जवानी में कबड्डी और हॉकी के खिलाड़ी रहे खड़गे पर कांग्रेस को 'मैच जिताने' की जिम्मेदारी

अपनी युवावस्था में जाने माने कबड्डी और हॉकी खिलाड़ी रहे खड़गे दशकों तक चुनावी राजनीति में अजेय रहे और कन्नड़ के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, उर्दू में उनकी दक्षता से उनके अपने नए पद पर अच्छी स्थिति में होने की उम्मीद है. 

Edited by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 19, 2022, 11:37 PM IST
  • बेदाग छवि के मालिक हैं खड़गे.
  • ‘सोलिल्लादा सरदारा’ के रूप में मशहूर
जवानी में कबड्डी और हॉकी के खिलाड़ी रहे खड़गे पर कांग्रेस को 'मैच जिताने' की जिम्मेदारी

बेंगलुरु. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को अध्यक्ष पद के चुनाव में शशि थरूर को पटखनी दे दी. खड़गे की चुनावी जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शुभकामनाएं दी हैं. कार्यकर्ताओं के बीच ‘सोलिल्लादा सरदारा’ के रूप में मशहूर मल्लिकार्जुन खड़गे बहुत साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं और केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं. पांच दशकों से अधिक के राजनीतिक जीवन में उन्होंने कुशलता से कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली और राजनीति तथा सत्ता के उतार-चढ़ाव के बावजूद गांधी परिवार के प्रति दृढ़ वफादार बने रहे.

कावेरी नदी जल विवाद हो या शीर्ष कन्नड़ अभिनेता दिवंगत राजकुमार का अपहरण, खड़गे दो दशक पहले कर्नाटक के गृह मंत्री के रूप में ऐसी कई संकटपूर्ण स्थितियों से निपट चुके हैं. खड़गे (80) का सार्वजनिक जीवन अपने गृह जिले गुलबर्ग (अब कलबुर्गी) में एक यूनियन नेता के रूप में शुरू हुआ और वर्ष 1969 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए तथा गुलबर्ग शहरी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने.

कबड्डी और हॉकी के खिलाड़ी रहे हैं
अपनी युवावस्था में जाने माने कबड्डी और हॉकी खिलाड़ी रहे खड़गे दशकों तक चुनावी राजनीति में अजेय रहे और कन्नड़ के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, उर्दू में उनकी दक्षता से उनके अपने नए पद पर अच्छी स्थिति में होने की उम्मीद है. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कर्नाटक खासकर हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में नरेंद्र मोदी लहर के बावजूद गुलबर्ग से 74 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की. वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में आने से पहले उन्होंने गुरुमितकल विधानसभा क्षेत्र से नौ बार जीत दर्ज की. वह गुलबर्ग से दो बार लोकसभा सदस्य रहे.

2019 में मिली थी हार
हालांकि, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में खरगे को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता उमेश जाधव से गुलबर्ग में 95,452 मतों से हार का सामना करना पड़ा. अपने गृह राज्य कर्नाटक में ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (कभी नहीं हारने वाला नेता) के रूप में मशहूर खरगे के कई दशकों के सियासी सफर में यह उनकी पहली हार थी. खड़गे ने कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली जिससे एक प्रशासक के तौर पर उनका अनुभव समृद्ध हुआ.

संभाली हैं कई जिम्मेदारियां
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में खड़गे ने केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में श्रम एवं रोजगार, रेलवे और सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण विभाग संभाला. उन्होंने कर्नाटक में कांग्रेस की लगातार कई सरकारों में विभिन्न विभागों का कार्यभार संभाला था. खड़गे कर्नाटक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) प्रमुख भी नियुक्त किए गए.

बेदाग छवि
लोकसभा में वर्ष 2014 से 2019 तक वो कांग्रेस के नेता रहे. जून, 2020 में खड़गे कर्नाटक से राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए और हाल तक उच्च सदन में विपक्ष के 17वें नेता थे. खड़गे को कई बार कर्नाटक में मुख्यमंत्री बनने के शीर्ष दावेदार के रूप में देखा गया, लेकिन वह कभी इस पद पर नहीं पहुंच पाए. मिजाज और स्वभाव से सौम्य खड़गे कभी किसी बड़ी राजनीतिक समस्या या विवाद में नहीं फंसे.

बीदर जिले के वारावट्टी में 21 जुलाई, 1942 को गरीब परिवार में जन्मे खड़गे ने स्कूली पढ़ाई के अलावा स्नातक की पढ़ाई कलबुर्गी में की. विधि में स्नातक खड़गे राजनीति में आने से पहले वकालत के पेशे में थे. वह बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और कलबुर्गी में बुद्ध विहार परिसर में निर्मित सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के संस्थापक-अध्यक्ष हैं. उन्होंने 13 मई, 1968 को राधाबाई से विवाह रचाया और उनके दो पुत्रियां और तीन बेटे हैं. उनके एक बेटे प्रियांक खड़गे विधायक हैं और कर्नाटक में मंत्री रहे हैं.

नरेंद्र मोदी नीत सरकार के मुखर आलोचक खड़गे के कांग्रेस का नेतृत्व करने से कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन मिलने और राज्य में पार्टी नेतृत्व को एकजुट करने की उम्मीद है, जहां अगले साल अप्रैल तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. खड़गे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के अध्यक्ष बनने वाले एस निजालिंगप्पा के बाद कर्नाटक के दूसरे नेता और जगजीवन राम के बाद इस पद पर पहुंचने वाले दूसरे दलित नेता भी हैं. 

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