों पर क़ानून मेहरबान रहता है. हमारे देश में प्रदर्शन के नाम पर तोड़-फोड़ और हिंसा करने वालों पर न पुलिस सख्त होती है न हमारी अदालतें. वहीं दुनिया के हर देश में ऐसे लोगों को राष्ट्रविरोधी माना जाता है और उन पर सख्त कार्रवाई होती है.