नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने संबंधी केंद्र की 26 साल पुरानी अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि सारे भारत की आबादी के मामले में धर्म पर विचार किया जाना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बीआर गवई और सूर्य कांत की पीठ ने भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया.
समूचे भारत के आधार पर धर्म पर विचार करने में क्या परेशानीः कोर्ट
उपाध्याय ने राज्य स्तर पर आबादी के आधार पर किसी समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग की थी. पीठ ने कहा, समूचे भारत के आधार पर धर्म पर विचार करना चाहिए. इसमें क्या परेशानी है, अगर कश्मीर में मुस्लिम बहुमत में हैं, लेकिन देश के अन्य हिस्सों में अल्पसंख्यक हैं. उपाध्याय ने अपनी याचिका में दावा किया था कि आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन, उन्हें वहां अल्पसंख्यकों के लाभों से वंचित किया जा रहा है.
पीठ ने कहा कि भाषाएं राज्य के आधार पर सीमित हैं. धर्म की तो राज्य सीमाएं नहीं हैं. हमें इस मामले में अखिल भारतीय दृष्टिकोण अपनाना होगा. लक्षद्वीप में मुस्लिम तो हिंदू कानून का पालन करते हैं. पीठ ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल के इस कथन का भी संज्ञान लिया कि शीर्ष अदालत के कई फैसले में कहा गया है कि किसी समूह के अल्पसंख्यक होने का निर्धारण उसकी अखिल भारतीय आबादी के आधार पर किया जा सकता है.
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पीठ ने विचार करने से किया इनकार
अटार्नी जनरल इस मामले में न्यायालय की मदद कर रहे थे. उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मोहन पराशरण से पीठ ने ऐसे फैसलों के बारे में जानना चाहा, जिनमें कहा गया है कि राज्य की आबादी के आधार पर अल्पसंख्यक दर्जा देने पर विचार किया जा सकता है. पीठ ने कहा कि हम नहीं समझते कि हमें इस पर विचार करना चाहिए. पीठ ने कहा कि राज्यों के सृजन के लिए भाषाओं को आधार बनाया गया है, लेकिन धर्म के मामले में ऐसा नहीं है. अत: राज्य की आबादी के आधार पर किसी समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जा सकता है.
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