राहुल गांधी को झटके पर झटका! कांग्रेस की राजनीति का 'राफेल अध्याय' खत्म

कांग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दे का अब THE END हो चुका है, राफेल पर राहुल को अदालत से सुप्रीम झटका मिलने के बाद भी राफेल का नाम जपना नहीं छोड़ा है. अब वो जेपीसी जांच की मांग पर अड़े हैं.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Nov 15, 2019, 06:50 AM IST
    1. कांग्रेस के सबसे बड़े मुद्दे राफेल का THE END हो गया है
    2. सुप्रीम कोर्ट के झटके के बाद राहुल गांधी क्या करेंगे?
    3. कांग्रेस राफेल डील की जेपीसी जांच की मांग कर रही है
राहुल गांधी को झटके पर झटका! कांग्रेस की राजनीति का 'राफेल अध्याय' खत्म

नई दिल्ली: कांग्रेस का सबसे बड़ा हथियार छिन गया है. पहले जनता की अदालत में राफेल का मुद्दा औंधे मुंह गिरा और अब देश की सबसे बड़ी अदालत ने राफेल लड़ाकू जहाज़ की डील पर मोदी सरकार को 11 महीने में दूसरी बार क्लीन चिट दी है. पुनर्विचार याचिकाओं को देश की सबसे बड़ी अदालत ने खारिज करते हुए कहा कि इसमें कोई दम नहीं है. इसके बाद अब कांग्रेस के सामने राफेल मुद्दे पर राजनीति की गुंजाइश खत्म हो गई है. एक बड़ा मुद्दा पूरी तरह छिन गया है.

कांग्रेस का 'फाइटर जेट' क्रैश!

जब सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर किया था. तो राहुल गांधी ने इस पर विवादित बयान दिया था. राहुल ने सुप्रीम कोर्ट का  हवाला देकर कहा था कि चौकीदार चोर है. राहुल गांधी ने कहा था कि 'कोर्ट ने भी मान लिया है कि चौकीदार ने ही चोरी की है.  राहुल के इस बयान के खिलाफ बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने अवमानना याचिका दाखिल की थी. सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद राहुल गांधी ने अपने बयान पर माफी मांग ली थी. अब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने राहुल गांधी की माफी करने के साथ ही उन्हें बड़ी नसीहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने राहुल से कहा कि उन्हें आगे सावधानी बरतने की जरूरत है.

राहुल का लिखित माफीनामा

राहुल ने अदालत में दाखिल लिखित माफीनामे में कहा था कि उनसे चुनाव प्रचार के दौरान गर्मजोशी में मुंह से ये बात निकल गई थी. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ‘चौकीदार चोर है’ की टिप्पणी नहीं की थी.

'नामदार' की हार, जीत गया 'चौकीदार'

संसद के शीतकालीन सत्र से ठीक पहले राफेल डील पर आया फैसला मोदी सरकार के मनोबल को बढ़ानेवाला है. तो कांग्रेस की रणनीति पर इससे पानी फिर गया है. 18 नवंबर से शुरू होनेवाले सत्र में इस मुद्दे पर हंगामे की कोई सूरत नहीं बची है. सूत्रों की मानें तो कांग्रेस नेता राफेल मामले पर अब सावधानी बरतेंगे. कांग्रेस के नेता चौकीदार चोर है का नारा नहीं लगाएंगे. हालांकि पार्टी राफेल डील की जेपीसी यानी संसद की joint Parliamentry Committee से जांच कराने की मांग जारी रखेगी.

राहुल गांधी ने बाकायदा इसको लेकर ट्वीट किया, यानी वो इस मुद्दे पर आगे भी चुप नहीं बैठेंगे. कांग्रेस का दावा है कि अपने फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने राफेल केस की आपराधिक जांच का रास्ता खोल दिया है. इसके लिए राहुल ने सीजेआई की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच के सदस्य जस्टिस के एम जोसेफ की एक टिप्पणी को ट्वीट किया.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील पर फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को क्लीन चिट दी थी. अदालत ने कहा था कि राफेल डील में सब कुछ तय प्रक्रिया के तहत हुआ. इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और बीजेपी के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी की अगुवाई में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी. डील से जुड़े लीक हुए दस्तावेजों के आधार पर इन्होंने राफेल डील की जांच की मांग की थी. इनका आरोप था कि राफेल डील में भ्रष्टाचार हुआ है. इन दस्तावेजों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई शुरू की थी. 10 मई को अदालत ने इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. और अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में दो टूक कह दिया है कि इन याचिकाओं में कोई मैरिट नहीं है.

राजनीति का 'राफेल अध्याय' खत्म

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसफ की बेंच के राफेल डील पर इस बड़े फैसले के बाद अब राजनीति का राफेल अध्याय पूरी तरह खत्म हो गया है. अब देश की सुरक्षा को कई गुना मजबूत करने वाले राफेल की गड़गड़ाहट और तेजी से सुनाई देगी. वायुसेना के लिए भी ये बड़ी खुशखबरी है. अब राफेल विवादों के साए से लगभग मुक्त हो गया है.

राफेल डील में भले ही वायुसेना की बड़ी भूमिका रही हो. सौदे की कीमत को लेकर बातचीत की कमेटी में वायुसेना के तब के उप प्रमुख शामिल थे. बावजूद इसके इस मुद्दे पर जबर्दस्त राजनीति हुई. कांग्रेस ने इसे बहुत बड़ा मुद्दा बनाया. सैकड़ों चुनावी सभाओं में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बार-बार चौकीदार चोर है के नारे लगाए. लेकिन अब राहुल गांधी की चोर-चोर वाली रणनीति नहीं चलने वाली है, राफेल डील को दोबारा क्लीन चिट दिए जाने के बाद अब कांग्रेस का चौकीदार को चोर बताने वाला नारा बेकार हो गया है.

राफेल डील पर राहुल के तेवर ऐसे थे. जैसे उनकी एक-एक बात अदालत में सच साबित होगी. उनका अंदाज ऐसा था कि मोदी सरकार की इस रक्षा डील में अब तक की सबसे बड़ी गड़बड़ी हुई है. संसद से सड़क तक राहुल गांधी ने राफेल मुद्दे पर माहौल गरमाया था. राहुल गांधी खुद राफेल के बड़े-बड़े कटआउट लेकर प्रदर्शन में शामिल हुए थे. पार्टी कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों के नेताओं के साथ राहुल ने राफेल को चुनावी मुद्दों का एपिसेंटर बनाने की कोशिश तो की, लेकिन जनता ने बीच ये मुद्दा तूल नहीं पकड़ सका. कांग्रेस के राहुल गांधी की सारी कोशिश बेकार गई. राहुल गांधी को उम्मीद थी कि अदालत राफेल डील को लेकर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उल्टे उन्हें संभलकर बोलने की नसीहत मिल गई.

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अमित शाह की लताड़

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि 'राफेल मामले में पुनर्विचार याचिका रद्द करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला उन नेताओं व पार्टियों को उचित जवाब है, जो केंद्र सरकार के खिलाफ विद्वेषपूर्ण और बेबुनियाद अभियान चलाते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर मोदी सरकार की साख पर मुहर लगा दी है. मोदी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी है.'

अमित शाह ने ये भी कहा कि 'पूरे देश के सामने अब यह बात साबित हो गई है कि राफेल लड़ाकू विमान डील के नाम पर संसद नहीं चलने देना काफी शर्म की बात है. संसद के इस वक्‍त का लोगों की भलाई के कामों के लिए इस्‍तेमाल हो सकता था, लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं होने दिया. अब कांग्रेस और देशहितों से ऊपर राजनीति करने वालों को जनता से माफी मांगनी चाहिए.'

राफेल डील के मुद्दे पर मुंह की खाने के बाद अब कांग्रेस के सामने सियासत के लिए मुद्दों का अकाल सा हो गया है. अगर ऐसा नहीं होता, तो वो सुप्रीम कोर्ट के डबल फैसले के बाद भी इस तरह राफेल के पीछे नहीं पड़ी होती. सच ये है कि मोदी सरकार की सत्ता में दोबारा वापसी के बाद अब कांग्रेस समझ चुकी है कि धर्मनिरपेक्षता, विकास, महंगाई से लेकर रोजगार और भ्रष्टाचार तक के मुद्दे पर उसकी आवाज़ को जनता ने नकार दिया.

जिन राज्यों में कांग्रेस विधानसभा चुनाव में जीती. वहां सत्ता विरोधी लहर एक बड़ी वजह थी. राफेल के मुद्दे पर उड़ान भरने की कांग्रेस की उम्मीद रंग नहीं ला पाई. आज राहुल भले ही कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं हों. लेकिन उनका रुख, पार्टी के बेहद अहमियत रखता है. अगर कांग्रेस अब भी राफेल के मुद्दे पर जमीन आसमान एक करती है. तो सवाल है कि अब उसे मिलने वाला क्या है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जेपीसी जांच की रट लगाना आसान है. लेकिन ऐसा होना मुश्किल है.

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लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी के भीतर इसकी वजहों पर जमकर मंथन हुआ. इसमें उन मुद्दों की भी समीक्षा हुई. जिसके दम पर कांग्रेस मैदान में उतरी थी. इसमें एक मुद्दा राफेल का भी था, लेकिन पार्टी के नेताओं ने इस पर चुप्पी साधे रखी. वजह राहुल गांधी का रुख था. अब जबकि सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं. इसके बावजूद राहुल ने राफेल को फिर से मुद्दा बनाने का ऐलान कर ये साफ कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भले ही राजनीति के राफेल अध्याय के पन्ने खत्म हो चुके हैं. लेकिन राहुल अब भी इसी पर अटके रहेंगे. राजनीति के मैदान में जो फॉर्मूला नाकाम हो चुका है. अब राहुल उसे धार देकर कैसे चमकाएंगे. इस पर सबकी नजर रहेगी.

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